सामान्य जीवनचर्या में भी हम शुभकामना और श्रद्धांजलि दोनों शब्दों से परहेज करते हैं। दोनों शब्दों से हमें डर लगता है। लेकिन आज हमें श्रद्धांजलि देने पड़ रही है, अलविदा कहना पड़ रहा है। अपनी जीवन यात्रा का अभिन्न हिस्सा और साथी। अपनी मोटर साइकिल को। आज मंगलवार की दोपहर किसी ने हमारी मोटर साइकिल उड़ा दी। दिन-दोपहरिया। सैकड़ों मोटरसाइकिल के बीच से, भरी भीड़ से। एक कहावत है कि मौत घेर कर ले जाती है। यही हाल हमारी मोटरसाइकिल के साथ हुआ। जिस रास्ते में हम कभी नहीं जाते थे, आज आवश्यक कार्य की वजह से जाना पड़ा और 25-30 मिनट में मोटर साइकिल की चोरी हो गयी। थोड़ी देर तलाश के बाद थक-हार कर हम फुलवारीशरीफ थाने पहुंचे और सूचना दे दी। बाद में अन्य आवश्यक दस्तावेज के साथ विस्तृत जानकारी थाने को दी और रिसिविंग लेकर लौट आये। एक-दो दिनों में थाने से एफआइआर की कॉपी मिलेगी, जिसके बाद इंस्योरेंस का क्लेम करना होगा।
मोटरसाइकिल चोरी होने की पीड़ा या व्यथा को साझा करते हुए खुद पर हंसी आ रही है। भोपाल में रह रहे थे, तब भी एक व्यक्ति झांसा देकर स्कूटर ले भागा था और दूसरी बार पटना में मोटरसाइकिल उड़ा ले गया। खैर। आज दोहपर करीब 12 बजे हम फुलवारी स्थित रजिस्ट्री आफिस (अवर निबंधन कार्यालय) पहुंचे। वहां से एक जानकारी लेनी थी। इसके लिए एक वरीय अधिकारी से मिलना था। सड़क पर मोटर साइकिल खड़ी कर कार्यालय में गये। इसके बाद लौटकर डिक्की से एक कागजात निकाले और फिर आफिस के ऊपरी तल्ले पर पहुंचे। वहां अधिकारी से बातचीत के क्रम में 20-25 मिनट लगा होगा। मुलाकात के बाद नीचे लौट कर आये तो मोटर साइकिल जिस जगह पर खड़ी की थी, वहां से गायब थी। काफी खोजबीन के बाद गाड़ी का पता नहीं चला। शाम को थाने में सूचना देने के बाद फिर हम रजिस्ट्री ऑफिस गये। वहां पर रोड के दोनों ओर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था। रजिस्ट्री आफिस की दीवार से सड़क की ओर दो कैमरे लगे थे, जबकि दूसरी ओर सड़क किनारे बने होटल में भी सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है। होटल के सामने ही गाड़ी खड़ी की थी। सीसीटीवी खंगालने से पुलिस अपराधियों तक पहुंच सकती है। पुलिस तत्परता से काम करें तो गाड़ी की बरामदगी संभव है, लेकिन हमने अपनी ओर से अपनी ही गाड़ी को अलविदा कह दिया है।
हमें लगता है कि उस अनजान जगह पर कोई हमें पहचानने वाला ही गाड़ी उठाया है। इसकी वजह भी दिखती है। जब हम ऊपरी मंजिल पर अधिकारी से मिलने का इंतजार कर रहे थे, तब कई लोग ग्रुप में आये और रजिस्ट्री संबंधी कागजात देकर लौट रहे थे। उसी समय सीढ़ी से नीचे उतरते हुए दो लड़के मेरे फेसबुक लाइव ‘बिहार की बात गोवार के साथ’ की चर्चा कर रहे थे। फिर ध्यान से सुना तो मेरे नाम का जिक्र भी कर रहे थे। यह सुनकर हमें अच्छा लग रहा था कि इस अपरिचित और अनजाज जगह में भी हमें सुनने और पढ़ने वाले लोग मौजूद थे। लेकिन जब उनके जाने के थोड़ी देर बाद हम नीचे उतरे तो गाड़ी गायब थी। हमें लगता है कि 12 से 12.30 के बीच रजिस्ट्री आफिस में ऊपरी तल पर आने वाले व्यक्तियों की पहचान सीसीटीवी कैमरे से हो सके तो उनमें से कोई सुराक मिल सकता है। पुलिस उन तक पहुंच सकती है। यह काम पुलिस ही कर सकती है। खैर। मोटरसाइकिल कथा हमारे लिए अतीत हो गयी है, लेकिन पीडा़ कुछ दिन महसूस होगी।