10 अगस्त को नीतीश कुमार आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। संभवत: किसी मुख्यमंत्री का आठवीं बार शपथ ग्रहण का रिकार्ड होगा। उनके साथ उपमुख्यमंत्री के रूप तेजस्वी यादव भी दूसरी बार शपथ लेंगे।
सत्ता के ‘खटाल’ में नीतीश कुमार गाय-भैंस की तरह सहयोगी बदलते रहे हैं। 2013 में भाजपा को सत्ता से बाहर किया तो निर्दलीयों को समेटा। 2015 में जीतनराम मांझी को कुर्सी से हटाने के लिए राजद को साथ लिया। राजद के साथ 2015 में सत्ता में आये तो उनकी अंतरात्मा जाग गयी। 2017 में फिर भाजपा के साथ हो लिये। 2020 में भाजपा से लगभग आधी सीट जीतने के बावजूद उन्होंने मुख्यमंत्री पद स्वीकार किया। भाजपा की अनुकंपा पर मुख्यमंत्री बने। लेकिन भाजपा जब अनुकंपा की कीमत वसूलने लगी तो नीतीश फिर राजद के साथ हो लिये। अब तीसरी बार राजद के सहयोग से सरकार बना रहे हैं। फरवरी, 2015 में राजद मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का सपोर्ट किया था, लेकिन सरकार में शामिल नहीं था।
नीतीश कुमार की आठवीं पारी तेजस्वी यादव के साथ शुरू हो रही है। नयी पारी में सत्ता के खटाल पर नीतीश का कब्जा यथावत बना रहेगा, लेकिन खटाल अगोरने का जिम्मा तेजस्वी यादव को सौंप दिया गया है। क्योंकि जिन सात सहयोगियों के साथ नीतीश सरकार बना रहे हैं, उनमें से पांच तेजस्वी कैंप के ही हैं। जीतनराम मांझी अकेले स्टेपनी की तरह जदयू से चिपके रहे हैं। नयी सरकारी चलती रही, इसकी जिम्मेवारी तेजस्वी यादव को उठानी होगी। नीतीश कुमार अब बहुमत की नहीं, बल्कि बहुसंख्यक की सरकार चला रहे हैं। इस सरकार में पार्टियों की कोई वैचारिक धारा या मत नहीं है। सब विधायकों की संख्या के आधार पर बहुसंख्यक हो गये हैं। तेजस्वी यादव को अपनी कुर्सी बरकरार रखने के लिए नीतीश कुमार की शर्तों के साथ चलना होगा। अन्यथा नीतीश कुमार के लिए भाजपा का आंगन भी समतल ही है।
नयी सरकार में तेजस्वी यादव की सामाजिक जिम्मेवारी ज्यादा होगी। उन्हें अपनी जातीय आधार को अधिक संयमित और अनुशासित रखना होगा। सत्ता का उन्माद सबसे ज्यादा यादव और भूमिहारों के सिर चढ़कर बोलता है। विधान सभा अध्यक्ष के रूप में विजय कुमार सिन्हा का ‘उन्माद’ बिहार झेल चुका है। नीतीश कुमार के साथ भाजपा के संबंधों में दरार की सबसे बड़ी वजह स्पीकर ही रहे हैं। नये स्पीकर के चुनाव तक कड़वाहट और बढ़ने की आशंका बरकरार है।
बिहार की राजनीति ने एक नया मुहावरा गढ़ दिया है। आये नीतीश, गये नीतीश। नीतीश कुमार अब समझौता के व्यक्ति रह गये हैं, भरोसे के व्यक्ति नहीं। सत्ता के लिए अपने मनोनुकूल परिभाषा गढ़ लेते हैं। 2017 में उनकी अंतरात्मा जाग गयी थी और 2022 में भाजपा की राह भटक गयी। 10 अगस्त को बन रही नयी सरकर का कंटैक्ट कितने दिनों का है, तय नहीं है। इस परिस्थिति में तेजस्वी यादव को ज्यादा सचेत और सतर्क रहने की जरूरत है। पार्टी कार्यकर्ताओं को जनाधार विस्तार के लिए मैदान में झोंकना होगा। सामाजिक समन्वय और सामाजिक आयोजनों में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करना होगा। कार्यकर्ताओं के आर्थिक न्याय के लिए भी उन्हें कार्ययोजना बनानी होगी। इन सबसे बड़ी बात है कि नीतीश कुमार के आधार वोट को राजद के आधार वोट के साथ जोड़ना होगा।
उधर, भाजपा ने नीतीश कुमार के साथ छोड़ने को लेकर कहा है कि यह जनादेश के साथ विश्वासघात है। लेकिन भाजपा ने यही काम 2017 में किया था, तब उसे जनादेश का सम्मान कैसे कहा जा सकता था। हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि पार्टी 2024 के लोकसभा और 2025 के विधान सभा चुनाव अकेले लड़ेगी। इन दोनों चुनावों में महागठबंधन का सफाया हो जायेगा। वैसे मंगलवार को दिन भर राजभवन के पास राजनीतिक सरगर्मी बनी रही और हम ईख का रस पीकर गरमी से निजात पाने की कोशिश करते रहे।
nitish tejswi oth 10 august