बिहार में महागठबंधन में इतनी गांठ है कि गिनना मुश्किल हो रहा है। दो चरणें में नाम वापसी की तिथि भी खत्म हो गयी, तीसरे चरण का नामांकन 12 अप्रैल से होगा। लेकिन महागठबंधन ने एक दर्जन सीटों पर उम्मीदवारों का नाम तय नहीं किया है। मुकेश सहनी को जोड़ लें तो महागठबंधन में 6 पार्टियां हो गयी हैं। वामपंथी के जिम्मे 5 सीट गयी थी और उन लोगों ने नाम तय कर प्रचार भी शुरू कर दिया है।
राजद, कांग्रेस और वीआईपी में पेंच उलझा हुआ। लंबी कवायद के बाद सीटों का बंटवारा हो चुका है, लेकिन दर्जन भर सीटों पर उम्मीदवार तय नहीं हो पा रहे हैं। इन सीटों पर टिकट के दावेदार नहीं हैं या खरीदार नहीं हैं, यह समझ से परे है। लेकिन इतना है कि नाम फाइनल नहीं हो रहा है। जो दावेदार टिकट हथियाने में कामयाब हो जाएंगे, उनको माल का इंतजाम करने में ही चुनाव पार हो जाएगा तो चुनाव क्या लड़ेंगे। जिन सीटों पर नाम फाइनल नहीं हुआ है, उसमें शेष पांचों चरणों वाली सीटें शामिल हैं।
आपने शीर्षक में एक शब्द पढ़ा है लेड़ा जाना। यह ठेठ गंवई शब्द है। कोई गाय जब प्रसव पीड़ा से गुजरती है और उसका बच्चा मरा हुआ जन्म लेता है या जन्म के तुरंत बाद मर जाता है। गाय की इस स्थिति को लेड़ा जाना कहते हैं। उससे मालिक को कोई उम्मीद नहीं होती है। गाय कितना दूध देगी, कब तक देगी या देगी ही नहीं। यह मालिक के लिए भी पीड़ा दायक होता है।
दरअसल महागठबंधन इसी दौर से गुजर रहा है। टिकट बांटने या बेचने में इतना समय लग रहा है कि टिकट हालिस करने वाला लेड़ा जाएगा। उसके पास इतना समय नहीं होगा कि अपने पक्ष में वोट को गोलबंद कर सके। महागठबंधन यह मानकर चल रहा है कि यादव और मुसलमान का थोक वोट है। उम्मीदवार विशेष की जाति का भी कुछ वोट मिल सकता है। लेकिन उम्मीदवार की ताकत, संपर्क और हवा से प्रभावित होने वाले वोटों का हिस्सा आधा से अधिक होता है। इसको प्रभाविक करने का समय उम्मीदवार के पास नहीं होगा। वैसे में लेड़ाए हुए गाय के दुधारू होने की उम्मीद करना मालिक की मूर्खता ही समझी जाएगी।
यह कहने में कोई परहेज नहीं है कि तेजस्वी यादव मजबूत नेता के रूप में उभर रहे हैं, लेकिन अपनी अनियोजित कार्यशैली और सहयोगी दलों की अनिर्णय वाली स्थिति का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की प्रतिष्ठा तेजस्वी यादव से जुड़ी है। उनका सीधा मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है, लेकिन मैदान मारने की तैयारी में कहीं नहीं ठहरते हैं।