बिहार विधानसभा का शताब्दी वर्ष समापन समारोह में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 जुलाई को बिहार विधानसभा के प्रांगण में आ रहे हैं। हमारे देश में 28 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश मिलाकर कुल 31 विधानसभा है। इन 31 विधानसभाओं में बिहार विधानसभा का सदस्य के अनुसार चौथा स्थान है। प्रथम उत्तर प्रदेश, जहां 403 सदस्य हैं और दूसरा पश्चिम बंगाल, जहां 294 हैं और तीसरा महाराष्ट्र, जहां 288 विधायक हैं और चौथा बिहार, जहां 243 सदस्य है। आजाद भारत के इतिहास में किसी प्रधानमंत्री का आगमन देश के किसी भी विधानसभा के प्रांगण में अगर पहली बार हो रहा है तो वह है बिहार विधानसभा का प्रांगण। बिहार विधानसभा के प्रांगण में आजादी से लेकर अभी तक देश के कई राष्ट्रपति, लोकसभा के अध्यक्ष एवं कई केंद्रीय मंत्री आ चुके हैं, परंतु बिहार विधानसभा का प्रांगण अभी तक सिर्फ प्रधानमंत्री के आगमन से वंचित था, जो प्रधानमंत्री मंगलवार 12 जुलाई को इस प्रांगण में आकर स्वर्णिम इतिहास रचेंगे।
सौजन्य : राजीव कुमार
बिहार के विधायी इतिहास में सात फरवरी, 1921 महत्वपूर्ण तिथि है। इसी तारीख को पटना में लेजिस्लेटिव काउंसिल की पहली बैठक हुई थी। यह बैठक उसी भवन में हुई थी, जिसे आज बिहार विधानसभा के नाम से जाना जाता है। दरअसल 1919 में बिहार एवं उड़ीसा को स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिला था और इसके पहले गवर्नर लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा बने। लेजिस्लेटिव काउंसिल में सदस्यों की संख्या 103 तय की गई। उनमें 76 निर्वाचित एवं 27 राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य थे। मार्च, 1920 में लेजिस्लेटिव काउंसिल का भवन बनकर तैयार हुआ। इस भवन में काउंसिल की पहली बैठक सात फरवरी, 1921 को हुई, जिसे लार्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने गवर्नर के रूप में संबोधित करते हुए भवन का उद्घाटन किया। उल्लेखनीय है कि इस बैठक और भवन के शुभारंभ के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समारोह का आयोजन किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री का कार्यक्रम बिहार विधानसभा के पूर्वी द्वार पर आयोजित किया गया है। बिहार विधानसभा का पूर्वी द्वार के सामने आप लोग शहीद स्मारक देखते होंगे। यह वही शहीद स्मारक है, जहां 11 अगस्त, 1942 को हजारों लोग स्कूल और कॉलेज के नौजवान छात्र शामिल थे। पटना सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ एक विशाल जुलूस लेकर चले और अंग्रेज की पुलिस ने गोलियां चलाई, जिसके फलस्वरूप 7 नौजवान मारे गए और इन 7 नौजवानों ने पुलिस की अन्याय पूर्ण गोलियां का सामना करते हुए अपने प्राणों की आहुति देकर एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। जो आज ये 7 शहीदों की याद में शहीद स्मारक है और ठीक शहीद स्मारक के 100 गज के सामने प्रधानमंत्री का कार्यक्रम निर्धारित है।
बिहार विधानसभा का भवन राज्य का एक संवैधानिक भवन है, जहां से पूरे राज्य का संवैधानिक ढांचा नियंत्रित होता है। आजाद भारत में सर्वप्रथम 1952 में हमारे देश में विधानसभा का चुनाव हुआ था। 1952 में बिहार विधान सभा में सदस्यों की संख्या 330 थी। 1957 से लेकर के 1972 तक सदस्यों की संख्या 319 थी। 1977 से लेकर के 2000 तक सदस्यों की संख्या 325 थी, जिसमें एक मनोनीत सदस्य भी थे। वर्ष 2000 में जब झारखंड बिहार से अलग हुआ, तब बिहार विधानसभा में सदस्य 243 रह गई, जो अब तक विद्यमान है। 1952 से 2020 तक यह विधानसभा भवन से अभी तक 5008 विधायक निर्वाचित हुए। कुछ सदस्य उप निर्बाचन से विधायक बने। यह विधानसभा भवन 1952 से लेकर के अभी तक राज्य के 23 व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया। इसमें दो व्यक्ति कार्यवाहक मुख्यमंत्री और 16 व्यक्ति को बिहार विधानसभा का अध्यक्ष बनाया। 20 व्यक्ति को सदन में प्रतिपक्ष के नेता बनने का मौका दिया।
यह भवन का प्रांगण लोकतंत्र का एक ऐसा बगीचा है, जो भी व्यक्ति इस बगीचा में अपनी अच्छी बागवानी की, मृत्योपरांत भी अमर रहा। आज इस भवन की जब हमलोग चर्चा कर रहे हैं तो हम बिहार केसरी श्रीबाबू को नहीं भुला सकते हैं। हम केबी सहाय, बाबू अनुग्रह नारायण सिंह, महेश बाबू, पंडित विनोदानंद झा, जननायक कर्पूरी ठाकुर के कार्यों और परिश्रम से इस धरती का नाम ऊंचा हुआ। ठीक उसी प्रकार जब हम इस सभा के अध्यक्ष की बात करेंगे तो राम दयालु सिंह, बिंदेश्वरी प्रसाद वर्मा, धनिक लाल मंडल, लक्ष्मीनारायण सुधांशु, हरिनाथ मिश्रा और राधा नंदन झा इस सभा की प्रारंभिक बेला में अपने लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संवैधानिक ढांचा से इस सभा का नाम रोशन किया और जीवंत रखा। बिहार विधान सभा सचिवालय का सफल संचालन करने हेतु न्यायिक पदाधिकारी के रूप में सचिव का पदस्थापना होता है। यह अपार हर्ष की बात है विश्वनाथ मिश्रा, गोविंद मोहन मिश्रा, राम नरेश ठाकुर, अभी हाल ही में शैलेंद्र सिंह न्यायिक सेवा के पदाधिकारी के रूप में इसी भवन से पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। इस सभा में 20 व्यक्ति प्रतिपक्ष के नेता बने और लालू प्रसाद यादव एकमात्र प्रतिपक्ष के नेता, आजादी से लेकर अभी तक हैं, जो पहले सदन के नेता प्रतिपक्ष बने और उसके बाद मुख्यमंत्री बने। आज तक 5 मुख्यमंत्री प्रतिपक्ष के नेता बने, उसमें भोला पासवान शास्त्री, डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा, दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर और राबड़ी देवी शामिल हैं। इस भवन में राज्य के 16 व्यक्ति अभी तक विधानसभा के उपाध्यक्ष बने हैं, सिर्फ एक उपाध्यक्ष स्वर्गीय राधा नंदन झा उपाध्यक्ष से अध्यक्ष बने और और शेष सभी माननीय उपाध्यक्ष रहे। यह भवन आजादी से लेकर अभी तक 7 बार बिहार में राष्ट्रपति शासन देखा अर्थात 972 दिन बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा।
प्रधानमंत्री श्री मोदी सर्वप्रथम शताब्दी स्मृति स्तंभ का उद्घाटन करेंगे, जो 25 फीट ऊंचा और अष्टकोणीय होगा। इस स्तंभ की मुख्य विशेषता यह है इसमें कुल 100 पाटिका होगी, जो बिहार विधानसभा भवन के 100 वर्ष पूरे होने का संकेत होगा। इस स्तंभ के ऊपर मेटल्स का बना बोधि वृक्ष होगा, जिसकी ऊंचाई 15 फीट होगी, इसमें कुल 9 मुख्य डालियां, 38 शाखाएं एवं 243 पतियां होगी, जो बिहार में कुल 9 प्रमंडल, 38 जिला एवं 243 विधानसभा क्षेत्र की प्रतीक होंगी।
प्रधानमंत्री लोकसभा की तर्ज पर बिहार विधानसभा में एक म्यूजियम की आधारशिला रखेंगे। यह म्यूजियम बिहार लोकतांत्रिक सभ्यता एवं विशेषता का प्रतीक रहेगा। बिहार विधानसभा देश का पहला विधानसभा होगा, जो लोकसभा के बाद बिहार विधानसभा प्रांगण में अपने लोकतांत्रिक व्यवस्था की म्यूजियम की स्थापना करने जा रहा है। यह बिहार का एक अनोखा संग्रहालय होगा, जहां बिहार विधानसभा के अध्यक्षों एवं बिहार विधानसभा के सदस्यों के द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों का भी उल्लेख रहेगा।
बिहार विद्या, धर्म और कला का पीठस्थल रहा। यह बिहार भगवान बुद्ध, श्रमण महावीर और गुरु गोविंद सिंह जैसे अहिंसा, कर्म, त्याग और देश प्रेम के महान संदेशवाहकों का जन्म स्थल है। इस भूमि ने जनक जैसे राजा, अशोक जैसे सम्राट, समद्रगुप्त जैसे अपराजय विजेता, चंद्रगुप्त जैसे प्रशासक, बाबू कुंवर सिंह जैसे वीर योद्धा, कौटिल्य जैसे बुद्धिमान राजनीति और पतंजलि जैसे भाषाविद, यागवल्यक जैसे निस्नात विद्वान, मंडन मिश्र जैसे दार्शनिक एवं बाबा विद्यापति जैसे महान कवि को जन्म दिया। महाविद्वान आर्यभट्ट का प्रादुभर्व इसी स्थान पर हुआ था। हमारे इन महान सपूतों ने भारतीय इतिहास और सभ्यता पर अमिट छाप छोड़ी है। आज वही बिहार फिर एक बार स्वर्णिम इतिहास रचने जा रही हैं। लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री का आगमन 12 जुलाई 2022 को बिहार विधानसभा के इतिहास में स्वर्णिम इतिहास काल माना जाएगा।
(छाया: सोनू किशन)