वरिष्ठ पत्रकार और समाजवादी धारा के प्रमुख चेहरा सुरेंद्र किशोर को इस साल का पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया है। यह सम्मान पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया है। 1967 के आसपास उनकी पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी, जो आज तक निरंतर जारी है। वह लंबे समय तक समाजवादी धारा की राजनीतिक कार्यकर्ता भी रहे हैं। आपातकाल में भी उनकी सक्रियता काफी थी। इसके बाद जनसत्ता और हिंदुस्तान में लंबे तक काम करने के बाद 2005 के आसपास पत्रकारिता की नौकरी से रिटायर्ड हो गए, लेकिन पत्रकारिता के साथ आज भी खड़ा हैं।
जनसत्ता में लगातार उनको पढ़ते रहता था, लेकिन मुलाकात 2001-02 में हुई थी, जब हम पटना नौकरी की तलाश में भटक रहे थे। उस समय सुरेंद्र किशोर हिंदुस्तान के राजनीतिक संपादक थे। उन्होंने हमसे वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह का इंटरव्यू करवाया था। वह इंटरव्यू हमारे लिए मील का पत्थर साबित हुआ पटना में आधार तलाशने के दौरान। इंटरव्यू की भाषा और प्रस्तुति उन्हें काफी पंसद आयी। इसके बाद उनसे मिलना-जुलना जारी रहा। 2003 में हम ने नौकरी की अपेक्षा से हिंदुस्तान के संपादक नवीन जोशी से मुलाकात की थी। उन्हें एक आलेख भी दिया था। काम करने की इच्छा भी जतायी थी। इस दौरान नवीन जोशी से हमारा परिचय हो गया था।
हमारी नौकरी के संबंध में नवीन जोशी जी ने सुरेंद्र जी से चर्चा की। इस बातचीत में सुरेंद्र जी ने कहा कि वीरेंद्र यादव जैसे लोगों को मौका नहीं दीजियेगा तो पप्पू यादव जैसे लोगों को पत्रकारिता में आने से नहीं रोक पाइएगा। उनका यही वाक्य ने हिंदुस्तान में हमारी एंट्री आसान कर दी थी। जुलाई 2003 में हमने हिंदुस्तान ज्वाईन किया। इस दौरान हिंदुस्तान में एक साप्ताहिक कॉलम आता था- सप्ताह का इंटरव्यू। इसमें प्रमुख राजनेताओं का इंटरव्यू प्रकाशित होता था। इसके लिए हमने लगातार कई इंटरव्यू किये। इस इंटरव्यू श्रृंखला से राजनीतिक गलियारे में हमारी पहुंच बनी। हिंदुस्तान में एंट्री के बाद से बिहार में हमारी पत्रकारिता की यात्रा निरंतर जारी है। इस यात्रा के पहले पड़ाव का पत्थर सुरेंद्र जी ने ही गाड़ा था। तब से हर मंजिल को पड़ाव मानते हुए यात्रा निरंतर जारी है।
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