बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने बिहार आर्थिक सवेक्षण-2022-23 पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्य सरकार का राजस्व स्रोत लचर व कमजोर होने का असर विकास कार्यों के साथ ही राज्य के प्रति व्यक्ति आय व राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) की वृद्धि दर पर भी पड़ा है। बिहार की वर्तमान सरकार केन्द्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी के तौर पर मिलने वाली राशि व कर्ज के भरोसे चल रही है।
श्री सिन्हा ने कहा बिहार की अर्थव्यवस्था को करोना काल से बाधित आर्थिक गतिविधियां की मार के बाद संभलने का दावा आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 की रिपोर्ट में किया गया है जबकि हकीकत है कि प्रतिव्यक्ति आय और राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) की बढ़ोत्तरी में बिहार अब भी देश के कई राज्यों से काफी पीछे हैं। मानव व भौतिक विकास के स्तर पर भी बिहार काफी पिछड़ा हुआ है। अपराध व भ्रष्टाचार की वजह से भी बिहार में पूंजीगत व्यय की गति धीमी है।
उन्होंने कहा कि 2021-22 में राज्य सरकार ने अपने स्रोतों से मात्र 38,839 करोड़ रु. का राजस्व संग्रह किया, इसमें करों से संग्रहीत राजस्व 34,855 करोड़ रु. था जबकि करेतर राजस्व मात्र 3,984 करोड़ रुपये रहा। प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार अब भी 15 वें स्थान पर है। अर्थव्यवस्था में कृषि प्रक्षेत्र के 21 फीसदी के महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद राज्य सरकार की अनदेखी व उपेक्षा के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति व कृषि उत्पादकता में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है।
श्री सिन्हा ने कहा कि वर्ष 2021-22 में केन्द्र सरकार से राज्य को कुल 1,29,486 करोड़ रुपये मिलें। इसमें से 91,353 करोड़ रुपये केन्द्रीय करों में राज्य के हिस्से के बतौर तो 28,606 करोड़ रुपये सहायता अनुदान के तौर पर मिला। इसके अलावा 8,527 करोड़ रुपये ऋण के रूप में बिहार को प्राप्त हुआ।
उन्होंने कहा कि केन्द्रीय परियोजनाओं के तौर पर बिहार को विगत 5 वर्षों (2017-22)में 56,560 करोड़ रुपये से अधिक राशि मिली है। राज्य सरकार की उपेक्षा व टालू नीतियों के कारण केन्द्रीय परियोजनाओं को लटका कर रखने, ससमय अपेक्षित जमीन का अधिग्रहण नहीं करने व अन्य सहूलियतें उपलब्ध नहीं कराने की वजह से बिहार को 9,967 करोड़ रुपये की क्षति हुई हैं।
उन्होंने कहा कि पूंजीगत निवेश में राज्य सरकार की अनिच्छा का ही नतीजा है कि यहां प्रतिव्यक्ति औसत आय 2020-21 की 28 हजार 127 रुपये से बढ़ कर 2021-22 में मात्र 30,779 रुपये ही हुआ है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार की वृद्धि दर 9.43 प्रतिशत की तुलना में ओड़िशा का 11.15 प्रतिशत, जे एड के का 10.92 प्रतिशत, तेलंगना का 10.86 प्रतिशत, आन्ध्र प्रदेश का 10.73 प्रतिशत रही है।
बिहार की जीडीपी 2021-22 में 4.28 करोड़, 2020-21 में 3.82 करोड़ तथा 2019-20 में 3.98 करोड़ रहा। बिहार की जीडीपी की वृद्धि दर 10.98 प्रतिशत की तुलना में आन्ध्र प्रदेश का 11.43, राजस्थान का 11.04 प्रतिशत रहा है। इसी प्रकार बिहार में प्रतिव्यक्ति आय भी 2021-22 में 30,779, 2020-21 में 28, 127 और 2019-20 में 29,794 रुपये रहा जबकि राष्ट्रीय औसत से यह 6 गुना कम है।
उन्होंने कहा कि राज्य में 2005-06 से लेकर 2021-22 के 16 वर्षों में स्वास्थ्य पर 11 गुना व शिक्षा पर 8 गुना व्यय बढ़ा है, इसके बावजूद शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों से लेकर राज्य के मेडिकल कॉलेजों तक में बदहाली का आलम है।
श्री सिन्हा ने कहा कि आर्थिक मोर्चें पर सरकार की लचर स्थिति का खामियाजा बिहार की विभिन्न विकास परियोजनाओं में देखी जा सकती है। राज्य सरकार के 7 निश्चय योजना -2 पूरी तरह से विफल साबित हुई है। हर घर नल का जल व शौचालय तथा पक्की नली-गली योजना भ्रष्टाचार का शिकार हो गई है। कुशल युवा कार्यक्रम पूरी तरह भ्रष्टाचारियों के कब्जे में है।