शुक्रवार को हमने सबसे हार्ड ड्यूटी की। सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक विधान सभा के प्रेस दीर्घा का चक्कर लगाते रहे। करीब साढ़े चार घंटे की कार्यावधि थी। साढ़े चार घंटे की कार्यावधि में 500 शब्दों की पठनीय खबर तलाशना मुश्किल हो गया था। हालांकि समाचार माध्यमों के लिए सदन की हर घटना खबर होती है। यह पत्रकार और अखबार की जरूरत पर निर्भर करता है।
वीरेंद्र यादव न्यूज की खबर का मतलब सूचना नहीं है। हमारे लिए खबर का मतलब शब्द, शैली और संवेदना का ‘समावेशी’ विकास है। तीनों के बीच संतुलन बनाकर चलना। हमारी विशेषता है कि हर राजनीतिक पाठक हमें अपना विरोधी मानते हैं।
हम विधान सभा की कार्यवाही की बात कर रहे थे। दोनों सदनों में कार्यवाही शुरू होने से पहले 5 मिनट तक घंटी बजती है। पांच मिनट तक घंटी बजने की परंपरा कब से और क्यों शुरू हुई, कोई नहीं बता पाया। आप मान सकते हैं कि ढाई-तीन लाख लोगों का प्रतिनिधि बनने के बाद व्यक्ति बहरा हो जाता है। शायद इसीलिए इतनी देर घंटी बजानी पड़ती है। इस पर चर्चा बाद में करेंगे।
शुक्रवार को विपक्ष यानी भाजपा ने पहले सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया। इसके बाद विपक्ष सदन में आया। फिर विपक्ष की भूमिका में भी आ गया। थोड़ी देर अपनी सीट पर से कार्यवाही बाधित करने के बाद दूसरी पंक्ति के विधायक वेल में आ गये। विपक्ष अपने तेवर में कार्यवाही बाधित करने की कोशिश कर रहा था तो अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी कार्यवाही को निर्बाध चलाते रहे। भाजपा के सदस्य पहले वेल में आये। थोड़ी देर नारेबाजी की। इस बीच पहली पंक्ति के नेता भी वेल में आ गये। वेल में इतनी ज्यादा भीड़ हो गयी कि ‘डूबने’ की जगह भी नहीं बची। भगवा रंग की राजनीति करने वाले अधिकतर सदस्य हरे रंग के फर्श पर बैठ गये। कुछ सदस्य जगह के अभाव में खड़े ही रहे तो एकाध सदस्यों ने रिपोर्टर की कुर्सी पर भी कब्जा जमाया। श्रेयसी सिंह फर्श पर बैठ गयीं, जबकि अन्य महिला सदस्य खड़ी रहीं। भागीरथी देवी भी कुर्सी पर बैठ गयीं। इस दौरान भाजपा के सदस्य समानांतर सदन चलाने की कोशिश कर रहे थे। इसी शोर-शराबे के बीच भोजनावकाश हो गया, जबकि दूसरी पाली में कई विभागों के अनुदान मांग पर चर्चा हुई और स्वीकृति प्रदान की गयी।
इन दिनों में विधान सभा सदस्यों को मिलने वाली बैग को लेकर खूब चर्चा गरम है। विधान सभा में जिस विभाग की अनुदान मांग पर चर्चा होती है, उस विभाग से जुड़ा प्रतिवेदन, वार्षिक रिपोर्ट और अन्य जरूरी पुस्तकें सदस्यों के बीच वितरित की जाती है। इस कागजों को बैग में भरकर दिया जाता है। कुछ विभाग तो प्लास्टिक फाइल से काम चला लेते हैं तो कई विभाग लेदर का बैग भी देते हैं। इधर, राजनीतिक गलियारे की चर्चा की अनुसार, ग्रामीण विकास विभाग की ओर से सबसे बढि़या बैग विधायकों को दिया गया है। देखने में सुंदर भी था और महंगा भी।