देवेश चंद्र ठाकुर। बिहार विधान परिषद के सभापति हैं। सर्वसम्मति से निर्वाचित हुए हैं लगभग 7 महीना पहले। सभापति के रूप में उनका पहला बजट सत्र है। इनकी कार्यशैली को लेकर दोनों पक्ष के सदस्यों में संतोष भाव है। पिछले दिनों लॉबी में कुछ विधान पार्षदों से बातचीत हो रही थी। फोकस लोकसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी पर था। यह चर्चा सीतामढ़ी लोकसभा सीट से विधान परिषद के सभापति देवेश च्रंद्र ठाकुर की दावेदारी पर आकर ठहर गयी। लोगों का मानना था कि मुख्यमंत्री की ओर से देवेश चंद्र ठाकुर को तैयारी का संकेत मिल गया है। इसी कारण सभापति श्री ठाकुर ने सीतामढ़ी के आम कार्यकर्ताओं के साथ संपर्क बढ़ा दिया है।
बदलते राजनीतिक समीकरण को देखते हुए सीतामढ़ी के वर्तमान सांसद सुनील कुमार पिंटू ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। वे पहले भाजपा के विधायक और राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। हालांकि बातचीत में श्री पिंटू ने कहा कि बिहार से ट्रकों की हो रही चोरी के मामले में गृहमंत्री से मुलाकात की थी। बिहार से चोरी गये ट्रक नंबर बदलकर छतीसगढ़ में चल रहे हैं। इसलिए ट्रक चोरी पर नियंत्रण के लिए अंतरराज्यीय टास्क फोर्स बनाने का आग्रह भी गृहमंत्री से किया था।
हम चर्चा कर रहे थे देवेश चंद्र ठाकुर के सीतामढ़ी से लोकसभा चुनाव में जदयू के टिकट की दावेदारी के संबंध में। लेकिन सवाल यह है कि क्या देवेश चंद्र ठाकुर को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए विधान परिषद के सभापति पद से इस्तीफा देना पड़ेगा? राजनीतिक चर्चा के अनुसार, राज्यपाल, लोकसभा स्पीकर, राज्यसभा सभापति, विधान सभा अध्यक्ष या विधान परिषद अध्यक्ष का पद संवैधानिक पद है। संवैधानिक पद का राजनीतिक तात्पर्य क्या है, इस संबंध में कोई आधिकारिक जानकारी हमारे पास नहीं है। इस संबंध में पाठक अपनी जानकारी से अवगत करा सकते हैं।
श्री ठाकुर विधान परिषद के सभापति के संवैधानिक पद पर रहते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं? क्या संवैधानिक पद पर रहते हुए लोकसभा चुनाव लड़ना संभव है? इस संबंध में कई तरह के उदाहरण मौजूद हैं। राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने से पहले बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन 2020 में स्पीकर रहते हुए विजय कुमार चौधरी ने विधान सभा चुनाव लड़ा था और फिर निर्वाचित होकर आये थे। नयी सरकार में मंत्री भी बने।
लोकसभा चुनाव में अभी एक साल बाद बाकी है। टिकट को जोर आजमाईश शुरू हो गयी है। सौ से अधिक विधायक और विधान पार्षद अपनी-अपनी पार्टी से टिकट की अपेक्षा कर रहे हैं। कुछ लोगों को दूसरी पार्टी से टिकट कंफर्म होने के बाद विधायकी छोड़ने से भी परहेज नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, परिषद सभापति रहते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने में कोई रोक नहीं है, लेकिन निर्वाचित होने के 14 दिन के अंदर किसी एक सदन से इस्तीफा देना होगा। मतलब 14 दिनों तक दोनों पद की सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। यदि चुनाव हार भी जाते हैं तो सभापति पद पर कोई असर नहीं पड़ेगा। विधान परिषद के वर्तमान कार्यकाल तक सभापति बने रहेंगे।