अभाव से गुजरी हुई जिदंगी जब सामर्थ्य की सीमा तक पहुंचती है तो बहुत हद तक सहज, सुलभ और सहृदय हो जाती है। राजनीतिक पद और कद बढ़ने के साथ व्यक्ति की सामाजिक जिम्मेवारी और दायित्व भी बढ़ता जाता है। करीब रहे लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ती जाती हैं। व्यक्ति अपनी मर्यादा में बंधा होता है और आसपास के लोगों की उम्मीद असीम होती है। इन सब के बीच समन्वय बनाना और सबको भरोसे में बनाये रखना बड़ी चुनौती होती है। इन चुनौतियों के बीच संबंध को प्रगाढ़ बनाये रखने के मर्मज्ञ हैं अवधेश नारायण सिंह। सत्ता पक्ष के साथ अपनापन है तो विपक्ष के साथ भी अपनत्व। इन्हीं गुणों की वजह से वे पिछले 6 बार से विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हो रहे हैं और संसदीय जीवन के 31 वर्षों की पारी खेल रहे हैं। 2008 से 2010 तक राज्य सरकार में श्रम संसाधन मंत्री रहे हैं तो विधान परिषद के आसन पर चार बार विराजमान हुए हैं। दो बार कार्यकारी सभापति और दो बार सभापति की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। फिलहाल वे विधान परिषद के सभापति पद की चौथी पारी संभाल रहे हैं। संभवत: अवधेश नारायण सिंह पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें चार बार सभापति बनने का मौका मिला है।
रविवार को सरकारी आवास पर सभापति अवधेश नारायण सिंह से मुलाकात हुई। इस मुलाकात के दौरान उपसभापति डॉ रामवचन राय भी मौजूद थे। इससे पहले हुई मुलाकात में उन्होंने अपने प्रारंभिक शिक्षा के बारे में बातचीत में बताया था कि किस तरह अभाव के बीच स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई। इस दौरान उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलती थी। पढ़ाई का दौर स्कूल से कॉलेज तक पहुंचा। बीआईटी सिंदरी से बीएस इंजीनियरिंग (1971) की डिग्री हासिल की और फिर जिदंगी की नयी पारी शुरू की। इस दौरान अपने कारोबार में जुट गये। इसके साथ ही राजनीति का दौर भी चलता रहा। उस समय की लोकप्रिय पत्रिका युवजन से जुड़े और लोकदल का युवा संगठन युवजन सभा में भी सक्रिय रहे। उनके आवास पर राज नारायण, मधु लिमये से लेकर जार्ज फर्नांडीस तक आ चुके थे। इसी बीच उन्हें जिला उद्योग पदाधिकारी की नौकरी भी मिली। कई वर्षों तक नौकरी करने के बाद एक बार रांची में दक्षिणी छोटानागपुर के स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से तत्कालीन एमएलसी बसंत कुमार लाल के साथ बहस हो गयी। इसके बाद उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर उनके ही खिलाफ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। अगला चुनाव भी उसी क्षेत्र से लड़े और 13 वोटों से पराजित हो गये। इसके बाद गोपाल नारायण सिंह (अब पूर्व सांसद) की सलाह पर भाजपा में शामिल हुए और 1993 के विधान परिषद चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट दिया। इस चुनाव में उन्होंने बसंत कुमार लाल को पराजित किया। इसके साथ शुरूहुई उनकी विजय यात्रा अभी तक निर्बाध है।
बिहार के बंटवारे से जुड़ी घटना के संबंध में उन्होंने बताया कि बंटवारे के विधेयक में प्रावधान था कि बंटवारे के बाद झारखंड क्षेत्र से निर्वाचित सभी 13 एमएलसी की सदस्यता समाप्त हो जाएगी। 1999 में ही दूसरी बार वे निर्वाचित हुए थे और उसी साल सदस्यता समाप्त होने की नौबत आ गयी। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से बातचीत कर गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाकात करवाने का आग्रह किया। श्री आडवाणी से मुलाकात के दौरान उन्होंने विधेयक के कानूनी पक्ष के बारे में बताकर कहा कि यदि यह मामला कोर्ट में जाएगा तो सरकार को हार का सामना करना पड़ सकता है। अवधेश नारायण सिंह की बात से संतुष्ट होकर श्री आडवाणी ने कहा कि आखिर आप क्या चाहते हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड क्षेत्र से जुड़े विधान पार्षदों का कार्यकाल पूरा होने तक उन्हें पद पर बनाये रखा जाए। इसके बाद केंद्र सरकार ने विधेयक को संशोधित कर पास करवाया और इन 13 सदस्यों की सदस्यता कार्यकाल पूरा होने तक बरकरार रखी गयी। 2005 में वे तीसरी बार गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद से लगातार निर्वाचित हो रहे हैं। विधान परिषद सभापति की चौथी पारी उन्होंने इसी साल शुरू की है।
अवधेश नारायण सिंह ने भाजपा में कई वर्षों तक संगठनात्मक पदों की जिम्मेवारियों का निर्वाह किया और कार्यकर्ताओं का भरोसा जीता। अपनी 31 वर्षों की संसदीय यात्रा के संबंध में उन्होंने कहा कि भाजपा ने एक सम्मानपूर्ण राजनीतिक यात्रा का अवसर प्रदान किया। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और प्रादेशिक नेतृत्व ने लगातार उन पर विश्वास जताया और बड़ी जिम्मेवारी निर्वाह करने का मौका दिया। वे कहते हैं कि हमने भी पार्टी और पार्टी नेताओं के भरोसे पर खरा उतरने का पूरा प्रयास किया। अलग-अलग समय पर विधान परिषद में सत्ता और विपक्ष का मुख्य सचेतक की जिम्मेवारी निर्वाह करने वाले श्री सिंह कहते हैं कि बिहार का सौभाग्य है कि नीतीश कुमार जैसे कर्मठ, ईमानदार और संबंधों को निभाने वाले व्यक्ति मुख्यमंत्री हैं। उनके ही कुशल नेतृत्व में बिहार का तेज गति आर्थिक विकास होने के साथ ही सामाजिक न्याय की धारा भी मजबूत हुई है। इसका फायदा पूरे बिहार को मिल रहा है। उन्होंने बिहार के विकास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के सकारात्मक सहयोग के प्रति आभार भी जताया।