राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत प्रक्षेत्र का 9 वां सम्मेलन 21-22 अगस्त को राजस्थान के उदयपुर में संपन्न हुआ। इसका उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने भारत की संसदीय परंपराओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोकतंत्र हर भारतीय की अंतरात्मा में बसती है। इसलिए भारत दुनिया के सफलतम लोकतंत्रों में एक है।
इस मौके पर अपने संबोधन में बिहार विधान सभा के अध्यक्ष अवध विहारी चौधरी ने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के माध्यम से राष्ट्र को सुदृढ़ करने में जनप्रतिनिधियों की बहुत महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका होती है। उन्होंने कहा कि एक जनप्रतिनिधि होना वस्तुतः एक विशेषाधिकार और सम्मान की बात तो है ही, पर इससे इतर यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि वह जनहित में किस प्रकार अनुशासित और मर्यादित रहकर अपने विधायी निकाय का सटीक इस्तेमाल करता है। स्पीकर ने कहा कि सहिष्णुता लोकतंत्र का महत्वपूर्ण सिद्धांत है। हम संसदीय प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न दलों विचारों और सिद्धांतों के प्रति उच्च कोटि की सहिष्णुता दर्शायें। उन्होंने कहा कि हमें विधान सभा में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखना तथा नियमों एवं परंपराओं का पालन करना अनिवार्य है, तभी हम इन संसदीय निकायों की क्षमता का अधिक-से-अधिक दोहन कर सकते हैं। श्री चौधरी ने कहा कि विरोध का अधिकार, विपरीत मत का अधिकार, संसदीय लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धान्त है। परन्तु इसकी अभिव्यक्ति, इसका प्रदर्शन, संसदीय साधनों के दायरे और मानदंडों की भीतर ही किया जाना चाहिए. अन्यथा समाज और राष्ट्र को समृद्ध तथा सुदृढ करने का फल इन विधायी निकायों से नहीं निकल पाएगा।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए बिहार विधान परिषद के उपसभापति रामचन्द्र पूर्वें ने कहा कि ये लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं, जिनके द्वारा किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का कार्यकरण सम्पन्न होता है। जब ये संस्थाएं अपने विहित कर्तव्यों यानी देश के संविधान द्वारा निर्धारित कार्यों एवं शक्तियों का पालन करते हैं तो लोकतांत्रिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है और सुदृढ़ होती हैं। डॉ. पूर्वें ने कहा कि सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाना लोकतंत्र का सौन्दर्य होता है। अगर विधायिका के सदस्य इस पर बल देते हैं तो वह विधायिका समाज की समस्याओं को सुलझाने में प्रभावकारी सदन बन जाता है।