‘‘एक मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, नेता विरोधी दल और संगठनकर्ता के साथ ही बिहार की संसदीय राजनीति में कर्पूरी ठाकुर ने जो नजीर पेश की उसका महत्व बहुत व्यापक और चिरकालिक है। उन्होंने सदैव अपनी राजनीति के केंद्र में समाज के अंतिम आदमी को रखा। यह अकारण नहीं है कि जैसे-जैसे समय बीत रहा है उनका महत्व बढ़ता ही जा रहा है।’’
ये बातें कर्पूरी ठाकुर की जयंती के पूर्व दिवस पर जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना में कही गयी। बिहार के सामाजिक बदलाव में कर्पूरी ठाकुर का योगदान विषय पर आयोजित इस परिसंवाद को विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, पूर्व शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल, खेत मजदूर संघ के पूर्व अध्यक्ष कॉ. कृष्णदेव यादव, पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह, अल्पसंख्यक आयोग बिहार के पूर्व उपाध्यक्ष पद्मश्री सुधा वर्गीज, प्राच्य प्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह, युवा समाजवादी कार्यकर्ता सैयद नज़म इकबाल, ए.एन. कॉलेज के प्राचार्य शशि प्रताप शाही, बौद्ध महासभा की महिला सेल की अंजु बौद्ध एवं संस्थान के निदेशक नरेन्द्र पाठक ने संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन अरूण नारायण ने किया। इस मौके पर फगुनी मांझी ने अपने जागरण गान ‘‘अब होश में आये हम, अब जोश में आयेंगे’’ का गायन किया। उन्होंने कहा कि आज भी बिहार में हाशिए के लोगों का जीवन बहुत दुरूह और मुश्किल है। कर्पूरी ठाकुर ने उनके जीवन में जो रौशनी लाने का सपना देखा था, उनका वह सपना पूरा नहीं हुआ है।
पूर्व शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर की सादगी कार्यकर्ताओं के प्रति उनका भाईचारा और गरीबों के बारे में उनकी सोच का मैं कायल हूं। 1978 में जब उन्होंने आरक्षण दिया तो उन्हें गालियां दी गयी।
खेत मजदूर संघ के पूर्व अध्यक्ष के.डी. यादव ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर के जीवन के तीन चरण है। अपने जीवन के पहले फेज में वे एक साधारण से परिवार में पैदा होते हैं। आजादी की लड़ाई में शामिल होते हैं और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के रूप में अपना जीवन शुरू करते हैं। 1952 से आजीवन वे जनप्रतिनिधि रहे। उनकी चिंता में हिन्दुस्तान के आम आदमी प्रमुखता से शामिल रहे। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने बिहार में शिक्षा के लिये जो काम किया, वह अपनी तरह का विरल काम था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज शिक्षा महंगी हो रही है और गरीबों की पहुंच से बहुत बाहर जा चुकी है। उन्होंने आह्वान किया कि सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई अगर लड़नी है तो सोशलिस्टों और कम्युनिस्टों को एकताबद्ध होना होगा। 1967 में उन्होंने टाटा की जमींदारी खत्म करने का ऐलान किय था।
प्राच्य प्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह ने कर्पूरी जी की सादगी से जुड़े कई संस्मरण साझा किये। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर उन्होंने दूरदर्शी काम किया था। उर्दू को द्वितीय राजभाषा भी उन्होंने ही घोषित किया था। वे ऐसे नेता थे, जिन्होंने हिन्दी में कामकाज को बढ़ावा दिया। यह कर्पूरी जी ही थे जिन्होंने गांधी मैदान में दस हजार इंजीनियरों को नियुक्ति पत्र दिया था।
अल्पसंख्यक आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुधा वर्गीज ने कहा कि मैं कर्पूरी जी से कभी मिली तो नहीं लेकिन उनके समय में बिहार में ही थी। उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार का सपना देखा था। वह समाज के हाशिए के लोगों के बहुत काम की चीज थे।
पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह ने कहा कि एक विद्यार्थी, शिक्षक, लाइब्रेरियन, क्रांतिकारी, एमएलए, मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, बहुत सारे ऐसे रूप हैं, जहां कर्पूरी जी अपनी व्यापकता के साथ मौजूद है। उनका संसदीय जीवन आम आमदी की चिंता से सराबोर था। इसका कारण यह था कि उन्होंने गरीबी देखी थी। उनके यहां एक अदना कार्यकर्ता को जो महत्व था, बड़े नेता को भी नसीब नहीं था। वह ऐसे नेता थे जो एक-एक पैसा का महत्व समझते थे। लॉस्की के हवाले से उन्होंने कहा कि जो राजनीति अर्थ पर कंट्रोल नहीं करती उस राजनीति को अर्थ नियंत्रित करती है। कर्पूरी जी इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझते थे। वे ऐसे नेता थे जिन्होंने संविधान की प्रस्तावना के अनुकूल अपनी सरकार को चलाया।
बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और डॉ. अंबेडकर ने जिस समाज निर्माण का सपना देखा था, कर्पूरी जी ने अपने संसदीय जीवन में मूर्त किया। उन्होंने इंसान को इंसान का सम्मान दिलाने का काम अपनी पूरी राजनीति में किया लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें गालियां दी गयी। उनके जीवन आचरण और व्यवहार में कोई फाक न थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया जाना चाहिये।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण करते हुए संस्थान के निदेशक नरेन्द्र पाठक ने कर्पूरी ठाकुर की राजनीति और जीवन यात्रा के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के सौजन्य से विधानसभा में उन्होंने कर्पूरी जी के संसदीय जीवन को समग्रता में समझा। सभा को अंजु बौद्ध एवं सैयद नज़म इकबाल ने भी संबोधित किया। धन्यवाद ज्ञापन अरुण नारायण द्वारा किया गया।