नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव। अब उनका परिचय लालू यादव के पुत्र के रूप में लिखना उचित नहीं लगता है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘चरण और गर्दन’ की राजनीति में काफी पारंगत कर दिया है। पिछली सरकार में 17 महीनों में इतना काम किया कि नीतीश कुमार के अन्य 17 साल के कार्यों से तुलना किया जा रहा है। तेजस्वी यादव ने बिहार की राजनीति का एजेंडा बदल दिया है। तेजस्वी यादव ने एक व्यक्ति के रूप में इतनी ताकत हासिल कर ली है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने लगे हैं। बिहार में लोकसभा चुनाव का मुकाबला नरेंद्र मोदी बनाम तेजस्वी यादव के बीच ही होना है। इस चुनाव में नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी के यशोगान के मुख्य व्यास रहेंगे। बिहार की भाषा में किसी भी टीम के मुख्य गायक को व्यास कहते हैं। वह टीम का मुख्य गायक होता है, नेता नहीं। प्रधानमंत्री की औरंगाबाद और बेगूसराय की सभा में मुख्यमंत्री ने अपनी सीमा और संभावना तय कर ली है।
वर्तमान लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ही सबसे बड़े नायक होंगे। स्टार प्रचारक के साथ स्टार वोट शिफ्टर भी। लेकिन तेजस्वी यादव में कई कमजोरी और खामियां भी हैं, जिसका नुकसान भी उन्हें पड़ता है। तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी खामी है कि वे लोगों से मिलने में कतराते हैं। लोगों को दूर से गोड़ लग कर पीछा छुड़ाना चाहते हैं। यह संयोग ही है कि तेजस्वी यादव को इतनी भारी सुरक्षा बंदोबस्त है कि आम लोगों से जुड़ने नहीं देता है। दूसरा, तेजस्वी यादव काम को लेकर निरंतरता नहीं बनाये रखते हैं। ऐसा कई बार हुआ, जब तेजस्वी यादव कार्यक्रम की घोषणा करते हैं और फिर बीच में छोड़कर सोझ हो जाते हैं। गांधी मैदान में आयोजित जनविश्वास रैली के पहले पूरे प्रदेश में जनविश्वास यात्रा निकाली और फिर महारैली के बाद मैदान से गायब हो गये। तीसरी, जनता के साथ उनका प्रत्यक्ष संवाद नहीं है। जनता से मिलना अपना रानजीतिक अपमान समझते हैं और लोगों से बतियाना वाहियात समझते हैं। 10 नंबर वाली भीड़ 5 नंबर पहुंचते-पहुंचते गायब हो जाती है। चौथा, जो लोग तेजस्वी यादव को घेरे रहते हैं, उनका भी जनता से कोई सरोकार नहीं है। एक बात समझ नहीं आती है कि जो नेता खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार समझता है और जनता से मिलता भी नहीं है तो वह दिनभर करता क्या होगा। पांचवीं और आखिरी बात, तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आमने-सामने लड़ने के बजाये सत्ता में लौट आने की राह तलाशते रहते हैं। इसलिए वे कभी भरोसमंद प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वाह नहीं कर पाते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के पुत्र संतोष सुमन मांझी और तेजस्वी यादव में एक समानता है कि दोनों को अब तक जो कुछ हासिल हुआ है, वह परिस्थिति और राजनीतिक संयोग की वजह से हासिल हुआ है। अपने पराक्रम से हासिल करना बाकी है।