राजधानी पटना की पहचान किसी जाति विशेष के रूप में नहीं की जा सकती है। इसकी राजनीति यादव, भूमिहार और कायस्थों के बीच डोलती रही है। पटना प्रमंडल का मुख्यालय पटना है। इसमें छह जिले आते हैं, उनमें पटना के अलावा नालंदा, भोजुपर, बक्सर, कैमूर और रोहतास शामिल हैं। हम शाहाबाद के रूप में चार जिलों की बात पहले ही कर चुके हैं। आज की बातचीत नालंदा और पटना जिले पर केंद्रित होगी।

नालंदा जिले में सात विधान सभा क्षेत्र हैं। इन सातों क्षेत्रों को मिलाकर नालंदा लोकसभा क्षेत्र बना हुआ है। जबकि पटना जिले में 12 विधान सभा क्षेत्रों को मिलाकर पाटलीपुत्र और पटना साहेब लोकसभा क्षेत्र है, जबकि बाढ़ और मोकामा विधान सभा क्षेत्र मुंगेर लोकसभा सीट का हिस्सा हैं। दोनों जिलों को मिलाकर कुल 21 विधान सभा क्षेत्र हैं। विधान सभा क्षेत्रों का पार्टिगत विभाजन करें तो राजद के 7, भाजपा के 6, जदयू के 5, माले के 2 और कांग्रेस के एक विधायक हैं। पत्रकार वीरेंद्र यादव की पुस्तक राजनीति की जाति पार्ट-2 के आंकड़ों के अनुसार, इन जिलों में सबसे अधिक 7 विधायक यादव जाति के हैं। कुर्मी जाति के 4 विधायक हैं और चारों नालंदा जिले से ही हैं। कायस्थ, चमार और भूमिहार के 2-2 विधायक हैं। कोईरी, राजपूत, दुसाध और चौरसिया जाति के 1-1 विधायक हैं। पत्रकार वीरेंद्र यादव की पुस्तक राजनीति की जाति पार्ट-2 में सभी विधान सभा क्षेत्र में 10 प्रमुख जातियों की वोटर संख्या दी गयी है। प्रदेश में मात्र 15 विधान सभा क्षेत्रों में भूमिहार जाति सबसे बड़ा वोट समूह है। उसमें पटना जिले का मोकामा और बिक्रम भी शामिल है।
पटना प्रमंडल के इन दो जिलों की इसलिए भी महत्ता है कि यहीं से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आते हैं। वे बाढ़ और नांलदा का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पहली बार 1985 में विधायक हरनौत से बने थे। विधान सभा स्पीकर नंद किशोर यादव भी पटना जिले से आते हैं और अपनी सीट से लगातार सातवीं बार निर्वाचित हुए हैं।
पटना और नालंदा जिले का इतिहास भी शाहाबाद और मगध की तरह रक्तरंजित रहा है। पटना जिले के बेलछी में दलितों को जिंदा जला दिया था। यह दो जातियों की आपसी रंजिश का परिणाम था। पालीगंज और मसौढ़ी नक्सली आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा था। हालांकि अब स्थिति बदली है। जातीय और नक्सली हिंसा पर अंकुश लगा है, लेकिन यदाकदा जाति हिंसा की खबर अब भी आती है।
जाति के हिसाब से कायस्थों के लिए पटना को आसान माना जाता है। कई दशकों से पटना शहरी इलाकों के सांसद कायस्थ होते रहे हैं। पहले शत्रुघ्न सिन्हा होते थे,अब रविशंकर प्रसाद हो रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में यह माना जाता है कि भाजपा प्रतीकात्मक रूप से कायस्थों को पटना की पहचान बनाये रखना चाहती है। हालांकि वोटरों की संख्या के हिसाब से यादव और मुसलमान ही भारी पड़ते हैं।
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