वीरेंद्र यादव न्यूज ने लोकसभा चुनाव को लेकर एक संभावित रिजल्ट जारी किया है। इसमें हमने बताया है कि किस जाति के कितने सांसद लोकसभा के लिए चुने जाएंगे। इसमें पार्टी की बात नहीं की है। इसकी वजह है कि इस चुनाव में पार्टी का सिर्फ सिंबल तैर रहा था, मुद्दा के नाम पर सिर्फ जाति ही है।
चुनाव के दौरान हमने काफी लोगों से बातचीत की। किसी भी व्यक्ति ने विकास के दावों, नौकरी के वादों और सामान के भावों की बात नहीं की। सबने यही बात की कि किस जाति का वोट किस पार्टी के साथ है। राजनीतिक विश्लेषकों की पूरी फौज चुनाव मैदान में उतर गयी थी। सबके सब जाति की नाली में गोते लगा रहे थे। एक ने भी इससे इतर बात नहीं की।
चुनाव में टिकट वितरण में ही देख लीजिए। जिस जाति के पास जितने की क्षमता थी, उसी जाति के उम्मीदवार को टिकट दिया गया। किसी भी पार्टी में यह दम नहीं था कि वह अपनी नीति, सिद्धांत और कार्यक्रम के दावों के आधार पर किसी भी ढोढ़ा-मंगरू को चुनाव जीतवा ले। अपनी पार्टी या गठबंधन के नाम पर किसी भी उम्मीदवार को जिताने की ताकत न नरेंद्र मोदी के पास है, न तेजस्वी यादव के पास। नीतीश कुमार तो अब बात करने के लिए लायक ही नहीं रह गये हैं। वह अपनी कुर्सी के लिए नीति, सिद्धांत और निष्ठा सबकुछ बेचते रहे हैं। 4 जून के बाद फिर नयी दुकान छान लें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नरेंद्र मोदी और तेजस्वी यादव को भी इससे अलग नहीं मानना चाहिए।
1 जून को अंतिम चरण का मतदान होगा और 4 जून को रिजल्ट आएगा। वह रिजल्ट पार्टी के आधार पर होगा। किस पार्टी के कितने सांसद लोकसभा पहुंचते हैं। लेकिन उनकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका जाति की ही होगी। इसलिए हमने जाति के आधार पर सांसदों की संख्या का आकलन किया है। क्योंकि राजनीति का सच यही है कि जीत या हार जाति की होती है। पार्टियां सिर्फ ताली बजाएंगी।
वीरेंद्र यादव न्यूज के विश्लेष्ण के अनुसार, इस चुनाव में सबसे ज्यादा फायदे में यादव जाति रहेगी, जबकि सबसे ज्यादा नुकसान राजपूत को उठाना पड़ेगा। कोईरी को भी लाभ होने जा रहा है। इसको समझने के लिए हमारा ग्राफिक्स जरूर पढ़ें, जिसे रणविजय ने डिजाइन किया है। इसी खबर के साथ अटैच है।