—- वीरेंद्र यादव —-
लोकसभा में पेश महिला आरक्षण विधेयक को सभी दलों को समर्थन करना चाहिए। इसका लालू यादव की पार्टी राजद और अखिलेश यादव की पार्टी सपा को भी समर्थन करना चाहिए। शरद यादव भले महिला आरक्षण बिल के विरोधी थे, लेकिन जिस पार्टी के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे थे, वह पार्टी अब इसके समर्थन में है।
महिला आरक्षण के कुछ तकनीकी पक्ष हैं तो कुछ राजनीतिक पक्ष हैं। महिला आरक्षण विधेयक जब भी संसद के फ्लोर पर आया, तो तीन नेताओं ने सदन से सड़क तक इसके प्रावधानों का विरोध किया। उनका कहना था कि महिला आरक्षण में ओबीसी महिला का कोटा भी तय किया जाए। ये तीनों नेता संयोग से एक ही जाति के थे और राजनीतिक रूप से बड़ी ताकतवर जाति का प्रतिनिधित्व करते थे। शरद यादव और मुलायम सिंह यादव अब दिवंगत हो गये हैं। जबकि लालू यादव ओबीसी कोटा की मांग पूरजोर ढंग से उठा रहे हैं।
महिला आरक्षण बिल का तकनीकी पक्ष है कि संविधान में लोकसभा या विधानसभाओं में सिर्फ अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान है। इसी कारण उनके लिए कोटा के अंदर कोटा तय करना वैधानिक है। जो भी महिला आरक्षण में ओबीसी कोटा की मांग कर रहे हैं, उन्हें पहले लोकसभा या विधान सभा में ओबीसी आरक्षण की मांग करनी चाहिए। जिस दिन इसके लिए संविधान में प्रावधान हो जाएगा, उस दिन ओबीसी महिला आरक्षण स्वत: लागू हो जाएगा। लेकिन आज तक किसी भी दल ने लोकसभा और विधानसभाओं में ओबीसी आरक्षण की मांग नहीं की। ओबीसी आरक्षण सिर्फ सरकारी नौकरी और सरकारी शिक्षण संस्थानों में लागू है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण के बहाने लालू यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव समेत सभी ओबीसी नेताओं को यह मौका दिया है कि संसद और विधान सभाओं में आरक्षण की मांग उठायें। और जिस तरह से देश में ओबीसी राजनीति जोड़ पकड़ रही है, संभव है लोकसभा और विधान सभाओं में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू कर दिया जाए। ठीक वैसे ही जैसे ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण लागू कर दिया गया था।
महिला आरक्षण का राजनीति पक्ष भी है। अभी संसद या विधान सभाओं के लिए जो महिलाएं निर्वाचित हो रही हैं, उनमें से 60 फीसदी से अधिक या किसी की विधवा हैं या किसी सजायाफ्ता की पत्नी। कुछ निर्वाचित महिलाएं कथित अपराधियों की ‘गृहलक्ष्मी’ भी हैं। मतलब यह है कि अपनी राजनीतिक पहचान वाली महिलाओं की संख्या एकदम नगण्य है। यदि सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं तो किसी दबंग और मजबूत जाति को नुकसान क्या हो रहा है। पति की जगह पत्नी निर्वाचित हो जाएंगी। नगर निकाय और पंचायती राज व्यवस्था में इसके सैकड़ों उदाहरण हैं। इस दौर में कुछ पदों के नाम बदल जाएंगे। जैसे मुखिया पति की जगह विधायक या सांसद पति का प्रचलन बढ़ जाएगा।
केंद्र में भाजपा के खिलाफ जो इंडिया गठबंधन बना है, उसे दो मुद्दों को नये सिरे से उठाना चाहिए। पहला यह कि अगली जनगणना में जातियों की संख्या गिनी जाए और दूसरा जनसंख्या के अनुपात में उन्हें लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण लागू किया जाए। बिहार के संदर्भ में लालू यादव और नीतीश कुमार को इस बात पर जोर देना चाहिए कि जातीय जनगणना हो और जनसंख्या के अनुपात में लोकसभा और विधान सभाओं में ओबीसी का आरक्षण हो। फिर अपने आप महिला ओबीसी आरक्षण लागू हो जाएगा। इसलिए फिलहाल राजद को संसद में महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करना चाहिए और उसी के साथ जातीय जनगणना की मांग उठानी चाहिए, ताकि आगे की राह आसान हो सके।