विधान सभा क्षेत्र में जातिवार हिस्सेदारी के हिसाब से राजपूत जाति भूमिहारों के बराबर भी नहीं ठहरती है। मात्र आठ विधान सभा क्षेत्र में राजपूत सबसे बड़ी आबादी वाला वोटर है। वीरेंद्र यादव फाउंडेशन और वीरेंद्र यादव न्यूज के वोटरों के हालिया जातीय सर्वे के अनुसार, बैकुंठपुर, मांझी, बनियापुर, तरैया, छपरा, नवीनगर, औरंगाबाद और कुटुंबा विधान सभा क्षेत्र में राजपूत सबसे बड़ा वोटर समूह है। बिहार की सभी विधान सभा सीटों पर प्रमुख जातियों के वोटरों की संख्या वीरेंद्र यादव फाउंडेशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक ‘राजनीति की जाति पार्ट 2’ में प्रकाशित है। इस पुस्तक की कीमत मात्र पचपन सौ (5500) रुपये हैं। यह पुस्तक वीरेंद्र यादव न्यूज के पिछले 5 सालों के अंकों का संकलन है और हर अंक चुनाव के लिहाज से संग्रहणीय है।
बिहार की राजनीति में राजपूत दबंग और हल्लाबोल जाति मानी जाती है। उसके पास संसाधनों के साथ संख्या बल भी है, लेकिन भूमिहारों की तरह राजपूत की बसावट सघन नहीं है। इसलिए एक जाति समूह के रूप में किसी विशेष विधान सभा क्षेत्र में वोटर की आबादी के हिसाब पिछड़ जाति है। इसके विपरीत भूमिहारों की बसावट काफी सघन है। भूमिहार जहां हैं, खूब हैं या नहीं हैं तो नहीं हैं। लोकसभा में भूमिहार आमतौर पर बेगूसराय, मुंगेर और नवादा से जीतते रहे हैं तो इसकी वजह है कि भूमिहार बहुल अधिकतर विधान सभा क्षेत्र इन्हीं इलाकों में पड़ता है।
राजपूत जाति के सांसद या विधायक प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से निर्वाचित होते हैं। इसकी वजह है कि इनकी बसावट बिखरी हुई है। राजपूत जाति के पास कोई वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं है। संभावना के हिसाब से पार्टी और निष्ठा बदल लेते हैं। राजपूत जाति में ऐसे भी विधायक हुए हैं, जिनके दादा कांग्रेस में, पिता राजद में और खुद भाजपा में हैं। फिलहाल भूमिहारों की तरह राजपूतों को भी यादव से खौफ होता है, इसलिए भाजपा के साथ सेफ महसूस करते हैं। फिर भाजपा को लेकर अवधारणा बनी है कि वह भूराबाल को सबसे अधिक सिंचती है। इसलिए वहां संभावना भी ज्यादा दिखती है। आगामी विधान सभा चुनाव में राजपूत भाजपा के साथ ही रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें संभावना के आधार पर महागठबंधन के दलों से भी परहेज नहीं है।