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राज्य सभा चुनाव
भाजपा : सतीश चंद्र दूबे — ब्राह्मण
: शंभूशरण पटेल — धानुक
राजद : मीसा भारती — यादव
: फैयाज अहमद— मुसलमान
जदयू : खीरु महतो — कुर्मी
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राज्यसभा की पांच सीटों का चुनाव संपन्न हो गया। राजद की मीसा भारती और भाजपा के सतीश चंद्र दूबे दुबारा चुन लिये गये हैं, जबकि तीन नये उम्मीदवारों को भी मौका मिला है। राजद ने पूर्व विधायक डॉ फयाज अहमद, जदयू ने झारखंड जदयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरु महतो (कुर्मी) और भाजपा ने शंभूशरण पटले (धानुक) को पहली बार मौका दिया है। भाजपा ने निवर्तमान सांसद गोपाल नारायण सिंह और जदयू ने केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को उम्मीदवार नहीं बनाया था। इन दोनों का कार्यकाल आगामी 7 जुलाई को समाप्त हो रहा है।
इस पांच सीटों के माध्यम से तीनों दलों ने अपने-अपने जातीय और सामाजिक आधार को साधने की पूरी कोशिश की है। राजद ने अपने मूल आधार यादव और मुसलमान को बांधने की पूरी कोशिश की है। इसी के तहत मीसा भारती और फैयाज अहमद को राज्यसभा भेजा गया। जदयू ने अपने कुर्मी आधार को मजबूत बनाये रखने का पूरा प्रयास किया है। निवर्तमान सांसद आरसीपी सिंह कुर्मी हैं और नीतीश कुमार के विश्वासपात्र भी रहे हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा नीतीश कुमार के सान्निध्य में शुरू हुई थी और उन्हीं की अनुकंपा से 12 वर्षों तक राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन जब राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो मुख्यमंत्री की अनदेखी करके खुद केंद्रीय मंत्री बन गये। आरसीपी सिंह का मंत्री बनना उनका अपने हित में लिया गया सर्वोत्तम निर्णय था। दो बार राज्यसभा में जाने के बाद तीसरी बार भी पार्टी राज्यसभा भेजती, इसकी कम गु्ंजाईश थी। इस बात से आरसीपी सिंह भी अवगत थे। इस कारण नीतीश की अनदेखी कर केंद्रीय मंत्री बने। परिणाम सबके सामने है। उधर नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह की जगह कुर्मी खीरु महतो को राज्य सभा में भेजा। इसके माध्यम से कुर्मी समाज को यह संदेश दिया गया कि पार्टी का कुर्मी समाज पर पूरा भरोसा है।
इस बार जदयू और राजद कुर्मी, यादव और मुसलमान से आगे नहीं बढ़ पाये। इसे आप ‘कुर्माइ’ का दायरा भी कह सकते हैं। दोनों पार्टियों अपने आधार वोट कुर्माइ में उलझ कर रह गयी, जबकि भाजपा ने अपनी जातीय दायरे को बढ़ाने का पूरा प्रयास किया। उसने राजपूत गोपाल नारायण सिंह का टिकट काटकर धानुक शंभूशरण पटेल को राज्य सभा में भेजा। धानुक कुर्मी की श्रेणी की लोवर कास्ट है और इसकी बड़ी आबादी कुछ इलाकों में है। इस जाति पर नीतीश कुमार की पकड़ मानी जाती है। हाल के वर्षों में भाजपा ने जदयू के आधार वोट पर सेंधमारी तेज कर दी है। पहले कुशवाहा जाति को अपने साथ करने के लिए सम्राट चौधरी को आगे बढ़ाया और मंत्री बनाकर उनका कद बढ़ाया। पार्टी ने पटना के बापू सभागार में कुशवाहा सम्मेलन भी किया। अब भाजप ने धानुक को साधने की कोशिश की है। मुंगेर-बेगूसराय समेत मधुबनी, दरभंगा और उत्तर बिहार के अन्य जिलों में धानुक जाति की अच्छी आबादी है। धनिक लाल मंडल और मंगनी लाल मंडल धानुक जाति से ही आते हैं। शंभूशरण पटेल के नामांकन के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने कहा कि पार्टी पहली बार किसी धानुक जाति के व्यक्ति को राज्यसभा भेज रही है। इससे पहले मंगनीलाल मंडल धानुक जाति के पहले प्रतिनिधि के रूप में राजद के टिकट पर राज्यसभा जा चुके थे।
राज्य सभा चुनाव के माध्यम से भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसका मसकद अब सवर्ण और बनिया जाति से आगे बढ़ते हुए मजबूत पिछड़ी जातियों को साधना है। इसी सिलसिले में कुशवाहा के बाद धानुक पर निशाना साधा है। यादवों को साधने का अब तक भाजपा का प्रयास विफल हो गया है। कुर्मी जाति में सेंधमारी असंभव है, जबकि मुसलमान भाजपा के लिए हाशिये के विषय हैं। इसलिए भाजपा बिहार में इन तीन जातियों को छोड़कर अन्य जातियों को साधने का अभियान चला रही है। राज्यसभा चुनाव के लिए पांच सदस्यों का चयन जाति आधार को साधने और बांधने की कोशिश है। इस प्रयास में राजद और जदयू ने अपने मूल जातीया आधार को बांधने का प्रयास किया है तो भाजपा नयी जाति समूह में आधार बढ़ाने की कवायद में जुट गयी है।