कुत्तों की कई वेराईटी होती है। स्ट्रीट डॉग से लेकर एसी डॉग तक। झबरा, लबरा, गबरा। देसी-विदेसी। और भी कई प्रकार के कुत्ते मिल जाएंगे। कुत्ता खाय-अघाय लोगों की पसंद रहा है। निठले बाप को रोजगार देने के काम भी आता है कुत्ता। नव धनाढ्य लोगों की संतानों की पंसद में कुत्ता ही सर्वोपरि है। उनके लिए कुत्ता एस्टेटस सिंबल है। बेटों के लिए धन अरजने वाले बाप के पास बुढ़ापे में कोई काम नहीं रहता है। इसलिए बेटा कुत्ता खरीद लाता है। दिन भर कुत्ता के साथ बेटा खेलता है। कुत्ते को पखाना कराने और पखाना साफ करने का काम का बाप को सौंप दिया जाता है।
इधर हाल में कुत्ते की एक नयी प्रजाति आयी है- समाजवादी कुत्ता। कुत्तों की सामंतवादी और पूंजीवादी प्रजाति पहले से व्याप्त रही है। समाजवादी कुत्ता सामंतवादी या पूंजीवादी कुत्तों से किसी भी प्रकार से उन्नीस नहीं है। पहले आमतौर पर अभिजात्य जातियों या वर्गों के घरों में ही कुत्ते पाये जाते थे। निजी सुरक्षा की सबसे भरोसेमंद एजेंसी कुत्तों को ही माना जाता है।
समाजवादी लोगों के घरों पर पहले राजनीतिक या सामाजिक कार्यकर्ता आते थे। उनके साथ नेता घुलमिलकर रहते थे। इसलिए न सुरक्षा की चिंता थी, न कुत्ते की जरूरत। लेकिन अब समाजवादी भी तथाकथित समाजवादी हो गये हैं। सामाजिक या राजनीतिक कार्यकर्ताओं का घरों पर आमद कम हो गया है। इसलिए इस खाई को भरने के लिए कुत्ते को साथी बनाने का प्रचलन शुरू हुआ। इस परंपरा का तेजी से विस्तार हो रहा है। समाजवादी नेताओं के घरों में कुत्तों का दखल बढ़ता जा रहा है। नेताजी बाद में मिलते हैं, कुत्ता पहले स्वागत करता है। कई बार कुत्ता देह पर चढ़कर अपने होने का अहसास करा देता है। आप कुत्ते के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकते हैं। क्योंकि कुत्ता नेताओं के कार्यकर्ताओं के साथ छोड़ने से खाली हुई जगह को भरने के लिए आया है। आप नेताओं के खिलाफ भी कुछ नहीं बोल सकते हैं। क्योंकि बेचारा नेता भी विवश है। कार्यकर्ता मिलते नहीं हैं, सामाजिक और राजनीतिक जिम्मेवारी शादी और श्राद्ध में शामिल होने तक सिमट गयी है। अगर जनप्रतिनिधि हैं तो ‘फंड’ मांगने वाले ही हिसाब-किताब करने आते हैं। वैसे में समाजवादी लोग भी अपना जीवन-स्तर सुधार रहे हैं। कुत्ता को आदमी बना रहे हैं और उन्हें गले लगा रहे हैं।
एक बात और, समाजवादी नेताओं का घर पहले कार्यकर्ताओं ने छोड़ा या कुत्तों ने उनकी जगह पर अपना ठिकाना बना लिया। यह समझ से परे हैं। लेकिन इतना तय है कि राजनीति के मैदान में सामंतवादी, पूंजीवादी या समाजवादी नेताओं के जनता के साथ व्यवहार में कोई अंतर नहीं रह गया है। जनता की जगह कुत्तों को तीनों ने बराबर रूप से तरजीह दी है। इसलिए नेताओं के घर पर कार्यकर्ता नेताजी की उपस्थिति से पहले कुत्ते की उपस्थिति की जानकारी हासिल कर लेना चाहता है। क्योंकि नाराज नेता बाद में नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन नाराज कुत्ता पहले ही अस्पताल पहुंचा देगा।