वीरेंद्र यादव न्यूज की यात्रा दिसंबर, 2015 में शुरू हुई थी। अब तब इस पत्रिका के 84 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। इसका पहला अंक 3 दिसंबर, 2015 को विधान सभा में राज्यपाल के अभिभाषण के बाद विधायकों के बीच वितरित किया गया था। न लोकार्पण, न उद्घाटन। सीधे पाठकों के हाथ में पत्रिका पहुंचा दी गयी थी। इस पत्रिका का सबसे बड़ा पाठक वर्ग विधायक और विधान पार्षद ही हैं। यह अलग बात है कि इसके डिजीटल एडिशन के पाठक एक लाख के करीब हैं। पाठक हमारी ताकत हैं और आर्थिक संसाधनों के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत भी।
पिछले लगभग सात वर्षों की निर्बाध यात्रा में पत्रिका ने चार सरकारों के बनते और बिगड़ते देखा है। हर बार ‘ठूठ पर कबूतर’ की तरह सत्ता शीर्ष पर नीतीश कुमार की विराजमान दिखे। कभी सरकार बचाने के लिए तो कभी पार्टी बचाने के लिए। और हर बार बिहार बचाने का दावा किया गया। बिहार की राजनीति का दुर्भाग्य है कि यहां विपक्ष कभी नहीं रहा। बिहार में एक सत्ता पक्ष रहा और दूसरा संभावित सत्ता पक्ष। दूसरा संभावित सत्ता पक्ष को विपक्षी पार्टी बताया जाता रहा। पिछले सात वर्षों में विपक्ष में भाजपा हो या राजद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ कभी तथ्यगत और दस्तावेजी विरोध नहीं कर पाये। उनका पूरा विरोध सिर्फ प्रेस रिलीज तक ही सिमटा रहा। इसकी वजह यह रही है कि नीतीश कुमार कब भाजपा या राजद के शरण में चले जाएं या भाजपा या राजद नीतीश कुमार के चरण में चले जाएं, कुछ तय नहीं था। इसलिए विरोधी दल बिहार में सिकहर टूटने के इंतजार में घुंट-घुंट कर मरने का अभिशप्त रहा है। लेकिन जब भाजपा ने जदयू को समाप्त करने की रणनीति बना ली तो सांस लेने के लिए जदयू को राजद के साथ आने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा।
पिछले सात वर्षों में सबसे बड़ा राजनीतिक बदलाव और हलचल अगस्त महीने में हुआ है, जिसमें 18 दिनों में एक राजनीतिक महाभारत का पटाक्षेप हो गया। 9 से 26 अगस्त के बीच बिहार की राजनीतिक व्यवस्था बदल गयी। मुख्यमंत्री की अंतरात्मा बदलने के साथ सरकार की काया भी बदल गयी। सरकार में राजद के तेजस्वी यादव अपने कुनबे के साथ शामिल हो गये। खुद उपमुख्यमंत्री बने। वामपंथी और एआइएमआइएम सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं। विपक्ष में सिर्फ भाजपा रह गयी है। सरकार बदलने के साथ दोनों सदनों के प्रमुख बदल गये। विधान सभा में भाजपा के विजय सिन्हा की जगह पर राजद के अवध बिहारी चौधरी अध्यक्ष बने गये तो विधान परिषद में भाजपा के अवधेश नारायण सिंह की जगह पर जदयू के देवेश चंद्र ठाकुर सभापति बनाये गये हैं। उनका कार्यकाल 2026 तक है। विजय सिन्हा ने अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस के आलोक में इस्तीफा दिया। अवधेश नारायण सिंह एक तदर्थ व्यवस्था के तहत कार्यकारी सभापति बनाये गये थे। सभापति के निर्वाचन के बाद स्वत: वे कार्यकारी सभापति की जिम्मेवारी से मुक्त हो गये। इधर, परिषद में राजद के रामचंद्र पूर्वे उप सभापति बनाये गये हैं, जिनका कार्यकाल 2024 तक है। जबकि विधान सभा में जदयू के महेश्वर हजारी पहले ही उपाध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं। यह भी संयोग है कि श्री हजारी पहला और एकमात्र उपाध्यक्ष हैं, जिन्हें अध्यक्ष के चैंबर में बैठकर में विधायी कार्य निष्पादित करने का मौका मिला था। लगभग 48 घंटे तक वे अध्यक्ष की जिम्मेवारी का निर्वाह करते रहे। इधर, दोनों में सदनों भाजपा मुख्य विपक्षी दल के रूप में मान्यता हासिल कर चुकी है। विधान सभा में विजय सिन्हा और परिषद में सम्राट चौधरी को नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता दी गयी है।
पिछले सात वर्षों में वीरेंद्र यादव न्यूज ने महसूस किया कि नेताओं के अनुरूप खबर लिखिये तो उन्हें अच्छा लगता है और अपने अनुरूप खबर लिखिये तो नेताओं को चुभता है। दरअसल खबरों की चुभन ही वीरेंद्र यादव न्यूज की ताकत है और विश्वसनीयता भी। वीरेंद्र यादव न्यूज देश की एकमात्र पत्रिका है, जो पाठकों से मिलने वाले आर्थिक अनुदान से प्रकाशित होती है। इसलिए हम इसे ‘कटोरा छाप’ पत्रकारिता ही कहते हैं। लेकिन यह भी इस पत्रिका की ही ताकत है कि पहले अंक से आज तक पत्रिका पाठकों को फ्री बांटी जाती है। देश में ऐसी कोई और पत्रिका भी नहीं है।
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