विजय शंकर दूबे ने अपनी राजनीतिक यात्रा की चर्चा करते हुए बताया कि 1980 में पहली बार रघुनाथपुर से कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए और लगातार तीन चुनाव में जीत हासिल की। इस दौरान कांग्रेस की कई सरकारों में मंत्री भी रहे। 1980, 1985 और 1990 में निर्वाचित होने के बाद 1995 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2000 के विधान सभा चुनाव में चौथी बार विधायक बने। उस समय राबड़ी देवी के नेतृत्व में गठित सरकार में कांग्रेस कोटे से कई विभागों के मंत्री भी रहे। पांचवीं बार 2015 में वे सारण जिले के मांझी से निर्वाचित हुए। जबकि छठी बार 2020 में सीवान जिले के महाराजगंज से निर्वाचित हुए। अभी वे विधान मंडल की लोकलेखा समिति के सदस्य हैं।
राजनीति में कदम रखने से लेकर आज तक विजय शंकर दूबे कांग्रेस के प्रतिबद्ध कार्यकर्ता के रूप में पार्टी से जुड़े रहे हैं और पार्टी के निर्णयों के साथ बंधे रहे हैं।
हरनौत के हरिनारायण सिंह को छोड़ दें तो विजय शंकर दुबे सबसे पुराने विधायक हैं। हरिनारायण सिंह पहली बार 1977 में विधायक बने थे तो विजय शंकर दुबे 1980 में विधायक बने। अपने राजनीति अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि पहले किसी विधायक को मंत्री बनाने से पहले उनसे सहमति ली जाती थी। इसके बाद राज्यपाल की ओर से आमंत्रण पत्र भेजा था। लेकिन अब स्थिति बदल गयी है। शपथ ग्रहण के कुछ घंटे पहले तक मंत्री बनने वाले को पता ही नहीं रहता है कि वे मंत्री बनने वाले हैं।
वे कहते हैं कि एक विधायक और मंत्री की जिम्मेवारियों को अपने पद पर रहते हुए पूरी ईमानदारी के साथ निर्वाह किया है और जनता की अपेक्षाओं को खरा उतरने का लगातार प्रयास करते रहे हैं। यही कोशिश आगे भी जारी रहेगी।