भाजपा ने मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को बनाया है। मध्य प्रदेश में बाबूलाल गौड़ के बाद डॉ मोहन यादव भाजपा के दूसरे यादव मुख्यमंत्री हैं। डॉ मोहन के मुख्यमंत्री बनने के बाद हिंदी पट्टी में नयी तरह की बहस शुरू हो गयी है। मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारे में एक ही बात की चर्चा है कि क्या डॉ मोहन यादव के सीएम बनने का असर बिहार और उत्तर प्रदेश की यादव राजनीति पर पड़ेगा। हमसे भी कई लोगों ने यही सवाल पूछा। इस संबंध में हमने कहा कि डॉ मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने से बिहार या यूपी की यादव राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
जब हम भोपाल में रहते थे 1995 से 2000 के बीच। उस दौर में कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री हुआ करते थे सुभाष यादव। उनसे हमने एक सवाल पूछा था कि मध्य प्रदेश में लालू यादव या मुलायम सिंह यादव जैसा कोई नेता क्यों नहीं बन पाया। इस संबंध में सुभाष यादव का मानना था कि यूपी या बिहार की तरह एमपी में यादवों की आबादी नहीं है और राजनीतिक जागृति भी नहीं है। हम 2001 में पटना आ गये। 2004 में हम पटना हिंदुस्तान में थे। भोपाल में रहते हुए बाबूलाल गौड़ से हमारा बढि़या संबंध था। संभवत: 2004 का लोकसभा चुनाव था। बाबूलाल गौड़ पटना प्रचार में आये थे। उसी क्रम में वे हिंदुस्तान कार्यालय भी आये थे। उस समय भोपाल के रहने वाले श्याम वेताल हिंदुस्तान के संपादक थे। कार्यालय में श्री गौड़ से मुलाकात हुई, लेकिन अभिवादन तक सीमित रही। अगली सुबह होटल चाणक्य में मुलाकात करने पहुंचे। थोड़ी देर बातचीत हुई। इस दौरान उन्होंने स्वीकार किया कि हमारे नाम में यादव लगा होता तो भाजपा में इतना महत्व और इतनी बड़ी जिम्मेवारी नहीं मिलती। इसी बीच श्याम वेताल मुलाकात के लिए होटल आने वाले थे तो हम वहां प्रस्थान कर गये।
इस मुलाकात या घटना के लगभग 20 साल बाद डॉ मोहन यादव को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया है। डॉ मोहन की सबसे बड़ी योग्यता है कि उनके नाम के साथ यादव लगा हुआ है। बाबूलाल गौड़ यादव शब्द को नाम के साथ नहीं होने को अपना सौभाग्य बता रहे थे, वही यादव शब्द 20 साल बाद डॉ मोहन के लिए सौभाग्य बन गया।
बिहार में जाति आधारित गणना के बाद देश की राजनीतिक तस्वीर बदलने लगी है। खासकर यादव राजनीति के संबंध में। बिहार में यादवों की आबादी 14.26 प्रतिशत है। भाजपा जिन 80-81 फीसदी हिंदुओं की बात करती है, उस आबादी का लगभग 18 प्रतिशत। बिहार के संदर्भ सवर्ण हिंदुओं (भूराबाल) से लगभग दुगुना। भाजपा का सवर्ण नेतृत्व आज भी यादवों को मुसलमानों की तरह अछूत मानता है। इससे भाजपा का यादव कुनबा बराबर परेशान रहा है। भाजपा के बिहार प्रभारी के रूप में भूपेंद्र यादव लगभग 5 वर्षों की कोशिश के बाद भी कुछ हासिल नहीं कर पाये। केंद्रीय राज्य मंत्री नित्यानंद राय जैसे नेता उजियारपुर और वैशाली में ही डुबकी लगाते रह गये।
बिहार और यूपी समेत पूरे हिंदी पट्टी में यादव का वोट बाजार बहुत मजबूत है। आरक्षण के दायरे में यादव भले पिछड़ी जाति में आता है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा कई मोर्चों पर सवर्णों पर भारी पड़ता है। इसमें सबसे मजबूत मोर्चा राजनीति का है। किसी पार्टी के लिए यादव वोट हासिल करना प्राथमिकता रही है। इसके लिए भाजपा सबसे ज्यादा बेचैन है। यह बेचैनी स्वाभाविक है। बिहार में यादवों को साथ लिये बिना भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल करना मुश्किल है। बाहरी तौर पर लगता है कि गैरयादव पिछड़ी जातियां भाजपा के साथ जाने को तैयार हैं और भाजपा इसके लिए काम भी करती हुई दिखती है। लेकिन जमीनी यथार्थ इसके विपरीत है। सामाजिक स्तर पर सवर्णों का आतंक और प्रताड़ना गैरयादव पिछड़ी जातियों को भयभीत करता है। इसलिए भाजपा गैरसवर्ण आधार वाले राजनीतिक दलों या नेताओं के साथ गठबंधन जरूर बनाकर रखना चाहती है। 2014 और 2019 का गठबंधन इसका प्रमाण है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भाजपा के राजनीतिक हथकंडा हैं। वे यादव वोट बाजार के टटका माल है। एक नया चेहरा, एक निर्विवाद चेहरा। लोकसभा चुनाव में भाजपा डॉ मोहन को बिहार में झोंक देगी। लेकिन इसका ज्यादा असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। जब लालू यादव यूपी के और मुलायम सिंह यादव बिहार के यादवों पर अपना प्रभाव नहीं बना पाये तो डॉ मोहन यादव किस खेत की मूली हैं। लेकिन इतना तय है कि जिन सीटों पर भाजपा के यादव उम्मीदवार होंगे, उन सीटों पर भाजपा के लिए यादवों का कुछ वोट भले बढ़ सकता है, लेकिन अन्य सीटों पर डॉ मोहन निष्प्रभावी ही रहेंगे।
बात जब मध्य प्रदेश की है तो एक बात और जरूरी है। 1990 में लालू यादव को मुख्यमंत्री बनवाने में एमपी के शरद यादव की बड़ी भूमिका रही थी। टिकट वितरण से लेकर नेता चयन तक हर मोर्चे पर शरद यादव ने लालू यादव के अनुकूल माहौल बनाने का प्रयास किया। अब सवाल यह है कि क्या बिहार में शरद यादव जैसी भूमिका निर्वाह करने की हैसियत डॉ मोहन यादव की है। सवाल यह भी है कि क्या लालू यादव जैसा यादव फेस भाजपा के पास है।