श्री सिन्हा ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की केवल सरकार पर ही नहीं, पार्टी संगठन पर भी पकड़ ढीली हुई है। उपेन्द्र कुशवाहा द्वारा राजद से हुए समझौते (डील) का खुलासा करने की मुख्यमंत्री को हिम्मत नहीं हुई, जबकि तीन माह पहले ही राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने उसे उद्धाटित करते हुए कहा था कि 2023 में नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में जाएंगे और तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री होंगे। उस दौरान जदयू के राजद में विलय की चर्चा भी जोर पकड़ी थी, जिसके बाद जदयू के तत्कालीन संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त किया था।
उन्होंने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी हार तय देख कर जदयू के एक दर्जन से ज्यादा सांसदों में बेचैनी है। उन्हें यह अच्छी तरह मालूम है कि 2019 में उनकी जीत भाजपा के वोटरों ने तय की थी। बदले हालात में भाजपा अब साथ नहीं है तथा राजद का जो कोर वोटर हैं वह कभी भी जदयू को अपना वोट ट्रांसफर नहीं करेगा। पिछले दिनों हुए तीन उपचुनावों का जो परिणाम आया है, उससे यह स्पष्ट भी हो गया है। इसके अलावा अगर जदयू का लोकसभा चुनाव तक अस्तित्व बचा भी रहता है तो राजद उसके सभी सांसदों को टिकट देने पर राजी नहीं होगा। ऐसे में या दो जदयू का राजद में विलय होगा या फिर जदयू के लोग उसे छोड़ कर भागेंगे।
श्री सिन्हा ने कहा कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की पलटी मारने के बाद राजद में भी बेचैनी है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की अंतिम इच्छा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनते देखने की है। यह दीगर है कि बिहार की जनता लालू प्रसाद और उनके युवराज को कभी स्वीकार नहीं करेगी, मगर आने वाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर राजद-जदयू में रार बढ़ेगा।