आज बिहार की नौकरशाही के लिए बड़ी खबर है। दो सेवानिवृत्त आइएएस अफसरों ने एक साथ कैबिनेट मंत्री की शपथ ली। आरके सिंह और आरसीपी सिंह। एक राजपूत, दूसरा कुर्मी। आरके सिंह नौकरी की अवधि पूरी करने के बाद राजनीति में आये थे और आरसीपी सिंह वीआरएस लेकर राजनीति में आये थे। एक लोकसभा में हैं और दूसरे राज्य सभा।
कैबिनेट के विस्तार में जदयू के आरसीपी सिंह का शपथ लेना कई राजनीतिक संकेत देने वाला है। वह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और पार्टी की नीतिगत निर्णय लेने वाले सर्वोच्च व्यक्ति। मुख्यमंत्री की इच्छा के विपरीत आरसीपी सिंह ने मंत्री पद की शपथ ली। राजनीति में कुर्सी बदलने के बाद सत्ता का ‘ककहरा’ बदल जाता है। 2015 में जब राजद और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था तो उस समय जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव थे। चुनाव के कुछ महीने बाद ही नीतीश कुमार भाजपा के साथ सरकार बनाना चाहते थे, लेकिन शरद यादव अड़ंगा लगा रहे थे। इसलिए उन्होंने पहले शरद यादव को इस्तीफा देने को विवश किया। शरद यादव के बाद नीतीश कुमार पार्टी के अध्यक्ष बन गये। अध्यक्ष पद संभालने के कुछ महीने बाद ही नीतीश कुमार की अंतरात्मा जागती है और फिर जुलाई, 2017 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हैं। कुछ घंटों के अंदर भाजपा के साथ मिलकर राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा पेश करते हैं।
पिछले साल दिसंबर महीने में नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया था। आरसीपी सिंह नालंदा के हैं और कुर्मी भी। 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार के दुबारा सत्ता में आने के बाद आरसीपी सिंह का मंत्री बनना तय था। शपथ के दिन उन्हें दोपहर के भोज पर भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष नीतीश कुमार ने शपथ लेने से रोक दी थी। इसकी वजह ललन सिंह का गुस्सा बताया जा रहा था।
इसके बाद से आरसीपी सिंह के कलेजे में ‘आग’ धधक रही थी। वह नीतीश कुमार और ललन सिंह से एक साथ हिसाब चुकता करना चाहते थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद आरसीपी सिंह के पास ताकत आ गयी थी। 2019 में नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का हवाला देकर सरकार में शामिल नहीं होने के फैसले को औचित्यपूर्ण बताया था। उन्होंने कहा था कि अब सरकार में शामिल होने को लेकर भाजपा से बातचीत भी नहीं करेंगे। लेकिन अध्यक्ष पद पर पहुंचे सात महीना भी नहीं हुआ था कि आरसीपी सिंह ने अपनी हैसियत का अहसास करा दिया। नीतीश कुमार के आनुपातिक प्रतिनिधित्व को ताक पर रखकर आरसीपी सिंह खुद शपथ ग्रहण कर आये। ललन सिंह जैसे जदयू में ताकतवार माने जा रहे लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाये। आज शपथ लेने के बाद दो वर्षों से आरसीपी सिंह के कलेजे में लगी ‘आग’ बूझ गयी होगी। लेकिन अपनी उपेक्षा और अनदेखी से ललन सिंह के कलेजे में लगी आग कब बूझती है। इसका इंतजार करना होगा।