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‘अंतर्द्वंद्व ‘ डा. राम आशीष सिंह की पहली औपन्यासिक कृति है। डा. सिंह पिछले 15 वर्षों से वंचित समाज में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक चेतना पैदा करने के लिए ‘आपका आईना’ नामक त्रैमासिक पत्रिका का कुशल सम्पादन और प्रकाशन कर रहे हैं। ‘आपका आईना’ के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों का कुत्सित, विद्रूप, विकृत, क्रूर, हिंसक, लालची और परोपकारी चेहरा दिखाने में पूर्णतः सफल रहे हैं। उनका सम्पादकीय तथा अन्य रचनाएं बहुत तीखे और धारदार प्रश्न खड़ी करती हैं, जो मनोमस्तिष्क को झकझोर कर उद्वेलित और आंदोलित करने वाली होती हैं। डा. सिंह स्वयं रसायन विज्ञान के शिक्षक हैं। इसलिए इनकी रचनाओं में समाज के विभिन्न क्षेत्रों तथा मानवीय मानसिकता का सूक्ष्म वैज्ञानिक विश्लेषण तथा निष्कर्ष होता है।
‘अंतर्द्वंद्व’ में भी डा. सिंह प्रश्न करने तथा सूक्ष्म वैज्ञानिक निश्लेषण करने की विधा को कायम रखा है। पूरा उपन्यास मानव-समाज तथा प्रकृति से जुड़े विभिन्न बिन्दुओं पर हजारों प्रश्न खड़ा करता है, उन समस्याओं का सूक्ष्म वैज्ञानिक विश्लेषणात्मक तर्क और तथ्य प्रस्तुत करता है।
‘अंतर्द्वंद्व’ का मुख्य नायक महाभारत के महानायक भीष्म हैं। गंगापुत्र देवव्रत, जो बाद में भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए, ने उस समय के सर्वश्रेष्ठ गुरुओं- शुक्राचार्य, वृहस्पति, वशिष्ठ तथा परशुराम से नीति, न्याय, राजनीति, कूटनीति, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, विज्ञान तथा अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा ग्रहण की थी। इतनी अधिक गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा लेने के बावजूद भीष्म आजीवन अनिर्णय की स्थिति में रहे, ऐसा क्यों? भीष्म की इस कुंठा, अनिर्णय की स्थिति का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करता है- अंतर्द्वंद्व।
मानव के मानसिक विकास पर किन-किन कारकों का कैसा और कितना प्रभाव पड़ता है, इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। डा. सिंह ने इस तथ्य का विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण किया है कि, क्या कारण है कि ‘आनुवंशिकी और वातावरण’ दोनों से समृद्ध होने के बावजूद देवव्रत मानसिक रूप से इतने निर्बल और कुंठित क्यों हो गये? दूसरी तरफ आनुवंशिकी और वातावरण दोनों से निर्धन रहते हुए भी श्रीकृष्ण मानसिक रूप से इतने सबल, प्रखर, उच्च कोटि के दार्शनिक, कुटनीतिज्ञ होकर देवव्रत (भीष्म) से बहुत आगे कैसे निकल गये? कुरू-वंश में देवकन्या गंगा की कोख से जन्मे विश्वप्रसिद्ध गुरुओं से शिक्षित-प्रशिक्षित देवव्रत (भीष्म) और यादव कुल (आज की पिछड़ी जाति) में जन्मे तथा गोकुल के गांव और वनों में बचपन गुजारने वाले श्रीकृष्ण के मानसिक स्तर में इतना अधिक अंतर क्यों और कैसे हो गया?
डा. सिंह मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट करने में सफल हैं कि बुद्धि, प्रतिभा, योग्यता, क्षमता, कौशल और ज्ञान सिर्फ तथाकथित कुलीन और आर्थिक रूप से सम्पन्न वर्गों के पास ही नहीं होते हैं, बल्कि इन कुलीनों तथा अभिजात वर्गों द्वारा जिन्हें असभ्य, अनपढ़, गंवार कहा और समझा जाता है, उनके पास भी होते हैं और कहीं-कहीं उन अभिजात वर्गों से ज्यादा होते हैं। इस तथ्य का बहुत सुन्दर चित्रण लेखक ने ‘अंतर्द्वंद्व ‘ के नौंवे और अठारहवें अध्याय में किया है।
अंतर्द्वंद्व न केवल भीष्म की अनिर्णायक मानसिकता को दर्शाता है, बल्कि भीष्म के माध्यम से समाज, राज्य तथा आम जनों की समस्याओं के कारणों पर भी प्रकाश डालता है। भीष्म चूंकि राजनीति, कूटनीति, न्याय, समाजशास्त्र इत्यादि के ज्ञाता थे, इसलिए उनके मन में इन क्षेत्रों में व्याप्त विकृतियों पर प्रश्नों के बवंडर उठते रहते हैं। भीष्म के मन में उठने वाले प्रश्नों को अंतर्द्वंद्व में उठाकर पाठक को उन समस्याओं तथा उनके कारणों से जोड़ने का कार्य लेखक ने किया है।
‘अंतर्द्वंद्व ‘ में लेखक ने महाभारत की उन्हीं कहानियों और उन्हीं घटनाओं का नये तरीके से वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है और अपने प्रयास में सफल दिखते हैं। पुस्तक पठनीय और संग्रहनीय है।