बिहार में लोकसभा क्षेत्रों के नामांकन का पहला क्रम वाल्मीकिनगर है। वाल्मीकिनगर में टाइगर रिजर्व भी है। यहां के सांसद सुनील कुमार कुशवाहा हैं। 2019 के चुनाव में बैजनाथ महतो जदयू के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। उनके देहांत के बाद हुए उपचुनाव में उनके पुत्र सुनील कुशवाहा को जदयू ने टिकट दिया और वे निर्वाचित हुए।
परिसीमन के बाद 2009 में हुए पहले चुनाव में इस सीट से जदयू के बैजनाथ महतो ही निर्वाचित हुए थे। उस समय जदयू और भाजपा में गठबंधन था। 2014 में जदयू और भाजपा अलग-अलग थे। उस समय इस सीट से भाजपा के सतीश चंद्र दुबे निर्वाचित हुए थे। 2019 में फिर भाजपा और जदयू एक साथ आये। इस कारण यह सीट जदयू के कोटे में चली गयी और सतीश चंद्र दुबे बेटिकट हो गये। नये गठबंधन में बैजनाथ महतो दूसरी बार निर्वाचित हुए।
वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र के तहत पश्चिम चंपारण जिले की 6 विधान सभा सीट आती हैं। इन 6 में से 4 सीटों पर भाजपा का कब्जा है, जबकि एक-एक सीट जदयू और माले के हिस्से में हैं। रामनगर से भागीरथी देवी, नरकटियागंज से रश्मि वर्मा, बगहा से राम सिंह और लौरिया से विनय बिहारी भाजपा के विधायक हैं, जबकि वाल्मीकिनगर से जदयू के धीरेंद्र प्रताप सिंह और सिकटा से माले के वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता हैं।
वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र
वर्ष — जीते — पार्टी — जाति — हारे — पार्टी — जाति
2009 — बैजनाथ महतो — जदयू — कोईरी — फखरुद्दीन — निर्दलीय — मुसलमान
2014 — सतीश चंद्र दुबे — भाजपा — ब्राह्मण — पूर्णमासी राम — कांग्रेस — चमार
2019 — बैजनाथ महतो — जदयू — कोईरी — शाश्वत केदार — कांग्रेस — ब्राह्मण
अगले लोकसभा चुनाव की दावेदारी के संबंध में कहा जा सकता है कि जदयू के सांसद सुनील कुमार को फिलहाल कोई बड़ी चुनौती नहीं मिल रही है। पार्टी के अंदर कोई मजबूत दावेदार नहीं हैं और इस क्षेत्र में एकमात्र विधायक रिंकू सिंह हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से उनकी दावेदारी को तवज्जो मिलना मुश्किल लगता है। महागठबंधन के अन्य दल भी इस सीट पर दावेदारी जताने की स्थिति में नहीं हैं। राजद या कांग्रेस का आधार पूरे चंपारण में कमजोर है। भाजपा में लौरिया के विधायक विनय बिहारी को दावेदार माना
जा सकता है। लेकिन जातीय समीकरण उनके अनुकूल नहीं है। बगल की सीट पर राजपूत राधामोहन सिंह पहले से विराजमान हैं। यह विनय बिहारी के लिए कमजोर पक्ष है। बगहा के विधायक राम सिंह भी दावेदार हो सकते हैं, लेकिन अतिपिछड़ा के नाम पर उनकी दावेदारी उस इलाके के हिसाब से कमजोर मानी जाएगी।
लोकसभा चुनाव आते-आते विभिन्न पार्टियों के कई-कई दावेदार सामने आएंगे। सांसद सुनील कुमार की निष्ठा भी पलटी मार सकती है। लेकिन फिलहाल इतना तय है कि वर्तमान समीकरण में सुनील कुमार को महागठबंधन से कोई चुनाती मिलती हुई नहीं दिख रही हैं।