समस्तीपुर जिले के लावापुर के खटाल और बधार से पैर पर खड़े होने की कोशिश शुरू करने वाले नागेंद्र राय आज किडनी की समस्या से पीडि़त हैं। इस पीड़ा ने उनकी यात्रा को धीमी कर दी है, थाम दी है। लेकिन उनकी संघर्ष की यात्रा इतनी लंबी है कि पढ़ते-पढ़ते लोग थक जाएंगे। हमने उनकी यात्रा कथा का वृतांत पढ़ते हुए यह महसूस किया कि एक आम व्यक्ति की जिदंगी में अभाव, उम्मीद और उल्लास के बीच संभावनाओं की राह खुलती चली जाती है। किसी भी निम्न या मध्यवर्गीय व्यक्ति की जीवन यात्रा व्यवस्थित नहीं होती है और न यात्रा को लेकर प्लान होता है। आदमी चलते जाता है और रास्ता बनते जाता है। उन्हीं लोगों में से नागेंद्र राय भी हैं।
फिल्म का शौक और संवाद इनकी जीवन यात्रा की दिशा और दशा से बंधा हुआ था। फिल्म का असर इतना हुआ कि स्थानीय ग्रामीण नाटकों में सक्रिय हो गये और लोकप्रिय पात्र बन गये। घर में शिक्षा का माहौल अनुकूल नहीं था, लेकिन शिक्षा की भूख ऐसी थी कि स्कूल से लेकर कॉलेज तक पहुंचने की राह निकालते रहे। मुम्बई के कमाल अमरोही इंस्टीच्यूट ऑफ फिल्म एक्टिंग से अभिनय का प्रशिक्षण भी लिया। इस संस्थान में अशोक कुमार, प्रदीप कुमार,जगदीश जयराम और नितिन बोस जैसे लोग क्लास लेते थे। उनकी जीवन यात्रा में जानकी वल्लभ शास्त्री, रामविलास पासवान और लालू यादव जैसे साहित्यकार और नेताओं की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन अभिनय के क्षेत्र में जगह तलाशते नागेंद्र राय को परिस्थितियों ने फोटोग्राफर बना दिया। गांव से लेकर दिल्ली और मुम्बई में ठौर बनाने की कोशिश में निराशा हाथ लगने के बाद वापस गांव आ गये। लेकिन मन उनका बेचैन था। इस दौरान फोटोग्राफी में काफी हाथ आजमा चुके थे। फिल्म में छोटी-छोटी भूमिकाओं के बीच फोटोग्राफी भी करते रहे थे। रामविलास पासवान के सहायक के साथ फोटोग्राफी भी करते रहे थे। इन कारण नेताओं के दरबार में इनकी पहुंच आसान थी। इसी क्रम में वे लालू यादव के संपर्क में आये। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री आवास में फोटोग्राफी भी करने लगे। यहीं से उनकी भूमिका एक पेशेवर फोटोग्राफर के रूप शुरू हुई और फोटोग्राफी के ब्रांड बन गये।
आप किसी कार्य की शुरुआत के लिए बड़ा प्लान बनाते हैं और हर कदम पर बाधा ही नजर आती है। लेकिन कभी-कभी यह बाधा विकल्प भी बन जाती है। मुख्यमंत्री आवास में फोटोग्राफी करते हुए उनके मन एक स्टूडियो खोलने का विचार आया। लेकिन संसाधन नहीं था। लालूजी के एक दोस्त थे लक्ष्मण यादव। उनसे नागेंद्र जी ने अपनी समस्या साझा की। उन्होंने अगले दिन अपने आवास पर बुलाया। उनकी बात सुनने के बाद लक्ष्मण यादव ने कहा कि जिस सुरेशजी के मकान में रहते हो, उसके आगे एक नीम का पेड़ है। उसमें एक बोर्ड लगा तो स्टूडियो का, खुल गया स्टूडियो। नागेंद्र राय वापस घर आये और नीम के पेड़ पर एक बोर्ड ठोक दिया गया – लालू स्टूडियो। जब इस बात की सूचना लालू यादव को मिली तो उन्होंने भी सराहना की और जब कभी मौका मिलता था तो लालू स्टेडियो और नागेंद्र जी के कार्यों की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा कर प्रोत्साहित करते थे। इससे अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं का ध्यान भी लालू स्टूडियो की ओर गया।
लालू यादव का राजनीतिक कद बढ़ने के साथ उनके साथ तस्वीर खींचवाने और फोटो बनवाने की होड़ लग गयी। और इस काम का सबसे बड़ा केंद्र बन गया लालू स्टूडियो। जब तक लालूजी सरकार में रहे, नागेंद्र राय भी मुख्यमंत्री आवास से जुड़े रहे। सत्ता बदलने के बाद भी लालू यादव के साथ उनका जुड़ाव बना रहा। वे करीब 5 वर्षों तक राजभवन के भी फोटोग्राफर रहे। नागेंद्र राय बताते हैं कि उनकी फोटोग्राफी को धार देने में फोटो पत्रकार शिप्रा दास की बड़ी भूमिका रही थी और उनके साथ उन्होंने सहायक के रूप में काम भी किया था।
नागेंद्र राय बिहार में कला और संस्कृति के क्षेत्र में बड़े उद्यमी हैं। संघर्ष की लंबी यात्रा के बाद फोटोग्राफी के पेशे की एक छोटी से शुरुआत की थी। लेकिन यही शुरुआत बिहार में फोटोग्राफी की दुनिया में ब्रांड बन गयी। यह सबकुछ उनकी लगन, मेहनत और निष्ठा के कारण संभव हो सका। पूंजी का अभाव था, लेकिन लगन और मेहनत से अभाव के बीच भी रास्ता खोजते रहे और आगे बढ़ते रहे। उद्यमिता पूंजी के साथ एक ईमानदारी और प्रतिबद्धता की भी अपेक्षा करती है। नागेंद्र राय ने इसी बेहतर सेवा, काम के प्रति प्रतिबद्धता और जीवन शैली में ईमानदारी के कारण खुद को फोटोग्राफी की दुनिया में पहचान बनायी और दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा भी बने। वीरेंद्र यादव न्यूज उनकी संघर्ष यात्रा और उद्यमी भाव के प्रति सम्मान व्यक्त करता है।