मंगलवार की सुबह हम घंटी बजने से काफी देर पहले विधान सभा परिसर पहुंच गये। सवा 10 से 11 बजे तक विधान सभा परिसर में मीडिया का मेला लगता है। विधान सभा और विधान परिषद की प्रेस सलाहकार समिति सोशल मीडिया को तीसरे दर्जे का मानती है, उसके लिए रिपोर्टिंग पास जारी करने में भी अपनी श्रेष्ठता दर्शाती है।
लेकिन वही सोशल मीडिया विधान मंडल परिसर में नेताओं के लिए सबसे प्रिय हो जाता है। सोशल मीडिया के इशारे पर दोनों पक्षों के विधायक कूदते-फांदते नजर आते हैं। उनके नारों की आवाज भी कैमरे और मोबालई रिकार्डिंग की संख्या देखकर घटती-बढ़ती रहती है। विधान परिषद ने गजब का ढाया है। पत्रकारों को चरवाहा बना डाला है और घास ‘गढ़ने’ के लिए कबीर वाटिका का पास बना डाला है। विधान परिषद में अराजकता तो यह गयी है कि संविदा पर नियुक्त कार्यकारी सचिव का आदेश प्रशाखा पदाधिकारी भी नहीं मानते हैं।
हम बात कर रहे थे मीडिया मेला का। 11 बजने के एक घंटा पहले से रिपोर्टर और कैमरा मैन डट जाते हैं। सबसे पहले वामपंथी विधायक ‘भूमिहार’ स्तंभ के पास पोस्टर लेकर प्रदर्शन करते हैं। उन पर मीडिया वाले टूट पड़ते हैं। इसके बाद लॉबी से भाजपा के विधायक पोर्टिको में पहुंचते हैं। सीढ़ी पर खड़ा होकर नारा झोंकते हैं। इसी दौरान मीडिया वाले अपनी-अपनी पसंद के नेता और विधायक को बुलाते हैं और उनका बाईट लेते हैं। पोर्टिको का हंगामा विधान सभा तक पहुंच जाता है। प्रेस दीर्घा में बैठकर कई बार सदन की कार्यवाही देखते हुए लगता है कि जीरो आवर की तरह हंगामा आवर भी होता तो शेष अवधि में सदन का संचालन सही ढंग से संभव हो पाता।
मंगलवार को कार्य मंत्रणा समिति की बैठक के निर्णय को लेकर नेता विरोधी दल विजय सिन्हा काफी नाराज दिखे। इसी मुद्दे को लेकर विपक्ष ने अनुदान मांग पर चर्चा का बहिष्कार किया। भाजपा गृह विभाग की अनुदान मांग को गिलोटीन करने का विरोध कर रही थी। इससे पहले नेता प्रतिपक्ष श्री सिन्हा और पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने मीडिया के सामने अपना विरोध जताया।
मीडिया मेला की एक बड़ी त्रासदी होती है। कैमरा मेन का पास परिसर का ही होता है। उन्हें दिन भर धूप में दौड़-दौड़ कर काम करना पड़ता है। बैठने की भी अस्थायी व्यवस्था होती है। इस कारण सुविधा भी टम्परोरी ही होती है। पानी का भी इंतजाम नहीं होता है। इस संबंध में हमें लगता है कि सेशन की अवधि में मीडिया टेंट के पास पानी और शौचालय का पर्याप्त इंतजाम किया जाना चाहिए। प्रेस दीर्घा की बात करें तो उसमें भी कुछ सुविधाओं को जोड़ा जाना चाहिए। विधायक सदन में बैठते हैं और ऊपर दीर्घा में प्रेस वाले। किसी भी एंगल से दीर्घा में बैठकर पत्रकार आधे ही विधायकों और उनकी गतिविधियों को देख पाते हैं, बाकी आधे ओझल रहते हैं। इस कारण कई बार यह समझ में नहीं आता है कि कौन विधायक बोल रहे हैं। इस संबंध में विधान सभा सचिवालय से आग्रह करेंगे कि स्पीकर आसन के ऊपर दीर्घा की दीवार में एक टीवी स्क्रीन लगाया जाना चाहिए। उसे लॉबी या प्रेस रूम में लगे स्क्रीन के साथ जोड़ दिया जाना चाहिए, ताकि पत्रकार वक्ता के नाम और भाव-भंगिमा को देख सकें। आसन के ऊपर लगे टीवी स्क्रीन को बिना आवाज का रखा जाये, क्योंकि सदन में आवाज के लिए स्पीकर और माईक लगा हुआ ही है। इस स्क्रीन पर बोलने का वाला चेहरा और नाम दिखना चाहिए।
विधान परिषद में इन हाउस स्क्रीन लगा हुआ है, जिसका कोई मतलब नहीं है। इसमें सिर्फ बोलने वाले का नाम, फोटो और स्पीकिंग आवर बताता है, जिसका सदन की कार्यवाही में कोई औचित्य नहीं है। लेकिन इसके लिए एक अलग टीम लगायी गयी है, जो सिर्फ नाम और फोटो अपडेट करती है। इसी स्क्रीन पर आ रही सूचना को लेकर सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नाराजगी जतायी थी। विधान परिषद में भी आसन के ऊपर स्क्रीन लगाकर बिना आवाज का लाइव प्रसारण दिखाया जा सकता है।