औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड के पैतृक गांव डिहरा के पास लबदना में मकर संक्रांति का मेला लगता है। सुबह से देर शाम तक आसपास के गांव के लोग मेला घुमने के आते हैं। इस मेले का सबसे आकर्षक आयटम है जलेबी और आलू-गोभी की पकौड़ी। घर में दही, चूड़ा, गुड़, दूध खाकर मन भर जाता है, वैसे में पकौड़ी ही मेला में सबसे पसंदीदा खाद्य होता है। अब मेले तक जाने के लिए पक्की सड़क बन गयी है। पहले खेत-खेत से होकर मेला जाने का रास्ता लग जाता था। अब गांव छुटने के बाद भी मकर संक्रांति पर गांव की याद आ ही जाती है।
इसी माहौल में आज सामाजिक संस्था सेवा के बिहार संयोजक राकेश यादव जी ने संक्रांति के मौके पर दही-चूड़ा का भोज आयोजित किया था, अपने स्कूल शिशु उपवन के कैंपस में। स्कूल परिसर में गांव का माहौल भले नहीं हो, लेकिन गांव की याद ताजा हो गयी थी। पतल के आकार का प्लेट, उसमें चूड़ा-दही और भूरा। भूरा गुड़ का ही एक रूप है। शानदार आलू-गोभी की सब्जी। ऊपर से तिलकूट, जिसे गजक भी कहा जाता है। इस भोज में शामिल हुए सात लोग। अलग-अलग क्षेत्रों के। राकेश यादव के साथ अशोक यादव, डॉ विनय यादव, पत्रकार योगेश चक्रवर्ती के साथ से ही सेवा से जुड़े दो अन्य लोग भी शामिल थे। सभी बिहार के अलग-अलग जिलों से जुड़े थे। इसलिए सबके पास मकर संक्रांति और स्वाद को लेकर अपना-अपना अनुभव था।
राजद और जदयू की ओर से 14 जनवरी को होने वाले चूड़ा-दही का भोज स्थगित हो जाने के कारण चूड़ा-दही के नाम पर संभावित चर्चा पर भी विराम लग गया था। वैसे में हमारे लिए राकेश यादव के सौजन्य से आयोजित चूड़ा-दही पर साथियों का मिलन महत्वपूर्ण हो गया था। इस मौके पर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा भी हुई। लेकिन हर चर्चा दही में भूरा की तरह घुल कर मिठास छोड़ गयी।