बिहार और उड़ीसा के दो दिग्गज शख्सियतों – डॉक्टर चक्रधर झा और स्वर्गीय श्री विश्वनाथ पसायत की याद में पटना लॉ कॉलेज मेमोरियल गेट और मूट कोर्ट का उद्घाटन किया गया। यह उद्घाटन माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी एस सिंह, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय, माननीय न्यायमूर्ति हरीश कुमार एवं माननीय न्यायमूर्ति संदीप कुमार, पटना उच्च न्यायालय के कर कमलों से सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर माननीय न्यायमूर्ति मृदुला मिश्रा, वीसी – सीएनएलयू, माननीय श्री दिनेश कुमार सिंह, पूर्व न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
उद्घाटन समारोह में माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी एस सिंह द्वारा स्मृति व्याख्यान दिया गया। स्मृति समारोह की अध्यक्षता प्रोफेसर अजय कुमार, प्रो वाइस चांसलर, पटना विश्वविद्यालय द्वारा की गई और स्वागत व्याख्यान प्रोफेसर मोहम्मद शरीफ, प्राचार्य पटना लॉ कॉलेज, द्वारा दिया गया। उड़ीसा से कई विशिष्ट जन इस समारोह में उपस्थित रहे – श्री डीपी धल, सदस्य, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, मानस महापात्रा, अध्यक्ष, उड़ीसा स्टेट बार काउंसिल, श्री सुभाष सिंह, महापौर, कटक नगर निगम आदि।
डॉ. चक्रधर झा, सन 1931-33 तक पटना लॉ कॉलेज के छात्र रहे। पेशेवर वकील होने के साथ-साथ वह कई पुस्तकों के लेखक भी रहे जैसे कि जुडिशल रिव्यु ऑफ लेजिसलेटिव एक्ट, लॉ इन एनसिएंट इंडिया फ्रॉम वैदिक एज टू 1200 एडी इन मॉडर्न पर्सपेक्टिव। उन्होंने जुडिशल रिव्यु ऑफ लेजिसलेटिव एक्ट केलिए भागलपुर विश्वविद्यालय से डाक्टर आफ लॉज़ (LL.D) की डिग्री हासिल की।
स्वर्गीय श्री विश्वनाथ पसायत 50 के दशक में पटना लॉ कॉलेज के छात्र थे। वकील होने के साथ-साथ वह एक राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे। उनका संबंध साम्यवादी आंदोलन से भी था। 52 वर्ष की आयु में उनका आकस्मिक निधन हो गया।
इस आयोजन में उपस्थित विशिष्ट वक्ताओं ने कानून के छात्रों के लिए आधुनिक संविधान पर एवं दोनों विभूतियों की विरासत पर विचार साझा किए। वक्ताओं ने यह कहा कि इन दोनों विभूतियां की विरासत आधुनिक दौर में कानून के क्षेत्र में आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा स्रोत का कार्य करेंगी।
इस कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश महोदय ने 1973 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केसवानंद भारती केस में दिए गए फैसले का उल्लेख किया जिसके उपरांत न्यायिक समीक्षा की नई संभावनाएं खुलीं। न्यायमूर्ति मृदुला मिश्रा ने एक सामान्य नागरिक के न्यायिक एवं मौलिक अधिकारों पर अपने विचार अभिव्यक्त किये। न्यायमूर्ति संदीप कुमार जी ने शक्ति के विभाजन के प्रहरी के रूप में न्यायालय की भूमिका पर प्रकाश डाला। आधुनिक लोकतंत्र में जहां लोक संप्रभुता को अवधारणा व्यापक रूप से हावी है, वहां न्यायिक समीक्षा का अध्ययन अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
कौटिल्य ने कहा ” विद्यार्जन में समर्पण से ज्ञान उत्पन्न होता है। ज्ञान से व्यवहारिक जीवन में उसके प्रयोग के सामर्थ्य का विकास होता है और उससे आत्म संयम का गुण आता है। ये ज्ञानार्जन के लाभ हैं।” न्यायिक समीक्षा का जीवन और स्वतंत्रता से सीधा संबंध है। यह ज्ञान और प्रेरणा का अविरत स्रोत है। किसी भी देश की शासन व्यवस्था में इसका अत्यधिक महत्व है।