रमजान के महीने में बिहार की राजधानी में इफ्तार पार्टी की होड़ लगी रही। इस शाम इस पार्टी की ओर से इफ्तार तो उस शाम उस पार्टी की ओर से इफ्तार। राजनीति में यह सामान्य प्रक्रिया रही है। कोरोना के कारण पिछले दो साल पार्टियों की ओर से कोई इफ्तार पार्टी नहीं आयोजित की गयी। तीसरे वर्ष इफ्तार इतनी धारदार हुई कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की ओर से आयोजित इफ्तार में पैदल ही पहुंच गये। इफ्तार का आयोजन पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास में किया गया था। मुख्यमंत्री आवास और राबड़ी देवी के आवास की दूरी एक सड़क की है। सर्कुलर रोड में एक ओर राबड़ी देवी का आवास और दूसरी ओर नीतीश कुमार का आवास है।
इफ्तार का पहला राजनीतिक आयोजन भाजपा की ओर से किया गया था। उसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी गये थे। दूसरा आयोजन तेजस्वी यादव की ओर से किया गया था।
दरअसल तेजस्वी यादव की इफ्तार में नीतीश कुमार के शामिल होने के बाद इसके राजनीतिक मायने तलाशे जाने लगे। सत्ता के गलियारे में चर्चा के अनुसार, राजद प्रमुख लालू यादव की सहमति के बाद तेजस्वी यादव की ओर से इफ्तार के लिए आमंत्रण नीतीश कुमार को भेजा गया था। उधर, जदयू की ओर से आयोजित इफ्तार में तेजस्वी यादव शामिल हुए। इसके बाद राजनीति में चर्चा गरम हुई कि ‘पलटू’ भाई के प्रति लालू यादव का मन ‘पलट’ रहा है। भाजपा की ओर से नीतीश कुमार पर हो रहे हमले से राजद प्रमुख काफी आहत हैं। इसलिए मुख्यमंत्री के ‘भाजपाई’ घाव को सहलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। राजद के हाथ को हाथ में लेकर नीतीश कुमार ने थोड़ी राहत महसूस की और राजद के आमंत्रण को अस्वीकार नहीं कर सकें। इस मौके को मुख्यमंत्री ने भाजपा पर दबाव के रूप में भी इस्तेमाल किया। लेकिन इसके साइट इफेक्ट से बचने के लिए जदयू सुप्रीमो अगले ही दिन 23 अप्रैल को पटना हवाई अड्डे पर आये भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह के स्वागत के लिए हाजिर हो गये। अमित शाह ने भी जगदीशपुर में आयोजित सभा में नीतीश कुमार की जमकर तारीफ की और उनकी कार्यशैली की सराहना की। इतना ही नहीं, बल्कि अमित शाह ने लालू यादव के खौफ से बचने का ‘ताबिज’ भी नीतीश कुमार को बताया।
इस घटनाक्रम के बाद जदयू की ओर भी इफ्तार आयोजित किया। इसमें मुख्यमंत्री के साथ तेजस्वी यादव भी शामिल हुए। वहां से दोनों साथ-साथ बाहर निकले। इस नजदीकी को भी भाजपा के नाक के आगे खैनी ठोकने के रूप में देखा गया। मतलब भाजपा के दबाव को खारिज करने के रूप में देखा गया। उधर, इफ्तार की पार्टी कांग्रेस और हम की ओर से आयोजित की गयी।
मुख्यमंत्री ने भाजपा, राजद के साथ अन्य पार्टियों के दावत में शामिल हुए। विधान परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह भी ऐसे दावतों में दिखे। भाजपा के मंत्री शाहनवाज हुसैन भी सभी पार्टियों के खास मेहमान थे। भाजपा के सांसद सुशील मोदी सेलेक्टेड पार्टियों में ही दिखे। चिराग पासवान भी इफ्तार का आंनद उठाते रहे। मंत्री अशोक चौधरी भी आमतौर पर मुख्यमंत्री के साथ ही नजर आये। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी कई जगह दिखे। सभी इफ्तार पाटियों में खास मेहमानों के लिए खास व्यवस्था थी। उनके सामने ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बैठने की व्यवस्था की जाती थी। कौन कहां बैठेगा, यह हर पार्टी की अपनी-अपनी व्यवस्था थी। कांग्रेस पार्टी की दावत में तेजस्वी यादव भी नजर आये। जदयू के कार्यक्रम में जदयू कोटे के मंत्री और भाजपा के कार्यक्रम में भाजपा कोटे के मंत्री बड़ी संख्या में मौजूद थे। एनडीए के विभिन्न दलों की ओर से आयोजित इफ्तार पार्टी को लेकर एक पत्रकार साथी की टिप्पणी बड़ी रोचक थी। उन्होंने कहा कि जो एनडीए अपने गठबंधन से एक विधायक नहीं जीतवा पाया, वह अब इफ्तार के नाम पर नेताओं भीड़ जुटा कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा है।
भोज-भात की राजनीति काफी पुरानी है। इफ्तार पर नेताओं भी भीड़ हसोतने (जमा करना) की इतनी जबदरस्त होड़ पहली बार दिख रही थी। राजद के भोज में शामिल होकर नीतीश कुमार ने इफ्तार की पार्टी का महत्व बढ़ा दिया है। इफ्तार को राजनीतिक हैसियत से जोड़ दिया गया है। लेकिन जब भोज की बात आती है तो इसकी निरर्थकता किसी से छुपी हुई नहीं है। नीतीश कुमार ने 2010 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मान में आयोजित भोज को कैंसिल करके भी भाजपा के साथ राज करते रहे थे। सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा ने अपमान का घुंट पीकर भी नीतीश कुमार को समर्थन करती रही, जब तक नीतीश कुमार ने भाजपा को धकिया कर सरकार से बाहर नहीं किया था। ठीक आज भी वही स्थिति उत्पन्न हो गयी है। नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के इफ्तार पार्टी का खजूर खाकर भी विधान सभा में तेजस्वी के साथ खड़े नहीं हो सकते हैं, जब तक भाजपा नीतीश कुमार को धकिया कर 10 नंबर सर्कुलर रोड जाने को विवश नहीं कर दे।
फिलहाल बिहार की राजनीति में झांसा-झांसा खेला जा रहा है। हर पार्टी दबाव के लिए अपनी-अपनी चाल चल रही है। इफ्तार में अधिकाधिक नेताओं की भीड़ जुटाना झांसे को भरोसा बताने की कोशिश ही थी। लेकिन इसकी कोई राजनीतिक परिणति होने वाली नहीं है, इतना तय है।