दो महीने तक लगातार मेहनत तथा जनसंपर्क और 50 हजार से अधिक रुपये लगाने के बाद भी वीरेंद्र यादव न्यूज का मेगा शो फ्लॉप हो गया, एक भव्य कार्यक्रम का सपना ध्वस्त हो गया। वीरेंद्र यादव न्यूज का पाठक उत्सव और शताब्दी अंक विशेषांक का लोकार्पण समारोह को लेकर दशहरा के पहले से प्लानिंग शुरू हो गयी थी। वीरेंद्र यादव न्यूज के निर्बाध और नियमित सौ अंकों की यात्रा काफी शानदार रही है। शताब्दी अंक का लोकार्पण भी जबरदस्त हो, इसके लिए व्यापक तैयारी की थी। इसका आयोजन BIRENDRA YADAV FOUNDATION CHERITABLE TRUST, Patna की ओर से किया गया था।
शुरुआती प्लान के अनुसार, शताब्दी अंक समारोह में भारतीय संविधान सभा के बिहारी सदस्यों के नाम पर 36 वर्तमान और पूर्व विधायकों को सम्मानित करने की योजना थी। इसके लिए हमने भारतीय संविधान सभा में बिहारी सदस्यों की प्रोफाइल तैयार की। इसके साथ 6 या 6 से अधिक बार विधायक रहे वर्तमान और पूर्व विधायकों को सूचीबद्ध किया। सभी विधायकों का निर्वाचन आवृत्ति और वर्ष से संबंधित डाटा एकत्रित किया। पूरे बिहार में 6 या 6 बार से अधिक टर्म विधायक रहने वाले जीवित विधायकों की संख्या लगभग 36 है। 6 बार से अधिक विधायक रहने वालों में सबसे पुराने सदस्य गजेंद्र प्रसाद हिमांशु हैं। राबड़ी देवी, रामचंद्र पूर्वे और सुशील कुमार मोदी दोनों सदनों को मिलाकर 6 बार निर्वाचित हुए। अवधेश नारायण सिंह और महाचंद्र प्रसाद सिंह विधान परिषद के लिए 6-6 बार निर्वाचित हुए। लगभग 30 विधायक ऐसे हैं, जो 6 या 6 बार से अधिक विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। इन सभी विधायकों या विधान पार्षदों की प्रोफाइलिंग की भी तैयारी थी। इसी परिप्रेक्ष्य में हमने बड़े और भव्य कार्यक्रम की तैयारी की थी। इसीलिए हमने जगजीवन राम संसदीय अध्ययन और शोध संस्थान का बड़ा और महंगावाला सभागार बुक किया था।
जब हमने विधायक सम्मान समारोह की तैयारी शुरू की और प्रोफाइलिंग पर काम करने में जुटे तो अहसास हो गया कि एक अकेले व्यक्ति से इतने लोगों की प्रोफाइलिंग संभव नहीं है। इसके बाद हमने विधायक सम्मान समारोह की कार्ययोजना को स्थगित कर दिया। इसके बदले पाठक उत्सव का निर्णय लिया। इस पाठक उत्सव का मकसद सहयोगी और शुभेच्छु के रूप में साथ खड़े रहने वाले पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करना था। पाठक उत्सव की कार्ययोजना पर काम करते हुए इसकी व्यापक तैयारी की। पटना में ही पाठकों का एक बड़ा समूह है, जो पत्रिका की मदद के लिए हर समय तैयार रहते हैं। हमने व्यापक स्तर पर जनसंपर्क किया। फेसबुक, वाट्सएप और मेल के माध्यम से लोगों को लगातार कार्यक्रम की सूचना देते रहे। इसके अलावा व्यक्ति रूप से कार्ड देकर भी आमंत्रित करते रहे। यह सिलसिला कार्यक्रम के दिन तक जारी रहा। हमें भरोसा था कि पाठकों का इतना बड़ा समूह है कि जगजीवन राम शोध संस्थागत का महंगावाला सभागार खाली नहीं रहेगा।
एक कहावत है कि किस्मत खराब होती है तो हाथी पर चढ़े व्यक्ति को भी कुत्ता काट देता है। कार्यक्रम के दिन यानी 26 नवंबर को हमारे साथ यही हुआ। संविधान दिवस था। 26 नवंबर को पटना में कार्यक्रमों की बाढ़ आ गयी। राजद और जदयू की ओर से बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। अतिपिछड़े समाज के संगठनों की ओर से भी कार्यक्रम आयोजित थे। अखिल भारतीय यादव महासभा का शताब्दी समारोह का आयोजन मधेपुरा में 27 नवंबर को होना था। इसलिए उसमें शामिल होने वाले लोग 26 नवंबर को ही प्रस्थान कर गये। एक और शुभेच्छुओं की मजबूत टीम है, उनकी अपनी संस्थागत बैठक उसी समय आयोजित हो गयी। मतलब जिन लोगों के भरोसे हम भव्य कार्यक्रम की तैयारी कर रहे थे, वे सभी अपने सामाजिक और राजनीतिक सरोकार से जुड़े कार्यक्रमों में चले गये।
हमने पाठकों की संभावित उपस्थिति के हिसाब से सभागार और नाश्ते का इंतजाम किया था। निश्चित रूप से काफी महंगी तैयारी थी। जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं शोध संस्थान का महंगावाला सभागार कुछ शर्तों के साथ मुफ्त में मिल रहा था। इस दिशा में बात आगे बढ़ी भी, लेकिन शर्त सुरसा की भांति मुंह फैलाने लगी। हमने शर्तों को अस्वीकार कर दिया और निर्धारित किराया चुका दिया।
हमने शुरू में ही तय किया था कि वीरेंद्र यादव न्यूज के पाठक उत्सव सह लोकार्पण समारोह में कोई घोषित गेस्ट नहीं होंगे और साथ ही बैनर पर किसी विशिष्टजन का नाम नहीं होगा। यह सिर्फ पाठकों का उत्सव है और इसमें शामिल हर व्यक्ति सिर्फ पाठक होंगे। जब हम कार्यक्रम के दिन हॉल में पहुंचे तो उस दिन की राजनीतिक गतिविधियों का आकलन करके समझ गया कि शो बुरी तरह फ्लॉप होने वाला है, भव्य कार्यक्रम की तैयारी निरर्थक रहने वाली है।
हमारी हालत थी कि सामने आपदा आने वाली है और हमारे पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है। अब उससे मुकाबला ही करना था। हमारी मान्यता रही है कि हमारे हिस्से में अपनी ओर से अधिकतम कोशिश करना ही है। दो महीने तक हम कार्यक्रम के संबंध में लोगों से बातचीत करते रहे और उनसे आने का आग्रह भी करते रहे। पाठक उत्सव और लोकार्पण समारोह प्रयास की पूर्णाहुति थी। पूर्णाहुति की आंच में 50 हजार से अधिक रुपये स्वाहा हो गये, लेकिन आंच की धधक से निकली रौशनी यह बताने में सफल रही कि राह के कांटे महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है कांटों पर चलते रहने का संकल्प। संकल्प सिद्धि की ताकत पाठकों की सदिच्छा, सद्भाव और सहयोग से आती है। और उम्मीद करते हैं कि पाठकों का सहयोग निरंतर और निर्बाध बना रहेगा।