मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव। भाजपा शासित राज्यों के किसी भी मुख्यमंत्री से ज्यादा क्वालीफाईड। बिहार भाजपा के किसी भी बड़े नेता से ज्यादा शैक्षणिक डिग्रीधारी। वाकपटुता में कोई जोड़ नहीं। प्रखर वक्ता और कम्यूनिकेटर। ये सब विशेषता है मोहन यादव की। पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में गुरुवार को अपने 17 मिनट के संबोधन में उन्होंने जमकर भाषण दिया और कोई राजनीति नहीं। भारत माता की जयकारा भी नहीं। अपने भाषण में उन्होंने तीन संदर्भों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिया, लेकिन वह परिप्रेक्ष्य भी राजनीति से हटकर ही था।
हम करीब पौन तीन बजे श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल पहुंचे तो भाजपा विधायक और विधान पार्षदों को अभिनंदन के लिए आमंत्रित किया जा रहा था। कुछ सामाजिक संगठनों की ओर से भी उनका अभिनंदन किया गया। इस दौरान माईक पर एक नारा गूंजा- जो मोदी का प्यारा है, वो मोहन हमारा है। लेकिन एक-दो बार के बाद नारा का दम टूट गया।
इस कार्यक्रम का आयोजन श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच की ओर से किया गया था। लेकिन आयोजन का पूरा खर्चा और भीड़ का पूरा इंतजाम भाजपा की ओर से किया गया था। इस आयोजन में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि मंच पर कोई भाजपा के नेता नहीं होंगे। नंदकिशोर यादव, रामकृपाल यादव और नित्यानंद राय के एक-एक एकदम विश्वस्त व्यक्ति मंच की पूरी व्यवस्था संभाल रहे थे। श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद, महासचिव डॉ गोरेलाल यादव मंच पर मोहन यादव के अगल-बगल में बैठे थे, जबकि मंच के तीसरे व्यक्ति प्रो अनिल यादव मंच का संचालन कर रहे थे। एकाध को छोड़ दें तो बाकी लोग भाजपा द्वारा आयोजित भीड़ का हिस्सा थे।
वस्तुत: भाजपा द्वारा आयोजित अभिनंदन समारोह पर श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच का लेबल लगा दिया गया था। इसके बावजूद बहुत बढि़या इवेंट मैनेजमेंट हुआ। ऐसे आयोजन की उम्मीद राजद खेमे से नहीं कर सकते हैं। 17 मिनट के भाषण में मोहन यादव ने अपने राजनीतिक टारगेट यूपी और बिहार को जोड़ते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ही दोनों राज्यों के सेतु हैं। उन्होंने ‘वृंदावन बांके बिहारी की जय’ का जयघोष करते हुए कहा कि जिसकी कोई तृष्णा नहीं है, वही कृष्णा है। इस नारे में यूपी और बिहार दोनों प्रतिबिंबित होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि श्रीकृष्ण को गोपाल इसलिए कहते हैं कि वे गो पालक भी थे। प्रकृति के साथ उनका स्वाभाविक जुड़ाव था। यही कारण है कि यदुवंशी प्रकृति पूजक भी होते हैं। उन्होंने कहा कि द्वारिकाधीश के प्रदेश से आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही हमें यह जिम्मेवारी सौंपी है। मोहन यादव ने कहा कि यह लोकतंत्र की ही ताकत है कि एक मील कर्मचारी का बेटा मुख्यमंत्री बन सकता है और चाय बेच कर परिवार चलाने वाले का बेटा प्रधानमंत्री बन सकता है। उन्होंने कहा कि जब वे शिक्षामंत्री थे तो नयी शिक्षा नीति के तहत स्कूली पाठ्यक्रमों में राम-कृष्ण से जुड़े संदर्भों को शामिल किया था।
मोहन यादव का अभिनंदन समारोह इस मायने में महत्वपूर्ण था कि अब तक यादवों के खिलाफ नफरत की राजनीति करने वाली भाजपा मंच से यादवों की बात करने लगी है। यह परिवर्तन जाति गणना रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद हुआ है। इससे पहले गोवर्धनपूजा के मौके पर भी बापू सभागार में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। यादवों को लेकर भाजपा में सुगबुगाहट या बेचैनी इसलिए बढ़ी है कि वह आत्मनिर्भर बनना चाहती है और यह आत्मनिर्भरता यादवों के मजबूत समर्थन के बिना संभव नहीं है। वह कोईरी-कहार के भरोसे स्वालंबन की लंबी पारी नहीं खेल सकती है। भाजपा का आधार वोट हिंदू सवर्ण और बनिया की कुल आबादी लगभग 16 प्रतिशत है, जो यादवों से थोड़ी-सी ज्यादा है। बिहार में हिंदुत्व का उन्माद स्थायी नहीं होता है। बिहार में पार्टी के अस्तित्व जातियों से जुड़ा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में मोहन यादव की उपयोगिता बढ़ जाती है।
मंच पर मोहन यादव की कार्यशैली लालू यादव से मिलती-जुलती दिखी। वे आगे बढ़कर लोगों से मिलने को आतुर थे। बिहार में आमतौर पर भाजपा के भूमिहारटाईप यादव नेताओं में यह प्रवृत्ति देखने को नहीं मिलती है। मोहन यादव का यादव वोटरों पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे यादवों की भीड़ में कितना मिलनसार दिखते हैं। श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में भीड़ भाजपा की थी, इसलिए उत्साह स्वाभाविक था। इस उत्साह का विस्तार हो, यह कोशिश भी लगातार भाजपा को करना होगा।
श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच भाजपा प्रायोजित संस्था या बैनर है। इस मंच का अभिनंदन समारोह पहला और अंतिम कार्यक्रम साबित नहीं हो, इसका ध्यान प्रायोजकों को रखना होगा। भाजपा ने मोहन यादव नामक जमुरा यादवों को थमा दिया है। इस संभावनाशील जमुरे के नाम पर विभिन्न जिलों में भी भाजपा भीड़ इकट्ठा कर सकती है, लेकिन भीड़ को वोट में तब्दील करने के लिए भाजपा के स्थानीय नेताओं को ही मेहनत करनी होगी। यादव सरोकार के नाम पर मुंह पर पट्टी बांधने वाले नित्यानंद राय या रामकृपाल यादव जैसे नेता क्या यादव हित और हिस्सेदारी की बात भाजपा के मंचों पर उठा सकते हैं। यदि इन नेताओं का मुंह यादव हित के नाम पर बंद रहा तो मोहन यादव भी निरर्थक ही साबित होंगे।
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