बिहार की राजनीति में दो शब्द का काफी मायने है। पहला शब्द है वोट बाजार और दूसरा शब्द है वोट का ट्रेंड। पहले का अर्थ है किसके नाम पर किस पार्टी को वोट मिलता है और दूसरे शब्द का अर्थ है कि किसके साथ वोट जाता है।
एक सप्ताह पहले 24 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनायी गयी थी। उनकी जयंती जदयू, राजद समेत भाजपा ने भी धूमधाम से मनाया था। बड़ा आयोजन किया था। कर्पूरी ठाकुर न जनसंघ से कार्यकर्ता थे और न आरएसएस के स्वयंसेवक थे। इसके बावजूद कर्पूरी ठाकुर की जयंती भाजपा भव्य तरीके से मनायी थी। यह है वोट का बाजार। कर्पूरी ठाकुर के नाम पर भाजपा ने अतिपिछड़ी जातियों को साधना चाहती है। इसलिए उनकी जयंती सवर्ण आधार वाली पार्टी भाजपा की मजबूरी हो जाती है।
कर्पूरी जयंती के एक सप्ताह बाद 2 फरवरी को जगदेव प्रसाद की जयंती है। जगदेव जयंती को भी राजद या जदयू अपने तरीके मना रहा है। राजद ने 1 फरवरी को ही बापू सभागार में जगदेव जयंती का आयोजन किया। राजकीय समारोह का भी आयोजन किया जाएगा। लेकिन भाजपा जगदेव प्रसाद की जयंती नहीं मना रही है, नहीं मनाती है। भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी जगदेव प्रसाद की जयंती कभी नहीं मनाती है। क्योंकि वे भाजपा की वैचारिक धारा के नहीं थे। यह मामला वोट के ट्रेंड का है।
हमारा आकलन था कि सम्राट चौधरी के भाजपा में कद बड़ा होने और परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद कुशवाहा वोटों के ‘प्रतीक पुरुष’ जगदेव प्रसाद के प्रति भाजपा की धारणा बदली होगी। सम्राट चौधरी अपने आधार विस्तार के लिए जगदेव प्रसाद को पार्टी मंचों पर स्थापित करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बिहार की राजनीति में यादव के बाद सबसे बड़ी आबादी वाली जाति कुशवाहा के नायक जगदेव प्रसाद की भाजपा द्वारा अनदेखी या उपेक्षा का अपना सामाजिक आधार है। जगदेव प्रसाद सामाजिक परिवर्तन और सम्मान की लड़ाई सवर्ण और सामंतों की सत्ता के खिलाफ लड़ रहे थे। सामंतों के खिलाफ लड़ाई में ही वे शहीद हो गये थे। उस स्थिति में स्वाभाविक है कि भाजपा का आधार वोट सवर्ण ही हैं। उसी समाज के खिलाफ लड़ने वाले नेता को भाजपा अपना आदर्श क्यों मानेगी।
लेकिन सवाल यह है कि क्या जगदेव प्रसाद की अनदेखी कर सम्राट चौधरी कुशवाहा वोटों को अपने साथ जोड़ पायेंगे। भाजपा प्रवक्ता की ही मानें तो पार्टी श्रीकृष्ण सिंह या अनुग्रह नारायण सिंह की जयंती भी नहीं मनाती है। क्योंकि ये लोग उनकी वैचारिक धारा के नहीं थे। भाजपा में जगदेव प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह या अनुग्रह नारायण सिंह के प्रति कोई वैचारिक लगाव या जुड़ाव नहीं है। तब बात समझ में आती है कि जगदेव प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह या श्रीकृष्ण सिंह का राजनीतिक प्रतीक या विकल्प भाजपा ने चुन लिया है, इसलिए ये लोग भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से उपयोगी नहीं हैं। लेकिन अतिपिछड़े समाज में कर्पूरी ठाकुर के समानांतर कोई नेता नहीं है, इसलिए भाजपा कर्पूरी ठाकुर को ढो रही है और उनकी जयंती मना रही है। लेकिन जगदेव प्रसाद की वैचारिक धारा की आंच भाजपा को बर्दाश्त नहीं है। वैसी स्थिति में जगदेव प्रसाद की अनेदखी कर सम्राट चौधरी कोईरी के नेता बन पायेंगे।