भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव 15 फरवरी को बिहार विधान सभा के निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हो गये। उनके पक्ष में 15 प्रस्ताव आये थे और सभी को सही पाया गया था। इसके बाद निर्वाचन की विधायी प्रक्रिया पूरी करते हुए उन्हें निर्वाचित घोषित किया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव उन्हें आसन तक ले गये। इसके साथ ही उन्होंने अध्यक्ष की जिम्मेवारी संभाल ली। उसके बाद हमने उनके कक्ष में जाकर अपनी पत्रिका वीरेंद्र यादव न्यूज की कॉपी भेंट कर शुभकामनाएं दीं।
अध्यक्ष के रूप में उनके समक्ष सबसे बड़ी जबावदेही राजद के तीन बागी विधायकों की खिलाफ कार्रवाई करने की है। 12 फरवरी को राजद के विधायक प्रह्लाद यादव, चेतन आनंद और नीलम देवी सत्ता पक्ष की ओर बैठ गये थे और सरकार के पक्ष में मतदान किया था। जब नंदकिशोर यादव अध्यक्ष के रूप में आसन ग्रहण कर रहे थे तब भी तीनों विधायक सत्ता पक्ष में बैठे हुए थे। तीनों बागी विधायक सत्ता पक्ष के हित में दलबदल कानून का उल्लंघन किया है। इसलिए अध्यक्ष इन बागी विधायकों को बर्खास्त करने की कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। वजह साफ है कि अध्यक्ष आखिरकार आसन पर पार्टी का प्रतिनिधि होता है और पार्टी हित उनके लिए महत्वपूर्ण होता है। इसलिए बीच का रास्ता निकाला जा रहा है।
एनडीए सूत्रों के अनुसार, भाजपा तीनों बागी विधायकों से इस्तीफा दिलवाकर अपने कोटे से एमएलसी बनाएगी। इसका सबसे बड़ा लाभ होगा कि तीन विधायकों के इस्तीफे से राजद दूसरे नंबर की पार्टी की बन जाएगी और भाजपा सदन में सबसे बड़ी पार्टी हो जाएगी। इसका एक फायदा यह भी है कि कभी नीतीश ने फिर पाला बदला तो भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का दावा कर सकती है। तब भाजपा के राज्यपाल भाजपा को सरकार का बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। और सरकार बनने के बाद बहुमत का खेला होते रहता है।
राजद के अनुसार, पार्टी तीनों बागी के खिलाफ अपनी ओर से सदस्तया बर्खास्त करने का कोई क्लेम नहीं करेगा। उसे भी इसी बात का डर है कि तीन सदस्यों की सदस्यता खत्म हुई तो सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा समाप्त हो जाएगा। इसलिए राजद आस्तीन के सांप की तरह बागी विधायकों को झेलता रहेगा। संभव है कि भाजपा खुद आगे बढ़कर राजद के विधायकों को इस्तीफा दिलवाने की पहल करे और एक नये राजनीतिक समझौते से सदन में अपनी ताकत बढ़ाने की राह निकाल ले।