बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने इस देश के लिए जो काम किया, वह मील का पत्थर है। अपने समय का कोई भी ऐसा विषय नहीं रहा जिसपर उन्होंने विचार न किया हो। सेपरेट इलेक्ट्राल और काॅमन स्कूल सिस्टम आज देश भर में लागू करने की जरूरत है तभी बाबा साहब के सपने पूरे होंगे।
ये बातें पूर्व मुख्यमंत्री श्री जीतनराम मांझी ने स्थानीय बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन हाॅल सभागार में कही। उन्होंने यह बात बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की 132वीं जयंती पर स्त्रीकाल और रिफार्मर्स की संयुक्त पहल पर आयोजित परिसंवाद ‘डाॅ. आंबेडकर: स्वतंत्रता और समता के पक्षधर’ विषय पर आयोजित परिसंवाद में कही। इस गोष्ठी को वरिष्ठ लेखक प्रेमकुमार मणि, संजीव चंदन, शांति यादव और डाॅ. मो. दानिश ने भी संबोधित किया। इन वक्ताओं ने बाबा साहेब के स्त्रीवादी, दलितवादी और मानवतावादी सरोकार के मुताल्लिक बहुत गंभीर और सारगर्भित बातें कहीं। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने आगे कहा कि समाज में भले ही 85 प्रतिशत लोग बहुजन हैं लेकिन आज भी सच्चाई यही है कि अपने समाज में 85 प्रतिशत का चलता नहीं है, 15 प्रतिशत लोग ही सभी क्षेत्रों में अपना एकाधिकार जमाये हुए हैं। जो लोग कभी-कभार यथार्थ की बातें करते हैं, उस विचार को पनपने ही नहीं दिया जाता। अमीरों की खामियों को कोई नहीं देखता, गरीबों का मजाक उड़ाया जाता है।
वरिष्ठ लेखक एवं पूर्व विधान परिषद सदस्य श्री प्रेमकुमार मणि ने बाबा साहब के संघर्ष से जुड़े कई घटना प्रसंग साझा किये। 1932 के कम्युनल अवार्ड की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अपने समय में बाबा साहब किस तरह के संघर्ष कर रहे थे, कैसी उनकी अनुभूति थी, उसका वस्तुनिष्ठ अध्ययन अभी शेष है। उन्होंने कहा कि तब गांधी के आमरण अनशन के समय बाबा साहब गांधी के सिरहाने बैठकर बात करते हैं यह समझ लीजिए कि बाबा साहब का तर्क सुनकर गांधी हिल जाते हैं गांधी को मुक्ति बाबा साहब दिलाते हैं इसके बाद गांधी वही गांधी नहीं रह जाते। श्री मणि ने बाबा साहब के स्त्री और अल्पसंख्यक संबंधी विचारों पर भी रोशनी डाली।
स्त्रीकाल के सम्पादक संजीव चंदन ने कहा कि बाबा साहब इस देश के ठोस स्त्रीवादी थे। उन्होंने कहा कि वे दो कारणों से बाबा साहब के प्रति आसक्त रहते हैं इसका एक कारण उनकी वैचारिक दृढ़ता में निहित है और दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक है। उन्होंने स्त्रीवादी अनुशासन में काम करने वाले बौद्धिक जमात पर चोट करते हुए कहा कि वहां भी जातिवाद की संकीर्णता अभी तक गई नहीं है यह दुखद है कि जिस बाबा साहब ने महिला आरक्षण का सवाल 42 में ही उठाया, किसी भी महिला इतिहासकार ने उसकी नोटिश नहीं ली।
वरिष्ठ साहित्यकार शांति यादव ने भी विस्तार से बाबा साहब के योगदान की और उनके स्त्री विषयक योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज और राजनीति में बाबा साहब पहले व्यक्ति हैं जो स्वतंत्रता और समता की अवधारणा को भारतीय संविधान में उसकी व्यापकता में उभारते हैं। शांति यादव ने धार्मिक जड़ता में लिप्त लोगों को उससे बाहर निकलने पर जोर दिया।
डाॅ. मो.दानिश ने कहा कि मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के सवाल पर बाबा साहब की सोच अपने दौर के अन्य नेताओं से न सिर्फ भिन्न थी अपितु दूरगामी भी। उन्होंने मुस्मिल वैल्यूज के सवाल को अपने तरीके से एड्रेस किया लेकिन यह दुखद है कि हिन्दुत्वादी शक्तियां उसे विकृत रूप में मुसलमानों के खिलाफ कड़े करने के षड्यंत्र में शामिल है।
स्वागत भाषण लारेब अकरम और पहले सत्र का संचालन अरुण नारायण ने किया। मंच पर आगत अतिथियों को भेंट स्वरूप स्त्रीकाल पत्रिका और किताब क्रमशः संतोष यादव, कंचन राय, गायत्री और गीता पासवान भेंट की।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में आंबेडकरवादी कविताओं का पाठ का कार्यक्रम था जिसमें एनके नंदा, शांति यादव, साकिब अशरफी, कृष्ण समिद्ध, मृत्युंजय पासवान, सुरेश महतो, राकेश शर्मा, कंचन राय, ज्योति स्पर्श, श्वेता शेखर, कुणाल भारती, संतोश यादव, लता प्रासर और नवीनत कृष्ण सरीखे कवियों ने अपनी अलग-अलग भावभंगिमा से पूर्ण समाजिक यथार्थ के अनुभवों से मुठभेड़ करती कविताओं का पाठ किया। इस सत्र का संचालन नवीनत कृष्ण ने किया। इस मौके पर सुबोध कुमार, शैलेंद्र कुमार, मुसाफिर बैठा, रणविजय, पूनम कुमारी, अनुज, अमरनाथ यादव, नीला विजय कुमारी चैधरी, विनय कुमार चौधरी, रामविलास प्रसाद, अनिल कुमार रजक, आदि लोगोें की उपस्थिति अंत तक बनी रही।