बिहार में जातीय गणना में अतिपिछड़ी जाति की आबादी 36 फीसदी बतायी गयी है। वर्गीय आबादी में सबसे भारी, लेकिन सत्ता और संसाधनों की हिस्सेदारी में हल्की। इसमें कुल 112 जातियां आती हैं। लोकसभा में इस जाति के 7 सांसद हैं। इसमें 5 जदयू और 2 भाजपा में हैं। दो सांसद राज्य सभा में भी हैं। जदयू के रामनाथ ठाकुर और भाजपा के शंभूशरण (पटेल) धानुक।
अतिपिछड़ी जातियों की राजनीति लंबे समय तक नीतीश कुमार ने की, लेकिन इन जातियों का राजनीतिक सशक्तिकरण के नायक लालू यादव रहे हैं। लालू यादव के दौर में इन जातियों में सत्ता की भूख पैदा हुई और उस भूख को तृप्त करने का भरोसा नीतीश कुमार ने दिलाया। यही कारण है कि आज भी नीतीश की राजनीति का आधार अतिपिछड़ी जातियां ही हैं। अब भाजपा इन जातियों को अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम कर रही है। 2013 में नरेंद्र मोदी ने पटना में पैर रखते ही खुद को अतिपिछड़ी जाति के होने का सार्वजनिक एलान किया था और उसका लाभ भी भाजपा को मिला था।
आज जब लोकसभा चुनाव माथे पर है। सवर्ण और बनिया-वैश्य भाजपा के साथ हैं। कुल आबादी का लगभग 17 फीसदी। कमाई यानी कुर्मी, यादव और मुसलमान महागठबंधन के साथ हैं। इनकी आबादी लगभग 35 फीसदी है। 36 फीसदी अतिपिछड़ों में 6 फीसदी बनिया जाति भाजपा के साथ है। इसके अलावा मुसलमानों का अतिपिछड़ा राजद के साथ है, जिसकी आबादी लगभग 12 फीसदी है। मतलब हिंदू अतिपिछड़ी जातियों का लगभग 18 फीसदी वोट ही है, जिसे हम कंफ्यूज वोट कह सकते हैं और इसी वोट पर सबकी निगाह है।
सत्ता में हिस्सेदारी की बात करें तो लोकसभा में राजद या वामदलों का खाता भी नहीं खुला था। जो भी अतिपिछड़ी जाति के सांसद हैं, वे भाजया या जदयू के ही हैं। सुनील कुमार पिंटू (सीतामढ़ी), रामप्रीत मंडल (झंझारपुर), दिलेश्वर कामत (सुपौल), अजय कुमार मंडल (भागलपुर) और चंद्रेश्वर चंद्रवंशी (जहानाबाद) जदयू के सांसद हैं, जबकि मुजफ्फरपुर से अजय निषाद और अररिया से प्रदीप सिंह भाजपा के सांसद हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में आकलन करें तो स्पष्ट होता है कि भाजपा की तुलना में जदयू ने अतिपिछड़ों को ज्यादा तरजीह दी है और टिकट में उनकी हिस्सेदारी भी बढ़ायी है। अब जबकि फिर चुनाव का समय आ गया है। जाति गणना में अतिपिछड़ों की आबादी स्पष्ट रूप से दिख रही है। लेकिन उसका विभाजन भी उतना ही स्पष्ट है। 6 फीसदी बनिया भाजपा के साथ और 12 फीसदी मुसलमान राजद के साथ हैं।
भाजपा सूत्रों की मानें तो कोर कमेटी की बैठक यह मुद्दा प्रमुखता से उठा था कि टिकट बंटवारे में अतिपिछड़ों की हिस्सेदारी बढ़ायी जाए। गठबंधन के सहयोगी दलों समेत कुछ 40 सीटों में से कम से कम 11-12 सीटें अतिपिछड़ों को मिलनी चाहिए। भाजपा अकेले 30 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा करती है तो कम से कम 9 सीट अतिपिछड़ी जाति को मिलनी चाहिए। तर्क दिया गया कि टिकट दीजिएगा तभी वोट पर दावेदारी का दावा पुख्ता होगा।
इससे इतर एक बड़ा सवाल है कि अतिपिछड़ों का 18 फीसदी वोट, जो किसी पार्टी के साथ बंधा हुआ नहीं है, वह किधर जाएगा। जो वोट किसी पार्टी के साथ बंध गया है तो उसे कैसे अपने पक्ष में किया जाए। सभी दलों और गठबंधनों की यही रणनीति है। यह वोट किस पार्टी की बाराती बनेगी, उसी पर काफी हद तक चुनाव परिणाम निर्भर करेगा।
https://www.facebook.com/kumarbypatna/