एक फिल्म है कयामत से कयामत तक। आज की कहानी ‘मकान से मकान तक’ की है। 2006-07 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तत्कालीन ‘बागी नेता’ उपेंद्र कुशवाहा का सामान सरकारी आवास से सड़क पर फेंकवा दिया था। पिछले चुनाव में भाजपा ने नीतीश कुमार को राजनीतिक औकात बता दी तो मुख्यमंत्री ने एक फिर उपेंद्र कुशवाहा को गले लगाया। पार्टी में बड़ी जिम्मेवारी सौंपने के बाद एमएलसी बनाया और चर्चा है कि मंत्री भी बनाया जा सकता है। मंत्रियों के लिए निर्धारित आवास उपेंद्र कुशवाहा को आवंटित किया गया है। इसकी सूचना उन्होंने खुद अपने अधिकृत फेसबुक एकाउंट के माध्यम से दी है। उन्होंने लिखा है- मेरे पटना (सरकारी) आवास का पता है-24 एम स्ट्रैंड रोड।
अपने राजनीतिक कैरियर में उपेंद्र कुशवाहा ने जो कुछ भी हासिल की है, उसमें नीतीश कुमार का सबसे बड़ा योगदान है। 2014 में लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री का पद उन्होंने नीतीश विरोधी वजूद के आधार पर हासिल की थी, बाकी सबकुछ नीतीश कुमार ने दिया है। नये सरकारी आवास के समान।
विधायक, विधान पार्षद, राज्यसभा सदस्य और नेता प्रतिपक्ष जैसे का अवसर उन्हें नीतीश कुमार की अनुंकपा से मिला। यह आवास भी अनुकंपा का विस्तार है। इसलिए उनके नये आवास को ‘अनुकंपा निवास’ कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।
नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को बराबर ‘लव-कुश समीकरण’ में कुशवाहा प्रतिनिधि के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश की। संगठन और सत्ता की राह में नयी जिम्मेवारी भी उसी दिशा में प्रयास है। उपेंद्र कुशवाहा के जदयू में आने के बाद प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और विधान पार्षद रामेश्वर महतो की राजनीतिक उड़ान पर विराम लग गया है। नीतीश ने जदयू में कई कुशवाहा नेताओं को खड़े करने का प्रयास किया, लेकिन सब ‘बेदम’ साबित हुए। उपेंद्र कुशवाहा भी लोकसभा और विधान सभा चुनाव में हांफने लगे थे। उन्हें एक राजनीतिक ठिकाना चाहिए और फिलहाल 24 एम स्ट्रैंड रोड मिल गया है। मुख्यमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा मर गयी होगी, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है। अंतरात्मका कभी भी जाग सकती है। इन सबके बावजूद इतना जरूर कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने एक बार फिर कुशवाहा नेता के रूप में उपेंद्र कुशवाहा को खड़ा कर भाजपा की ओर भागते कुशवाहा वोटरों को थामने का प्रयास किया है। जदयू में वापसी उपेंद्र कुशवाहा के ‘अग्नि परीक्षा’ भी है।