मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विश्वास मत पर अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि राजद ने उनसे शिक्षा विभाग छीन लिया था। इसका निहितार्थ कोई अनगढ़ व्यक्ति भी समझ सकता है कि सत्ताशीर्ष पर बैठा व्यक्ति कितना विवश है। इधर, भाजपा के प्रभाव वाली नीतीश कुमार की नयी सरकार में विभाग के बंटवारे में एक सप्ताह का समय लग गया। इसकी वजह थी कि भाजपा सामान्य प्रशासन, गृह और मंत्रिमंडल जैसा महत्वपूर्ण विभाग नीतीश कुमार से छीनना चाहती थी। यही कारण था कि एक सप्ताह तक मंत्री बिना विभाग के सड़कों पर टहलते रहे थे। बताया जाता है कि नीतीश कुमार ने भाजपा की एंठन से परेशान होकर फिर राजद के साथ जाने के धमकी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को दी थी। इसके बाद भाजपा मंत्रियों का एंठन ढीला पड़ा।
आखिर क्या वजह है कि सामान्य प्रशासन, गृह, मंत्रिमंडल जैसा विभाग मुख्यमंत्री अपने पास रखना चाहते हैं। तो इसको आप ठेठ गोवार की भाषा में समझिए। सामान्य प्रशासन और गृह विभाग ही सरकार होने का बोध कराता है। यह सरकार का भतार यानी पति होता है, जिसका वीटो हर मामले में चलता है। सरकार के संचालन में सबसे बड़ी भूमिका आइएएस, आईपीएस, बिहार पुलिस सेवा और बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की होती है। इसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा और बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का स्थानांतरण और पदस्थापन सामान्य प्रशासन के जिम्मे होता है, जबकि भारतीय पुलिस सेवा और बिहार पुलिस सेवा के अधिकारियों का स्थानांतरण और पदस्थापन गृह विभाग के जिम्मे होता है। जबकि मंत्रियों को देय वेतन, भत्ता और सुविधाओं का ठेका मंत्रिमंडल विभाग के पास होता है। किस डकैत को संत बताना है और किस संत को डकैत बता देना है, यह काम भी सामान्य प्रशासन और गृहविभाग की इच्छा से होता है। मान लीजिये कि सामान्य प्रशासन और गृह विभाग भाजपा के जिम्मे होता तो भाजपा ही तय करती कि मुख्यमंत्री को कितनी सुविधा और सुरक्षा देनी है। इतना नहीं, सीएम का प्रधान सचिव, पीएस और अन्य पदाधिकारी कौन नियुक्त होंगे, यह भी भाजपा तय करती। यही वजह थी कि सीएम इस विभाग को छोड़ना नहीं चाहते थे और भाजपा इन्हीं विभागों को छीनना चाहती थी। इस मामले में राजद भाजपा से ज्यादा ताकतवर साबित हुआ कि उसने शिक्षा विभाग छीन लिया था। उसी विभाग में स्थायी सरकारी नौकरी की बहार आयी और दो लाख से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति हो सकी।
सरकार में इन दो-तीन विभागों के अलावा सभी विभाग अपाहिज हैं। उन विभाग के मंत्रियों के पास फाइल पर साइन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ये विभाग प्रधान सचिव की रखैल की तरह हैं। सचिव से आगे मंत्री नहीं सोच सकते हैं। उसी विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा था कि स्वास्थ्य विभाग में नियुक्ति से जुड़ी फाइल विभाग के अपर मुख्य सचिव के दराज में बाहर नहीं निकल पायी। जिस मंत्री ने सचिव से लड़ाई की, उसकी औकात जमीन पर आ जाती है। जदयू में मदन सहनी को अपने सचिव से माफी मांगनी पड़ी थी, तब उनका पद बच पाया था। सुधाकर सिंह को विभागीय सचिव से लड़ाई के कारण ही मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। प्रो. चंद्रशेखर को भी अपने अपर मुख्य सचिव का कोपभाजन पड़ा।
दरअसल पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार से चलता है। उस पर ईमानदारी का लेप लगा दिय जाता है। पैसे की निकासी का अधिकार सिर्फ अधिकारियों के पास होता है। सत्ताशीर्ष पर बैठा व्यक्ति अधिकारियों पर नकेल लगाए रखने के लिए सामान्य प्रशासन और गृह विभाग जैसा विभाग अपने पास रखना चाहता है। इसलिए विभागों की छीना-झपटी होती है। स्वयं मुख्यमंत्री ने सदन में राजद पर विभाग छीनने का आरोप लगाया था।
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