चिराग पासवान। रामविलास पासवान के पुत्र और पशुपति कुमार पारस के भतीजे। पार्टी और परिवार की लडा़ई में दोनों मोर्चों पर पशुपति पारस ने चिराग पासवान को दे मात दी है। दूसरे भतीजे सांसद प्रिंस पासवान को साथ लेकर पशुपति ने परिवार पर अपनी पकड़ मजबूत होने का प्रमाण दिया तो चिराग की जगह पर खुद को लोकसभा में पार्टी का नेता बनकर चिराग को संसदीय लड़ाई में भी मात दे दी।
राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर चिराग और पशुपति की लड़ाई चुनाव आयोग पहुंच गयी है। लेकिन 6 सदस्यीय संसदीय दल की लड़ाई निपट गयी है। लोजपा संसदीय दल के सदस्य चिराग पासवान भी हैं और उस संसदीय दल के नेता पशुपति कुमार पारस हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने पशुपति पारस को संसदीय दल के नेता की मान्यता दे दी है। चंदन कुमार लोकसभा में पार्टी में मुख्य सचेतक बनाये गये हैं। अब लोकसभा में पार्टी के अनुशासन के रूप में पशुपति पारस और चंदन कुमार की सुनी जायेगी। चिराग पासवान ज्यादा बगावती मूड में आये तो पार्टी अनुशासन के खिलाफ कार्य करने के आरोप में उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश भी मुख्य सचेतक कर सकते हैं।
2014 में जदयू के 8 विधायकों की सदस्यता दल-विरोधी गतिविधि के आरोप समाप्त कर दी गयी थी। 2015 के फरवरी महीने तक जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री थे और जदयू विधायक दल के नेता थे। लेकिन एक शाम जदयू विधायक दल की बैठक हुई और जीतनराम मांझी की जगह विजय कुमार चौधरी विधायक दल के नेता चुन लिये गये। विधान सभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने इस बदलाव को स्वीकारते हुए विजय कुमार चौधरी को जदयू विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता दे दी थी। जिस दिन जीतनराम को विधान सभा में बहुमत साबित करना था, उस दिन विजय कुमार चौधरी विधायक दल के नेता थे। लेकिन नेता पद से हटाये जाने के बाद जीतनराम मांझी ने बहुमत साबित करने के पहले राजभवन पहुंचकर राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया था।
ठीक वही स्थिति फिलहाल लोकसभा में लोजपा की हो गयी थी। लोजपा के 6 में से 5 सांसदों ने अपना नया नेता चुन लिया और लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष उपस्थित होकर इसकी लिखित सूचना दी। इसी आलोक में अध्यक्ष ने पशुपति पारस को लोकसभा में पार्टी का नेता की मान्यता दे दी। तकनीकी रूप से चिराग पासवान के लोकसभा में नेता भी पशुपति पारस हैं और चिराग की हैसियत एकमात्र सांसद की है। उनमें बगावत के रूप में लोकसभा से इस्तीफा देना का साहस नहीं है। इसलिए कूद-फांदकर लोजपा में बने रहेंगे।
चिराग के सामने दो स्थिति है। पहला पशुपति पारस उन्हें पार्टी से निकाल दें तो वे लोकसभा में असंबद्ध सदस्य के रूप में बने रहेंगे और उनके बैठने की व्यवस्था अलग कर दी जायेगी। जैसा कि राजद ने पप्पू यादव के संदर्भ में किया था। दूसरी स्थिति में लोकसभा में लोजपा के मुख्य सचेतक लोकसभा अध्यक्ष से पार्टी विरोधी गतिविधि के आरोप में चिराग पासवान की सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश करें और अध्यक्ष उसे स्वीकार लें। जैसा कि विधान परिषद में जदयू के विधान पार्षद सम्राट चौधरी की सदस्यता 2016 में दलविरोधी गतिविधि के आरोप में समाप्त कर दी गयी थी। 2011-12 में जदयू के उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ भी राज्यसभा से सदस्यता समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी, तब उन्हें अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए राज्यसभा से इस्तीफा देना पड़ा था। संसदीय प्रक्रिया में अब पूरी बाजी पशुपति पारस के हाथ में है और चिराग ‘कठपुतली’ रह गये हैं। चिराग पासवान में जमीन पर संघर्ष करने का आत्मबल नहीं है। इसलिए वे उपेंद्र कुशवाहा के तरह इस्तीफा भी नहीं दे सकते हैं। उनके सामने अब पशुपति पारस का नेतृत्व स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं। यदि चिराग पासवान ज्यादा फूदकेंगे तो उनकी लोकसभा सदस्यता भी खतरे में पड़ सकती है।
(पाठक इस मामले में अपनी राय से भी अवगत करा सकते हैं।)