अब नाम नहीं, केस नंबर बताना पड़ता है। अब यही परिचय है। खोयी मोटरसाइकिल की तलाश में भटकने वाले पत्रकार की। 7 फरवरी को फुलवारीशरीफ-एम्स सड़क पर स्थित रजिस्ट्री कार्यालय के पास से लापता हुई अपनी मोटरसाइकिल की प्राथमिकी दर्ज करायी थी। पटना के फुलवारीशरीफ थाने में 8 फरवरी की तिथि में दर्ज प्राथमिकी का केस नंबर है – 180/23.
थाने में केस नंबर, अस्तपाल में बेड नंबर और दफ्तरों में फाइल नंबर। इन जगहों में आदमी की पहचान नंबरों से तय होती है। नंबर के इस खेल का सिलसिला थमने वाला नहीं है। प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद हम गाड़ी की चिंता से मुक्त हो गये। गाड़ी अब मिलने से रही। लेकिन मन नहीं मानता है और फुलवारी थाने में केस नंबर के अपटेड के लिए पहुंच जाते हैं। मोटरसाइकिल तलाशी का आग्रह हमने डीजीपी और पटना एसएसपी को मेल से किया था, लेकिन चिट्ठी संबंधित व्यक्ति तक पहुंची या नहीं, इसकी सूचना अभी तक नहीं दी गयी है।
साइकिल से मोटर साइकिल तक पहुंचने में 17 साल लग गये थे, लेकिन मोटर साइकिल से पैदल होने में सत्रह दुनी 34-35 मिनट भी नहीं लगा। साइकिल यात्रा की अपनी कहानी है। इससे जुड़ी कई कहानियां दिमाग में तैर जाती हैं। जब आपके पास कुछ नहीं होता है तो साइकिल का सहारा ही बड़ा बन जाता है। मोटर साइकिल ने हमारी यात्रा को गति दी थी, संभावना की नयी राह दिखा रही थी। लेकिन अचानक गति ठहर गयी, गतिविधि कम हो गयी।
हालांकि इसे हम एक सकारात्मक संकेत भी मानते हैं। हमारी जीवन यात्रा में ऐसे कई मौके आये, जब लगा कि अब कुछ हाथ से फिलसता जा रहा है। लेकिन यह फिसलन किसी नयी संभावना, उम्मीद और रास्ते पर पहुंचा देती है। संभव है कि अभी सामने खड़ी हुई परेशानी किसी बेहतर रास्ते की जमीन तलाश रही हो। अब तो मोटरसाइकिल के साथ की तस्वीर ही हमारे पास रह गयी है। इसे ही साझा कर के संतोष कर रहे हैं।