आशंका, उम्मीद और उपलब्धि। नियमित और निर्बाध सौ अंकों की यात्रा की उपलब्धि। यही पहचान है वीरेंद्र यादव न्यूज की। शुरुआत इस आशंका के साथ हुई थी कि अगला अंक छपेगा या नहीं। उम्मीद यह रही कि हर अंक निर्धारित समय पर प्रकाशित होता गया। उपलब्धि यह है कि आप और हम आज सौ अंकों के सफर में शामिल हैं। पाठकों की प्रतिबद्धता के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एकत्र हुए हैं। इस पत्रिका प्रवेशांक दिसंबर, 2015 में प्रकाशित हुआ था।
सौ अंकों का सफर। शताब्दी अंक विशेषांक का प्रकाशन। यह सब पाठकों से निरंतर मिलने वाले सहयोग के कारण संभव हो सका है। जन सहयोग से जन सरोकार की यह यात्रा आज एक कारवां बन गया है। आज बिहार समेत देश भर में इस पत्रिका के पाठक हैं। यह पत्रिका प्रिंट के रूप में पाठकों तक पहुंचती है। इसके साथ ही डिजीटल रूप में फेसबुक, वाट्सएप, मेल समेत सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म के माध्यम से भी पत्रिका पढ़ी जाती है।
बिहार की राजनीतिक खबरों को नये परिप्रेक्ष्य में देखने की कोशिश यह पत्रिका करती रही है। हम सामान्य धारणा से अलग हटकर खबरों को देखने की कोशिश करते हैं। उसमें नये नजरिये की तलाश करते हैं। यही कारण है कि पत्रिका की हर खबर पाठकों को काफी पंसद आती है। हमारे दृष्टिकोण से असहमत लोग भी पत्रिका के नजरिये को यथार्थपरक मानते हैं। बिहार के राजनीतिक समाज में जाति सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है, फैक्टर है। वीरेंद्र यादव न्यूज ने जाति को ही अपना केंद्रीय विषय बनाया। राजनीतिक व्यवस्था में जातीय हिस्सेदारी को जोरदार ढंग से उठाया। कुछ जातियों का ताडंव और अधिकतर जातियों की विवशता को भी फोकस किया। यही कारण है कि वीरेंद्र यादव न्यूज जातीय सूचना और डाटा का संदर्भ सामगी बन गया है।
हम जिस जाति की बात कर रहे थे, नेताओं की जाति पूछ रहे थे। अब वही काम राज्य सरकार ने खुद किया। सरकार ने जातियों की संख्या बतायी, उनकी आर्थिक और संसाधनगत स्थिति की रिपोर्ट सार्वजनिक की। वीरेंद्र यादव न्यूज ने नवंबर महीने में अपना सौवां अंक प्रकाशित किया। ठीक उसी महीने में राज्य सरकार ने विधानमंडल में जाति आधार गणना की रिपोर्ट पेश की। उसके आलोक में आरक्षण का दायरा भी बढ़ाया गया। जातीय वर्गों की आरक्षणगत हिस्सेदारी बढ़ायी गयी।
वीरेंद्र यादव न्यूज के सौ अंकों की यात्रा पाठकों के सहयोग, सद्भाव और समर्थन की वजह से पूरी हो सकी है। पाठकों से निरंतर मिलने वाला आर्थिक सहयोग ही पत्रिका की रीढ़ रही है, संबल रहा है। उसी के दम पर पत्रिका अपने सरोकार के साथ खड़ी रही है। हम अपने पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और हर मौके पर साथ खड़े रहने के लिए हम पाठकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।