तेजस्वी यादव। परिचय के लिए नाम ही काफी है। बिहार में दो जाति के लोग उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए बेचैन हैं। इन जातियों को लगता है कि तेजस्वी कभी भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं या महागठबंधन की बेहतरी के लिए उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाना चाहिए। यादव अपनी मूर्खता की वजह से तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए अलबला रहे हैं और भूमिहार अपनी धूर्तता में मुख्यमंत्री का दावेदार बता रहे हैं।
जहां दो यादव एक साथ बैठ जाएंगे, वहीं तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के समीकरण, जरूरत और अनिवार्यता के तर्क शुरू हो जाते हैं। यह यादवों की मूर्खता है। उधर, जहां भी किसी भूमिहार को यादव मिल जाएगा, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बन जाने के लिए कहानी का प्लॉट तैयार करने में जुट जाएगा। यह भूमिहार की धूर्तता है। तेजस्वी यादव को दोनों से सावधान रहने की जरूरत है।
बिहार में छह दलों के सपोर्ट से सातवीं पार्टी जदयू की सरकार चल रही है। तेजस्वी यादव की पार्टी राजद की सरकार नहीं है, राजद सरकार में शामिल है। इसलिए राजद समर्थक अपनी सरकार का इंतजार कर रहे हैं, जिसके मुख्यमंत्री राजद नेता होंगे। यह अवसर कब आएगा, इसकी तिथि सिर्फ यादव और भूमिहार तय कर रहे हैं। अन्य जातियों को सरकार के नेतृत्व को लेकर कोई रुचि नहीं है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है।
तेजस्वी यादव को अपनी रणनीतिक और राजनीतिक कार्यशैली में बदलाव करना होगा। तेजस्वी यादव के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिखने वाला तेवर ओझल हो गया है। पहले मुख्यमंत्री के विरोधी थे, अब पड़ोसी हो गये हैं। इसका खामियाजा उनके समर्थक दलों को भी भुगतना पड़ रहा है। संघर्ष के दम पर अपने कैडर को लड़ाकू बनाये रखने वाला माले भी सत्ता पक्ष में आकर भोथर हो गया है। वह अब राज्य सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रामक रहता है। राजद का कार्यकर्ता भी खुद को सत्ता की पार्टी होने की आड़ में जनहित के मुद्दों पर मौन हो गया है। तेजस्वी यादव या उनके सलाहकारों को यह बात न पसंद होगी, न स्वीकार। क्योंकि आंखों और विचार पर सत्ता की पट्टी इतनी मजबूत चढ़ गयी है कि लोगों की बात सुनने के लिए न मन है, न मिजाज।
तेजस्वी यादव के साथ एक ऐसा ‘गोवार गैंग’ खड़ा हो गया है, जो तेजस्वी यादव की आलोचना स्वीकार नहीं करता है। इसमें पढ़े-लिखे लोगों के साथ बड़े पदधारक भी हैं। कई बार हम खुद इनके कोपभाजन के शिकार हुए हैं। तेजस्वी यादव की पार्टी में पार्टी की धारा या विचार के आधार पर बोलने वाला कोई व्यक्ति नहीं है। प्रवक्ताओं की पूरी टीम जयकारा के लिए है। इसलिए तेजस्वी यादव को सार्वजनिक मंच से पार्टी पदाधिकारियों को हिदायत देनी पड़ती है कि सरकारी गठबंधन के बारे में तीसरा कोई नहीं बोलेगा।
तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने के बाद जनसंवाद और जनसरोकार के सारे रास्ते बंद कर दिेये हैं। उनके आवास दस नंबर का दरवाजा भी वीवीआईपी लोगों के लिए ही खुलता है। आम लोग दरवाजा पर दर्शन भर के हकदार रह गये हैं। तेजस्वी यादव खुद कहते है कि उन्हें लंबी राजनीति करनी है, लंबी पारी खेलनी है। लेकिन उनकी कार्यशैली लंबी राजनीति के अनुकूल नहीं है। उन्हें अपनी कार्यशैली, संवादशैली और जनसंपर्क शैली में बदलाव करना होगा। लंबी राजनीति के लिए जनता का सम्मान और भरोसा जरूरी है। यह उनके राजनीतिक पदधारक और वेतनभोगी सलाहकारों को भी समझना होगा।