चुनाव या खेल में एक होता है हार जाना और दूसरा होता है खेलने का मौका नहीं मिलना। मैदान में हार जाना पीड़ादायक होता है, लेकिन खेलने का मौका नहीं मिलना, उससे ज्यादा पीड़ादायक और कष्टकर होता है। बिहार में स्थानीय प्राधिकार कोटे से निर्वाचित 19 विधान पार्षद खेलने का मौका नहीं मिलने का दर्द झेल रहे हैं। पिछले करीब एक साल से अखाड़े की मिट्टी को दूध-पानी से सींच रहे थे, मिट्टी को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन कुछ ऐसी परिस्थति आयी कि सब गुड़ गोबर हो गया। पिछले एक साल की मेहनत पर पानी फिर गया। राज्य निर्वाचन आयोग और सरकार के बीच उत्पन्न विवाद की वजह से पंचायत चुनाव निर्धारित समय पर नहीं करवाया जा सका। पंचायत राज प्रतिनिधियों का कार्यकाल जून महीने में समाप्त होने के बाद स्थानीय प्राधिकार कोटे के चुनाव के लिए वोटरलिस्ट बनाना संभव नहीं था। इस कारण चुनाव टाल दिया गया। अब पंचायत चुनाव के बाद ही विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव करा पाना संभव होगा। स्थानीय प्राधिकार कोटे की 24 सीटों में से 5 सीट अभी रिक्त हैं। रिक्त पांच सीटों में से दो के प्रतिनिधियों का देहांत हो गया है, जबकि तीन विधान पार्षद विधायक बन गये हैं।
बिहार विधान परिषद की 24 सीटों का चुनाव 2015 में हुआ था। इन सभी का कार्यकाल 16 जुलाई को समाप्त हो रहा है। इसके बाद वे भूतपूर्व हो जायेंगे। इनको पेंशन लेने में भी कोई रुचि नहीं होगी, क्योंकि चुनाव के बाद फिर वापस काउंसिल में आने की उम्मीद में होंगे। लेकिन वेतन और भत्ता के भुगतान पर तत्काल प्रभाव से रोक लग जायेगी।
स्थानीय प्राधिकार की सभी सीटों की बात करें तो सुनील सिंह (दरभंगा) और हरिनारायण चौधरी (समस्तीपुर) का निधन हो गया है। इस कारण ये दो सीट रिक्त हुई हैं। जबकि रितलाल यादव (पटना), दिलीप राय (सीतामढ़ी) और मनोज यादव (भागलपुर) से निर्वाचित हुए विधान पाषर्द पिछले नवंबर महीने में विधान सभा के लिए चुन लिये गय थे। इस कारण तीन सीट खाली हो गयीं। रिक्त पांच सीटों में से दरभंगा सीट को छोड़ दें तो अन्य पूर्व चार विधान पार्षदों के परिजनों के चुनाव लड़ने की संभावना है। 2015 में राजद के टिकट पर निर्वाचित भोजपुर के राधाचरण साह, सीतामढ़ी के दिलीप राय और मुंगेर से चुने गये संजय प्रसाद (भूमिहार) पिछले ही साल पार्टी बदलकर अन्य साथियों के साथ जदयू में शामिल हो गये थे। इसी प्रकार सीवान से भाजपा के विधान पार्षद टुनजी पांडेय का तेवर बदल गया है और सरकार के खिलाफ हमलावर हो गये हैं।
विधान परिषद के आगामी चुनाव को कुलबुलाहट बढ़ती जा रही है। पिछले चुनाव में पराजित कई लोग हाथ पैर मार रहे हैं तो नये-नये शूरमा भी जोरआजइमाइश कर रहे हैं। विधान परिषद चुनाव अब माफियाओं के लिए ‘रिजर्व’ हो गया है। ठेका माफिया, शिक्षा माफिया, बालू माफिया, दारू माफिया के अलावा रुपये के बोरों पर बैठे लोग ही विधान परिषद के स्थानीय प्राधिकार कोटे के तहत चुनाव लड़ने का हिम्मत जुटा पाते हैं। लोकतंत्र की मर्यादा की दुहाई देने वाली हर पार्टी ‘मालदार असामी’ तलाशती हैं। हर पार्टी को जीतने वाला उम्मीदवार चाहिए।
औरंगाबाद जिले की बात करें तो अभी भाजपा के राजन सिंह विधान पार्षद हैं। पहली बार निर्वाचित हुए हैं। इस बार फिर मैदान में उतरेंगे। उनसे मुकाबले के लिए राजद की ओर से जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष नीतू कुमारी के पति संजय यादव तैयारी कर रहे हैं। पूर्व एमएलसी मुन्ना सिंह तालठोकने को तैयार बैठे हैं। इसके अलावा राजद की ओर से जगन सिंह और नारायण मेडिकल कॉलेज के मालिक गोविंद सिंह भी इसी सीट से दावेदारी की जमीन तलाश रहे हैं।
रोहतास-कैमूर सीट से भाजपा से संतोष सिंह पहली बार निर्वाचित हुए हैं। पिछली बार उनका मुकाबला जदयू के अनिल यादव से था। उधर, दो बार विधान पार्षद रहे जदयू के कृष्ण कुमार सिंह भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। उनका दावा जदयू के टिकट को लेकर ही है। लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर नयी राह से परहेज भी नहीं है।
भोजपुर-बक्सर सीट से राधाचरण साह पहली बार निर्वाचित हुए हैं। चुने गये थे राजद से, अब जदयू में हैं। इस सीट से लोजपा के हुलास पांडेय ताल ठोक रहे हैं। हुलास पांडेय पूर्व विधान पार्षद हैं और पूर्व विधायक सुनील पांडेय के भाई हैं। पिछले चुनाव में राधाचरण साह ने ही हुलास पांडेय को परास्त किया था। इस बार भी दोनों के बीच आमने-सामने का मुकाबला हो सकता है।
सहरसा-मधेपुरा-सुपौल से नूतन सिंह एमएलसी हैं। वे 2015 में लोजपा के टिकट पर निर्वाचित हुई थीं। लेकिन हाल ही में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ले ली है। अगली बार वे भाजपा की उम्मीदवार हो सकती हैं। पिछली बार उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार इजरायल राइन को पराजित किया था। इस बार राजद की ओर से डॉ वीके यादव भी चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। वे सुपौल स्थित अनंत प्रेरणा हॉस्पीटल के संचालक हैं और उसी के माध्यम से जनता की सेवा कर रहे हैं।
गया-जहानाबाद-अरवल सीट से जदयू की मनोरमा देवी विधान पार्षद हैं। 2015 में उन्होंने भाजपा के अनुज सिंह को पराजित किया था। 2003 में मनोरमा देवी निर्दलीय विधान पार्षद बनी थीं और 2009 में राजद की उम्मीदवार थीं। 2009 में जदयू उम्मीदवार के रूप में अनुज सिंह ने मनोरमा देवी को पराजित किया था। 2015 में मनोरमा देवी जदयू की उम्मीदवार के रूप में भाजपा के अनुज सिंह को हराया था। इस बार फिर अनुज सिंह चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। हालांकि वे कहते हैं कि पार्टी नेता के निर्देश का इंतजार करेंगे।
नवादा से विधान पार्षद हैं जदयू के सलमान रागीब। लगातार तीसरी बार निर्वाचित हुए हैं। नवादा जिले की राजनीतिक गोलबंदी के हिसाब से वे कौशल यादव खेमे के साथ हैं। वे कहते हैं विधान परिषद चुनाव में कौशल यादव और उनकी टीम का पूरा सहयोग मिलता है। वे कौशल यादव के स्कूल के समय के दोस्त हैं और दोनों का पारिवारिक संबंध है। सलमान रागीब के पिता का देहांत बचपन में ही गया था। कौशल यादव के परिवार का उन्हें पूरा सहयोग मिला। वे कहते हैं कि कौशल यादव ने पहले उन्हें एमएलसी बनवाया और बाद में कौशल यादव एमएलए बने। एमएलसी चुनाव में राजवल्लभ यादव खेमा किसे मैदान में उतारता है, अभी स्पष्ट नहीं है। कोई और नाम की अभी चर्चा भी नहीं है।
नालंदा की बात करें तो जदयू की रीना यादव फिलहाल एमएलसी हैं। 2015 में उन्होंने लोजपा के रणजीत सिंह को पराजित किया था। 2009 में उनके पति राजू यादव लोजपा के टिकट पर निर्वाचित हुए थे और कार्यकाल के बीच में जदयू में शामिल हो गये थे। लेकिन 2015 में अपनी पत्नी को मैदान में उतारा और निर्वाचित हुईं। अगले चुनाव में फिर रीना यादव चुनाव में होंगी, लेकिन राजद की ओर से कौन मैदान संभालेंगे, अभी तय नहीं है। अभी किसी अन्य उम्मीदवार का नाम भी सामने नहीं आया है।
सारण से अभी भाजपा के सच्चिदानंद राय एमएलसी हैं। वे पहली बार निर्वाचित हुए हैं। अगली बार फिर मैदान में होंगे। उनके खिलाफ पूर्व विधान पार्षद सलीम परवेज मैदान में हो सकते हैं। वे विधान परिषद के उपसभापति भी रहे हैं। पिछले छह वर्षों में वे कई पार्टियों की यात्रा कर चुके हैं। चुनाव किस पार्टी से लड़ेंगे, अभी तय नहीं है। विधान सभा चुनाव में सारण जिले की अनारक्षित सीटों पर लाठी-तलवार की जंग होती रही है, लेकिन विधान परिषद के लिए कोई यादव या राजपूत देह भांजते नजर नहीं आ रहे हैं।
सीवान जिले से टुनजी पांडेय भाजपा के एमएलसी हैं। फिलहाल बगावती मूड में हैं। फिर चुनाव लड़ने की संभावना है, लेकिन पार्टी बदल कर मैदान में उतारने चाहते हैं। हालांकि इस संबंध में स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। पिछले बार उन्होंने राजद के विनोद कुमार को पराजित किया था। इधर, पूर्व एमएलसी मनोज सिंह ने स्पष्ट किया है कि इस बार वे चुनाव नहीं लड़ेंगे।
बेगूसराय-खगडि़या से भाजपा के एमएलसी रजनीश कुमार हैं। पिछले दो टर्म से विधान पार्षद हैं। तीसरी बार के लिए भी तैयार हैं। पेशे से सीए रजनीश कुमार पहली बार 2006 में बेगूसराय जिला परिषद के लिए निर्वाचित हुए थे। जिला परिषद सदस्य रहते हुए भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे और निर्वाचित हुए। पिछली बार जदयू की ओर से उम्मीदवार रहे संजीव कुमार अब विधायक चुन लिये गये हैं। राजद या कांग्रेस की ओर से अभी किसी नाम को लेकर खास चर्चा नहीं है।
पूर्णिया-किशनगंज-अररिया से पिछले दो टर्म से निर्वाचित दिलीप कुमार जयसवाल भाजपा के एमएलसी हैं। व्यावसायिक पृष्ठभूमि से आये दिलीप जयसवाल पार्टी में कई पदों की जिम्मेवारियों का निर्वाह कर चुके हैं। वे तीसरी लड़ाई के लिए भी तैयार हैं। फिलहाल वे विधान परिषद में सत्तारूढ़ दल के उपमुख्य सचेतक हैं। विपक्षी खेमे से अभी कोई नाम निकलकर सामने नहीं आया है।
कटिहार से 2015 में निर्दलीय निर्वाचित अशोक कुमार अग्रवाल 2009 में भाजपा के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। 2015 में उन्हें तकनीकी कारण से भाजपा का उम्मीदवार नहीं बनाया जा सका। इसलिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना पड़ा था। तीसरी बार वे फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।
गोपालगंज से आदित्य नारायण पांडेय पहली बार निर्वाचित हुए थे। वे भाजपा के एमएलसी हैं। फिर चुनाव लड़ने की संभावना है। पिछले चुनाव में उन्होंने राजद के सत्यदेव दास को पराजित किया था। मधुबनी से भाजपा के सुमन कुमार महासेठ एमएलसी हैं। यह उनका पहला टर्म है। दूसरे टर्म की तैयारी में हैं। 2015 में उन्होंने जदयू के विनोद कुमार को पराजित किया था।
2015 में मुंगेर से संजय प्रसाद दूसरी बार निर्वाचित हुए थे। 2009 में पहली बार और 2015 में दूसरी बार राजद के टिकट पर निर्वाचित हुए। पिछले साल उन्होंने राजद छोडकर जदयू की सदस्यता ले ली थी। पिछला विधान सभा चुनाव भी उन्होंने जदयू की टिकट पर लड़ा था और पराजित हो गये थे। राजद खेमे को लेकर किसी नाम की चर्चा नहीं है।
पश्चिम चंपारण से 2015 में कांग्रेस के राजेश राम तीसरी बार निर्वाचित हुए थे। अब चौथी बारी की तैयारी कर रहे हैं। पहली बार निर्दलीय और दूसरी बार जदयू से निर्वाचित हुए थे। पिछले चुनाव में उन्होंने भाजपा के बबलू सिंह को पराजित किया था। राजेश राम स्थानीय प्राधिकार कोटे से निर्वाचित एक मात्र अनुसूचित जाति के सदस्य हैं।
मुजफ्फरपुर से तीसरी बार निर्वाचित दिनेश प्रसाद सिंह चौथी पारी की तैयारी कर रहे हैं। वे जदयू के एमएलसी हैं, लेकिन फिलहाल नीतीश कुमार के साथ उनका मनमुटाव चल रहा है। अगले चुनाव में पार्टी को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है। संभव है चुनाव आते-आते मनमुटाव समाप्त हो जाये। पिछले चुनाव में उन्होंने प्रियदर्शिनी शाही का पराजित किया था। पूर्वी चंपारण से भाजपा के एमएलसी हैं बबलू गुप्ता। पहली बार निर्वाचित हुए हैं। फिर चुनाव की तैयारी में हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने राजद कलावती देवी को पराजित किया था।
2015 में पटना से रितलाल यादव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए थे। उन्होंने भाजपा के भोला सिंह को पराजित किया था। इस बार उनके किसी परिजन के चुनाव लड़ने की संभावना है, जबकि जदयू की ओर पूर्व विधान पाषर्द बाल्मीकि सिंह अपनी ताकत लगा रहे हैं। रितलाल राय निर्दलीय निर्वाचित हुए थे, जबकि वे दानापुर से राजद के टिकट पर विधायक बने हैं।
2009 और 2015 में भागलपुर-बांका से जदयू के टिकट पर निर्वाचित मनोज यादव इसी पार्टी से बेलहर से विधायक बने गये हैं। विधान परिषद की इस सीट से उनके किसी परिजन के भी मैदान में होने की संभावना है। 2015 में उन्होंने रालोसपा के अभिषेक वर्मा को पराजित किया था।
2015 में सीतामढ़ी से राजद के टिकट पर निर्वाचित दिलीप राय पिछले साल सुरसंड से जदयू के विधायक निर्वाचित हुए थे। उन्होंने भाजपा के देवेंद्र साह को पराजित किया था। इस बार दिलीप राय के परिजन के भी चुनाव लड़ने की संभावना है।
2015 समस्तीपुर से हरि नारायण चौधरी भाजपा के टिकट पर दूसरी बार निर्वाचित हुए थे। पहली बार वे 2003 में निर्वाचित हुए थे। 2009 में राजद की रोमा भारती ने पराजित कर दिया था, जबकि 2015 में रोमा भारती को पराजित कर दूसरी बार निर्वाचित हुए। इस बार हरिनारायण साह के पुत्र तरुण कुमार के मैदान में उतरने की संभावना है। उधर रोमा भारती भी राजद के टिकट पर मैदान में उतरने को तैयार हैं।
दरभंगा सीट से 2015 में भाजपा के टिकट पर निर्वाचित सुनील सिंह ने राजद के मिश्रीलाल यादव को पराजित किया था। अब मिश्रीलाल यादव वीआईपी के विधायक बन गये हैं, जबकि सुनील सिंह की पुत्रवधू भी वीआईपी की विधायक हैं। इस सीट से अभी नये नाम को लेकर कोई चर्चा नहीं है।
कुल मिलाकर विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव की जमीन तैयार है। सबको पंचायत चुनाव का इंतजार है। पंचायत चुनाव संपन्न होने के एक माह के बाद एमएलसी चुनाव करा लिये जाने की संभावना है। पंचायत चुनाव टलता रहा तो एमएलसी चुनाव टालना भी चुनाव आयोग की बाध्यता हो जायेगी।