1994 में नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर एक पार्टी बनायी थी समता पार्टी। उसे अब जदयू के नाम से जाना जाता है। समता पार्टी और नीतीश कुमार का दो लक्ष्य था। पहला लक्ष्य था यादव के खिलाफ नफरत की राजनीति को एजेंडा बनाना और दूसरा था बिहार में भाजपा की राजनीतिक जमीन को उर्वर बनाना। आज की तारीख में नीतीश कुमार ने दोनों लक्ष्य हासिल कर लिया है। यही नीतीश कुमार की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसके लिए उन्होंने खुद को मिट्टी में मिला लिया। उनका सपना मिट्टी में मिल जाने का था, वह भी पूरा हो गया।
बिहार समाजवाद की जमीन रही है। डॉ. लोहिया, भूपेंद्र नारायण मंडल, कर्पूरी ठाकुर, रामानंद तिवारी ने बिहार की समाजवादी जमीन को सींचा था, उर्वर बनाया था। अब इस उर्वर जमीन पर अब भगवा पताका लहरा रहा है। समाजवाद की दुकान सजाने वाले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू विधान सभा में तीसरी और विधान परिषद में दूसरी बड़ी पार्टी की हैसियत पर पहुंच गयी है। विधान परिषद और विधान सभा दोनों सदनों के प्रमुख भाजपा के हैं। दोनों सदनों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है। लोकसभा चुनाव में तीन सदस्यों के सांसद बनने और सदन से इस्तीफा देने के बाद राजद ने बड़ी पार्टी की हैसियत खो दी है। अब दोनों सदनों में भाजपा ही सिरमौर है। दोनों सदनों के आसन पर भी भाजपा विराजमान है और पार्टी के रूप में सदन में अधिक समय का हकदार बन गयी है। सदन प्रमुख की बात करें तो विधान सभा में नंद किशोर यादव अध्यक्ष हैं तो विधान परिषद में अवधेश नारायण सिंह कार्यकारी सभापति हैं।
लोकसभा चुनाव में विधान मंडल के पांच सदस्य सांसद बन गये हैं। इसमें चार विधान सभा के और एक विधान परिषद के सदस्य शामिल हैं। सुरेंद्र प्रसाद यादव (गया), सुधाकर सिंह (बक्सर), सुदामा प्रसाद (आरा), जीतनराम मांझी (गया) और देवेशचंद्र ठाकुर (सीतामढ़ी) से लोकसभा के लिए चुने गये हैं। इन सदस्यों के इस्तीफे के कारण सदस्यों की दलगत संख्या में फेरबदल हुआ है। विधान सभा के संदर्भ में बता दें कि कुछ सदस्यों के खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई विचाराधीन है। इसलिए हम उन्हें अभी मूल पार्टी के सदस्य के रूप में ही गिन रहे हैं। बजट सत्र के दौरान सदन में पाला बदलने वालों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इनके खिलाफ किसी कार्रवाई की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि आसन भी पार्टी हित के ऊपर नहीं होता है।
केंद्र में भाजपा की नयी सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार भाजपाई कुल्हों के साझीदार बन गये हैं। विचारधारा पर पर्दा डालकर सरकार को ढोते रहना ही उनकी राजनीतिक जिम्मेवारी रह गयी है। वैसे स्थिति में बिहार विधान सभा की अवधि को लेकर भी संशय बना हुआ है। इस संशय के बीच विधान सभा में भाजपा सदस्यों की संख्या 78 हो गयी है, जबकि 77 विधायकों के साथ राजद दूसरी बड़ी पार्टी हो गयी है। जदयू 44 विधायकों के साथ तीसरी बड़ी पार्टी है। विधान सभा में कांग्रेस के 19, माले के 11, हम के 3, सीपीआई के 2, सीपीएम के 2, एआईएमआईएम के 1 और निर्दलीय 1 सदस्य हैं। 5 सीट रिक्त हो गयी है। इधर, विधान परिषद में 24 सदस्यों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है, जबकि 21 सदस्यों के साथ जदयू दूसरी बड़ी पार्टी बन गयी है। परिषद में राजद के 15, कांग्रेस के 3, सीपीआई, हम, आरएलजेपी और माले के 1-1 सदस्य हैं, जबकि निर्दलीय 6 हैं। परिषद की दो सीट रिक्त है। वैसे विधान सभा की रुपौली और विधान परिषद की विधान सभा कोटे की एक सीट के लिए चुनाव प्रक्रियाधीन है।
कुल मिलाकर आज की तारीख में राज्यपाल, विधान सभा के स्पीकर और विधान परिषद के सभापति का पद भाजपा के पास है। यही भाजपा की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यही वजह है कि विधान सभा, विधान परिषद या राजभवन में आयोजित सरकारी कार्यक्रमों में भाजपा के नारों से जदयू के लोग भी गदगद रहते हैं। क्योंकि उनकी राजनीतिक सत्ता की मलाई अब भाजपा की जूठन पर ही निर्भर है।