मगध और शाहाबाद के दो जिलों औरंगाबाद और रोहतास की 6 विधानसभा सीटों को मिलाकर बना है काराकाट लोकसभा क्षेत्र। परिसीमन के बाद 2008 में पहली बार अस्तित्व में आया और पहला चुनाव 2009 में हुआ। अब तक वहां तीन लोकसभा चुनाव हुआ है और तीनों बार कुशवाहा जाति के लोग ही निर्वाचित हुए हैं और बाहरी ही रहे हैं।
जातीय बनावट और बसावट के हिसाब से यहां सबसे अधिक वोट यादवों का है। वीरेंद्र यादव न्यूज के संदर्भ में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, काराकाट में सबसे अधिक 17.39 फीसदी वोट यादवों का है। इसके बाद राजपूत वोटों की संख्या 10.76 प्रतिशत है। तीसरे स्थान पर मुसलमान 8.94 फीसदी और कुशवाहा वोटों की संख्या 8.12 प्रतिशत है। राजपूत और मुसलमान को कोई प्रमुख पार्टी या गठबंधन टिकट नहीं देता है, जबकि सबसे अधिक वोटर वाली जाति या समर्थित उम्मीदवार चुनाव हारते रहे हैं। 2009 और 2014 में राजद की कांति सिंह चुनाव हार गयी थीं। कांति सिंह 2009 में भाजपा समर्थित जदयू उम्मीदवार महाबली सिंह से चुनाव हार गयी थीं, वहीं 2014 में भाजपा समर्थित राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा से चुनाव हार गयीं। 2019 में राजद समर्थित रालोसपा उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा को पराजय का सामना करना पड़ा।
दरअसल काराकाट में एंटी यादव राजनीति होती है। इस कारण सवर्ण वोटर पहले से ही राजद समर्थित उम्मीदवार के खिलाफ गोलबंद होते हैं। इसके विपरीत सवर्ण प्रभाव वाली पार्टी भाजपा के साथ बनिया का बड़ा तबका जुट जाता है और उम्मीदवार की जाति बोनस वोट बन जाता है। यही जीत का कारण बनता है। 2019 में दोनों प्रमुख उम्मीदवार कुशवाहा जाति के ही थे। जदयू के महाबली सिंह और रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा। 2019 के चुनाव में जदयू और भाजपा एक साथ थे। इस कारण सवर्ण, बनिया, अतिपिछड़ा के थोक वोट के साथ जाति के नाम पर कुशवाहा वोट का बड़ा हिस्सा महाबली सिंह के साथ था। इस कारण उपेंद्र कुशवाहा को पराजय का सामना करना पड़ा।
मगध और शाहाबाद में काराकाट कुशवाहा के नाम से टीका गया है। इस कारण 2024 के लिए महाबली सिंह या उपेंद्र कुशवाहा के अलावा भी कई कुशवाहा इस सीट से दावेदार माने जा रहे हैं। इसमें डिहरी के विधायक फते बहादुर सिंह, अरवल के पूर्व विधायक रविंद्र सिंह का नाम भी चर्चा में है। इस सीट से भाजपा की ओर से अभी कोई मजबूत कुशवाहा दावेदार सामने नहीं आ रहे हैं। वैसी स्थिति में यह भी माना जा रहा है कि विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी भी किस्मत आजमा सकते हैं। पूरे बिहार में काराकाट ही एकमात्र सीट है, जहां पिछले तीन चुनावों से एकछत्र कुशवाहा राज है। वैसी स्थिति में उपेंद्र कुशवाहा और सम्राट चौधरी के लिए रणभूमि काराकाट बन सकता है।