(27 नवंबर, 2020 को राज्यपाल के अभिभाषण पर कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा का संबोधन)
अध्यक्ष महोदय, महामहिम राज्यपाल द्वारा दिये गये अभिभाषण पर लाये गये धन्यवाद प्रस्ताव के विरोध में बोलने के लिये मैं खड़ा हुआ हूं। मैं अपनी बात शुरू करूँ, उसके पहले कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता की हैसियत से सभी नवनिर्वाचित सदस्यों का स्वागत करता हूं। अध्यक्ष महोदय, 17वीं विधन सभा में कांग्रेस विधन मंडल दल के नेता के तौर पर यह मेरा पहला भाषण है। इसलिए मैं माननीय सदस्यों से अनुरोध करूंगा कि मेरी बात कृपया सुनने का कष्ट करेंगे और अपने भाषण के दौरान ही मेरा उत्तर देंगे । अभी जो कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ा, महागठबंधन के तौर पर उसमें हमारी अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं आए, लेकिन नीतीश जी की सरकार बनाने के पक्ष में भी परिणाम नहीं आया। आप देखें कि आप कहां थे और कहां पहुंच गए। वैसे यह जदयू का इतिहास रहा है कि 2005 से ही उसे कभी स्पष्ट बहुमत नहीं रहा है। कांग्रेस पार्टी अपने 40 साल से अधिक के लंबे शासनकाल में प्रायः सभी चुनावों में स्पष्ट बहुमत लाती रही और शायद ही कभी किसी राज्य में वहां कमजोर होते हुए भी उसने अपने नेतृत्व में सरकार का गठन किया।
((वीरेंद्र कुमार यादव के फेसबुक वॉल पर हर दिन पढि़ये बिहार विधान सभा की बैठकों में विधायकों का संबोधन))
अध्यक्ष महोदय, यह एनडीए की सरकार किसान विरोधी है और परिणामस्वरूप किसान विरोधी कृषि कानून केंद्र द्वारा बनाया गया है जबकि बिहार की एनडीए सरकार पहले ही किसानों को बिचौलियों के हाथों सुपुर्द कर चुकी है। राज्य में धान और गेहूं की बिक्री में बिचौलियों का बोलबाला रहता है। सरकारी सिस्टम जानबूझकर समय पर धान का क्रय नहीं करता है, जिसके कारण मजबूर किसान औने-पौने दामों पर धान-गेहूं बेचने के लिए विवश होता है। एनडीए को देश की समस्याओं को दूर करने में रूचि नहीं है, बल्कि लव जेहाद जैसे नारे देकर उसके लिये कानून बनाने में रूचि है। प्रधनमंत्री मोदी जी डर की राजनीति करते हैं और जंगल राज का नारा देकर इस चुनाव में मत हरण किया है। एनडीए हरेक मोर्चे पर विपफल रही है चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर हो या राज्य स्तर पर। वर्षों से भाजपा गठबंध्न की बिहार में सरकार है और 6 वर्षों से भाजपा की ही केंद्र में सरकार है लेकिन इस दौरान राज्य गरीबी और पिछड़ेपन से एक पायदान भी ऊपर नहीं उठा। पीठ चाहे भाजपा जितनी थपथपा ले। केन्द्र की भाजपा सरकार बिहार को प्रयोगशाला के रूप में देख रही है । 2015 में जब प्रधानमंत्री जी आरा में चुनावी सभा कर रहे थे तो उस दौरान उन्होंने बिहार को 1 लाख 65 हजार करोड़ रुपये का विशेष पैकेज विभिन्न योजनाओं हेतु देने की घोषणा की थी लेकिन उन घोषणाओं का कार्यान्वयन आज तक नहीं हुआ। उस घोषणा के बाद केन्द्रांश में कटौती की गई तथा राज्यांश में बढ़ोतरी की गई, जिस पर दिनांक 04 अप्रैल, 2016 को इसी सदन में वाद-विवाद हुआ और विशेष पैकेज के क्रियान्वयन और अनुश्रवण के लिए बिहार विधान सभा, सचिवालय द्वारा 25 अप्रैल, 2016 को विधान सभा अध्यक्ष के संयोजकत्व में एक समिति का गठन किया गया, जो आज भी पेंडिंग अवस्था में है।
अध्यक्ष महोदय, विशेष राज्य का दर्जा के संदर्भ में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर इस सदन से भारत सरकार को भेजा गया और जब नीतीश जी हमारे साथ थे तो वे जोर-शोर से लगे हुए थे लेकिन आज तक विशेष राज्य का दर्जा बिहार को केंद्र सरकार द्वारा नहीं दिया गया। अध्यक्ष महोदय, ईडब्लूएस के लिए संसद में संविधन संशोधन हो रहा था तो कांग्रेस पार्टी ने खुले दिल से उसका स्वागत किया और समर्थन देकर संविधन का हिस्सा बनाया। अभी तकनीकी सेवा आयोग द्वारा जो सामान्य चिकित्सकों की नियुक्ति हेतु अनुशंसा की गयी, उसमें ईडब्लूएस कैटेगरी में बैकलॉग की व्यवस्था नहीं रहने के कारण अन्य लोगों का चयन शेष रोस्टर के आधार पर कर दिया गया, जिसके कारण संविधान की भावना ही समाप्त हो गई। ईडव्लूएस में भी अन्य वर्गों की तरह बैकलॉग की व्यवस्था की जानी चाहिये।
अध्यक्ष महोदय, मैंने सदन में और सदन के बाहर भी गेट पर घुसते ही देखा है कि महात्मा गांधी के सात सामाजिक पापों का उल्लेख किया गया है, जिसका पहला है सिद्धांत विहीन राजनीति। क्या भाजपा की केंद्र और राज्य में सरकार बनने के बाद से राजनीति में सिद्धांत रह गया है, जो आप खुद देख रहे हैं। अध्यक्ष महोदय, अब मैं राज्य में सरकारी सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार का उल्लेख करना चाहता हूं। बचपन से ही सुनते आ रहा हूं कि ‘जीते लकड़ी मरते लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का’ यही हाल सरकारी सिस्टम में भ्रष्टाचार का है। बिहार का नागरिक जन्म प्रमाण पत्र से लेकर मृत्यु प्रमाण पत्रा बनवाने के लिए घूस देने के लिए विवश है।
अध्यक्ष महोदय, शिक्षा किसी भी राज्य के विकास की रीढ़ होती है। शिक्षा की जो स्थिति है उस पर एक दो बातें मैं कह देना चाहता हूं। एनडीए की सरकार बनते ही 2006 में नियमावली बनाकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति की गई, जिसे आज सामान्य बोलचाल की भाषा में नियोजित शिक्षक कहते हैं। शिक्षकों की नियुक्ति प्राप्तांक के आधार पर हुई। नियुक्ति के बाद सरकार ने यह निर्णय लिया कि जो नियोजित शिक्षक हैं, उनका एसटीईटी लेकर उनकी मेधा की जांच की जाएगी। किस दृष्टिकोण से यह विवेकपूर्ण निर्णय है कि पहले नियुक्ति की जाये फिर उस पर जांच बैठाई जाय? उच्च शिक्षा की बदहाली किसी से छिपी हुई नहीं है। आए दिन सदन में चर्चा होती रही कि सहायक प्राध्यापकों की कमी है। उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया का आधार जो रखा गया है वह दोषपूर्ण है। लिखित परीक्षा नहीं रखकर एकेडमिक आधर रखा गया है, जबकि छत्तीसगढ़, यू.पी. में सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति लिखित परीक्षा के आधार पर होती है। यहां भी एकेडमिक और इंटरव्यू को समाप्त कर लिखित परीक्षा के आधर पर सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति की जानी चाहिये ताकि उच्च शिक्षा की बदहाली दूर हो सके। अध्यक्ष महोदय, शैक्षणिक माहौल खराब होने से केवल शिक्षा का स्तर खराब नहीं होता है, बल्कि राज्य की इकोनॉमी भी बर्बाद होती है। राज्य से बाहर पहले उच्च शिक्षा के लिए लोग पलायन करते थे अब प्राथमिक शिक्षा के लिए भी पलायन कर रहे हैं, जिस पर अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं। पैसा इस राज्य का और खर्च हो रहे है दूसरे राज्यों में, ऐसी स्थिति में इस राज्य का विकास हो ही कैसे सकता है। अध्यक्ष महोदय, इस पर विचार करने की जरूरत है।
अध्यक्ष महोदय, राज्य में बड़े-बड़े भवन और कुछ सड़कें बनी हैं लेकिन क्या उनकी गुणवत्ता का स्तर सही है और यदि स्तर सही है तो बार-बार रेट एस्केलेशन क्यों हुआ है। जो योजना 100 से 200 करोड़ से शुरू होती है, वह 500-700 करोड़ तक क्यों पहुंच जाती है। पूर्व मुख्यमंत्री मांझी जी, जो आज आपके सहयोगी हैं, उन्होंने अपने मुख्यमंत्री काल में ही घोषणा की थी कि राज्य में एस्टीमेट घोटाला हो रहा है, जिसकी जांच कराएंगे, लेकिन वह जांच ठंडे बस्ते में चली गयी। अध्यक्ष महोदय, बड़े-बड़े पैकेज बनाकर बाहर की कंपनियों को ठेका दे दिया जाता है और राज्य के सभी छोटे-बड़े ठेकेदारों को काम से बाहर कर दिया गया है, हालांकि राज्य में जितने भी काम हो रहे हैं, वह सभी बिहार राज्य के ही ठेकेदार मजबूरन पेटी कॉन्ट्रैक्ट के तहत काम लेकर काम करा रहे हैं। ये जो बड़ी-बड़ी एजेंसियां हैं, उनको बड़े पैकेज बनाकर काम आवंटित करने के पीछे जो उद्देश्य है, वह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है। अध्यक्ष महोदय, 2016 में यहां शराबबंदी कानून लाया गया, जिस पर हमलोगों की भी सहमति थी, लेकिन क्या यह कानून पूरी तरह से लागू हुआ? लाखों लोग जेल यात्री हो गये और शराब धड़ल्ले से घरों तक पहुंच रही है। युवा लड़के – लड़कियां शिक्षा छोड़कर डिलीवरी ब्वाय हो गये हैं। जहां पहले शराब लेने के लिए लोग दुकान तक जाते थे, आज उनके घर पर सुविधाजनक तरीके से शराब दोगुने कीमत में पहुंचाई जा रही है। शराबबंदी यदि लागू हो तो पूरे तौर पर लागू हो अन्यथा इसमें आवश्यक संशोधन किया जाये। अंत में अध्यक्ष महोदय, एक बात का उल्लेख करते हुये अपनी बात को समाप्त करूंगा। भारतीय जनता पार्टी ने अपने मैनीपफैस्टो में 19 लाख रोजगार दिये जाने की घोषणा की। राज्य के बेरोजगार आशा भरी निगाहों से उस दिन की बाट जोह रहे हैं कि किस दिन 19 लाख रोजगार उनको मिलेगा। मैं आशा करता हूं कि आने वाले बजट सत्र तक 19 लाख रोजगार सरकार राज्य के बेरोजगारों को दे देगी। माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने समय दिया, इसके लिये आपको तथा सदन ने मुझे सुना, इसके लिये सदन के सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं।