मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी, इस पत्र के माध्यम से हम एक महत्वाकांक्षी यादव की भावनाओं से आपको अवगत कराना चाहते हैं और अपनी बात आपके समक्ष रखना चाहते हैं। इस पत्र में शिकायत भी है और सुझाव भी।
आपसे हमारी सबसे बड़ी शिकायत है कि आपने सदैव यादव जाति के खिलाफ जातीय गोलबंदी की राजनीति की है, इसके बावजूद खराब घड़ी में हरदम यादवों ने आपको संजीवनी दी है। 1989 में बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने से सबसे बड़ी भूमिका यादव जाति ने निभायी थी। उस चुनाव में यादवों ने आपको रामलखन सिंह यादव के खिलाफ चुनाव जीतवाया था।
1994 में आपने यादवों के खिलाफ राजनीति की शुरुआत की और यादवों के खिलाफ गैरयादव पिछड़ों को अपने साथ गोलबंद किया। इसी ताकत के सहारे आप भाजपा के साथ समझौता कर करीब दो दशक तक यादव विरोधी राजनीति करते रहे। लेकिन 2014-15 में जब आप एकदम कमजोर हो गये थे और जीतनराम मांझी जैसे लोग आपके राजनीतिक अस्तित्व के लिए संकट बन गये थे, उस वक्त यादव ही आपके लिए संकटमोचक साबित हुए थे। 2015 में यादवों के वोटों की ताकत से सत्ता में वापस लौटे, लेकिन 2017 में अपने राजनीतिक लाभ के लिए यादव को धकिया कर भाजपा के साथ चले गये। इसका ठीकरा भी यादव के माथे पर फोड़ दिया। लेकिन जब 2022 में भाजपा ने आपकी पार्टी को निगल जाने का पूरा इंतजाम कर लिया था, तब फिर यादवों ने ही आपकी पार्टी को भाजपा का निवाला बनने से बचाया। कहने का मतबल है कि आपके खराब वक्त में यादव ही आपके लिए ढाल बनते रहे, लेकिन बेहतर दिन आने के बाद आपने यादवों से मुंह मोड़ लेने में कोताही नहीं की।
इसके विपरीत आपने जिस पर सबसे अधिक भरोसा किया, उसी ने आपकी गाड़ी को पंक्चर करने कोई मौका नहीं छोड़ा। 2014 में जीतनराम मांझी को आपने मुख्यमंत्री बनवाया और उन्होंने ही आपकी रानजीतिक बोलती बंद कर दी थी। आपने स्वजातीय आरसीपी सिंह को राजनीतिक ठेकेदार बनवाया। एमपी से लेकर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाया, लेकिन उन्होंने आपकी सत्ता को बीच चौराहे पर नीलाम कर दिया। आपके पास देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। ताजा उदाहरण उपेंद्र कुशवाहा हैं। उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक यात्रा आपकी अंगुली पकड़कर शुरू हुई थी। राजनीतिक पहचान आपसे मिली, लेकिन मौका आने पर उन्होंने बांह मरोड़ने में भी परहेज नहीं किया।
आपने हर मौके पर यादवों के साथ अविश्वास की राजनीति की, लेकिन किसी यादव ने आपके साथ विश्वासघात नहीं किया। इसके विपरीत जिस पर आपने सबसे अधिक विश्वास किया, उन्होंने ही आपकी आस्था को नीलाम कर दिया।
नीतीश जी, हमने शुरू में ही कहा कि यह एक महत्वाकांक्षी यादव की चिट्ठी है। इसके माध्यम से हम आपसे आग्रह करते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा के इस्तीफे से रिक्त हुई विधान परिषद की सीट पर हम जैसे यादव को भेजिये। अपनी पार्टी की ओर से भेजिये। इसका राजनीतिक लाभ या नुकसान क्या होगा, यह आप अच्छी तरह समझते हैं। लेकिन आपके निर्णय से हम जैसे व्यक्ति का भला जरूर हो जाएगा। धन्यवाद।
वीरेंद्र कुमार यादव, पत्रकार
डिहरा (ओबरा), औरंगाबाद (बिहार)