सात साल बाद राजद और जदयू कार्यकर्ताओं की किस्तम खुली है, उनके अच्छे दिन आये हैं। मई, 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी आयोगों और बोर्डों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों से एक साथ इस्तीफा ले लिया था। उस समय भी महागठबंधन की सरकार थी। उसके बाद से तीन सरकार और गठबंधन बदला, लेकिन इन कार्यकर्ताओं की किस्मत नहीं बदल रही थी। भाजपा-जदयू सरकार में एकाध आयोगों का पुनर्गठन किया गया था, लेकिन फिर लटक गया था।
पिछले दो दिनों में सरकार ने सात आयोगों का पुनर्गठन किया है। 7 आयोगों में 49 कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किया गया है। इन सात में से एक अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन कुछ महीने पहले ही किया गया था। उसका फिर से पुनर्गठन किया गया है। पुर्नगठन के बाद उसमें 4 सदस्य बनाये गये हैं। जदयू के उम्मीदवार रहे शंभू सुमन को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। अब तक सदस्य की जिम्मेवारी निभा रहीं पूर्व विधायक स्वीटी सीमा हेम्ब्रम हो उपाध्यक्ष के रूप में प्रोन्नत किया गया है, जबकि इसमें दो और नये सदस्य मनोनीत किया गये हैं। इसके अतिरिक्त 6 अन्य आयोगों के अध्यक्ष पूर्व विधायकों को बनाया गया है।
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष पूर्व सांसद-विधायक अश्वमेघ देवी को बनाया गया है। वे कल्याणपुर से जदयू की विधायक और उजियारपुर से सांसद रही हैं। महिला आयोग में सदस्य के रूप में 7 कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किया गया है। अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष गोपालगंज से राजद के पूर्व विधायक रियाजूल हक राजू को बनाया गया है। इसमें सदस्य के रूप में 8 कार्यकर्ताओं को समायोजित किया गया है। अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष हरसिद्धि के पूर्व विधायक राजेंद्र कुमार को बनाया गया है। इस आयोग में पूर्व विधायक ललन भूइयां को उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक श्याम बिहारी राम को सदस्य बनाया गया है। इसके अलावा 2 अन्य कार्यकर्ताओं को भी सदस्य बनाया गया है।
महादलित आयोग में राजपुर के पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री संतोष निराला को अध्यक्ष बनाया गया है। इसमें पूर्व विधायक अरुण मांझी को उपाध्यक्ष बनाया गया है। इनके अलावा तीन अन्य सदस्यों को शामिल किया गया है। मदरसा शिक्षा बोर्ड और संस्कृत शिक्षा बोर्ड में 18 राजनीतिक कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किया गया है। मदरसा शिक्षा बोर्ड में पूर्व एमएलसी सलीम परवेज को अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि विधायक महबूब आलम और सैयद रुकनुद्दीन अहमद तथा एमएलसी खालिद अनवर को सदस्य बनाया गया है। इसके अलावा 4 अन्य राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया है। वहीं संस्कृत शिक्षा बोर्ड में पूर्व विधायक भोला यादव को अध्यक्ष बनाया गया है। इसके साथ विधायक विनय चौधरी और ललित नारायण मंडल तथा एमएलसी प्रेमचंद मिश्रा को सदस्य बनाया गया है। दोनों बोर्डों की जारी अधिसूचना के अनुसार, इनका कार्यकाल तीन साल या सरकार की इच्छा पर निर्भर है।
जिन छह वर्तमान एमएलए व एमएलसी को शिक्षा बोर्ड का सदस्य बनाया गया है, उनकी चांदी है। कहावह है न- दोनों हाथ में लड्डू और मुंह कड़ाही में। ये अब वेतन आयोग का लेंगे, जो लगभग 2 लाख निर्धारित है, जबकि भत्ता विधान सभा से लेंगे। भत्ता लगभग दो लाख प्रतिमाह मिलता है। एमएलसी खालिद अनवर और प्रेमचंद मिश्रा की किस्मत से सिकहर टूट गया है। इन दोनों का विधान पार्षद के रूप में कार्यकाल अगले साल जून, 24 में सप्ताह हो रहा है। अब एमएलसी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी दो वर्षों तक आयोग के सदस्य के वेतन और भत्ता उठाते रहेंगे।
आयोगों में मनोनीत सभी अध्यक्षों, उपाध्यक्षों एवं सदस्यों को पूरे तीन साल में लगभग एक-एक करोड़ रुपये वेतन और भत्ता के रूप में मिलेंगे। इन पदों के लिए निर्धारित वेतन प्रति पद औसत लगभग 2 लाख रुपये निर्धारित है, कुछ कम या कुछ ज्यादा। इनका कार्यकाल तीन साल है। एक साल में 24 लाख तो तीन साल में 72 लाख। वेतन के रूप में मिलेंगे, एकदम ह्वाईट। यात्रा एवं अन्य भत्ता के रूप में कुछ ह्वाईट और कुछ ब्लैक भी मिलेगा। इसे तीन साल में 28 लाख मान ही सकते हैं। इस प्रकार प्रति कार्यकर्ता एक करोड़ रुपये का पैकेज सरकार ने दिया है।
हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते हैं कि इन पदधारकों को पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेवारी मिलने के बदले कितना अग्रिम भुगतान करना पड़ा होगा या कितना चुनावों में भुगतान करना पड़ेगा। यह बहस ही बेमतलब की है। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि सत्ता में होने के बाद भी सुखाड़ झेल रहे कार्यकर्ताओं के हिस्से में कुछ हरियाली आयी है। इसका स्वागत किया ही जाना चाहिए।