प्रदेश में जाति आधारित गणना कार्य फिर से शुरू हो गया है। सामान्य प्रशासन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 26 नवंबर यानी संविधान दिवस के मौके पर सरकार जाति आधारित गणना की सर्वे रिपोर्ट जारी करेगी। इस बीच कोई न्यायिक अड़चन नहीं आयी तो सर्वे रिपोर्ट पहले की भी जारी हो सकती है। सर्वे रिपोर्ट में जातिवार व्यक्तियों की संख्या नहीं बतायी जाएगी और न कोई प्रतिशत में जाति के आंकड़े जारी किये जाएंगे। संसाधन और अवसर पर जातिवार हिस्सेदारी के आंकड़े प्रतिशत में जारी किये जाएंगे। व्यवहार में इन आंकड़ों का विकास की योजनाओं से कोई लेना-देना नहीं है।
आज भी 15 फीसदी अनुसूचित जाति के जातिवार आंकड़े हर जनगणना में एकत्रित किये जाते हैं। इस आधार पर अनुसूचित जाति के लिए जातिवार योजनाओं का निर्माण नहीं किया जाता है। यही हाल धार्मिक अल्पसंख्यकों का भी है। जाति आधारित गणना के आंकड़ों का सिर्फ राजनीतिक इस्तेमाल होगा।
2022 में जाति आधारित गणना को लेकर तेजस्वी यादव की सक्रियता और नीतीश कुमार की सहमति के पीछे का असली सच महागठबंधन सरकार की संभावना का आधार तलाशना था। इसमें नीतीश कुमार के एक भूमिहार विश्वस्त और तेजस्वी यादव के एक यादव विश्वस्त की बड़ी भूमिका होती थी। इन दोनों के आपसी मुलाकात का केंद्र होता था ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव का सरकारी आवास। इन दोनों की बैठक में कभी ऊर्जा मंत्री शामिल भी होते थे और कभी नहीं भी शामिल होते थे। इस दौरान सरकार गठन की शर्त, समझौता और प्रक्रिया पर चर्चा होती थी। इस पूरी प्रक्रिया को कार्यरूप देने के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच सीधा संवाद जरूरी था। इसके लिए कोई अवसर चाहिए। जाति आधारित गणना के मुद्दे पर दोनों के बीच मुलाकात तय की गयी। विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधियों के बीच बैठक के दौरान ही नीतीश-तेजस्वी की बंद कमरे में अलग से बैठक हुई। इस दौरान दोनों विश्वस्त प्रतिनिधि भी मौजूद थे। दोनों नेताओं के बीच सहमति के बाद नीतीश कुमार भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बहाने तलाश रहे थे। इसमें जुलाई, 22 के अंतिम सप्ताह में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान आग में घी का काम किया। उन्होंने पटना में पार्टी की बैठक में कहा था कि छोटी पार्टियां समाप्त हो जाएंगी। इसी दौरान 200 विधान सभा सीटों पर तैयारी की बात भाजपा नेताओं ने कही थी। इन्हीं बातों को नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ने का आधार बनाया और एक दिन पार्टी की बैठक बुलाकर गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया। उसी दिन नीतीश कुमार ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंपा और कुछ ही घंटों बाद राजद के साथ सरकार बनाने का दावा पेश किया और 10 अगस्त को महागठबंधन की सरकार अस्त्तित्व में आयी।
जाति आधार गणना के गर्भ से ही महागठबंधन सरकार का जन्म हुआ है। जाति आधारित गणना को महागठंधन के नेता भाजपा के खिलाफ अपना अचूक हथियार मानते हैं। उन्हें लगता है कि भाजपा के सवर्ण वोटों के खिलाफ गैरसवर्ण जातियों की गोलबंदी संभव है। जातिगणना को लेकर भाजपा कें अंदर भी जातीय गिरोहबंदी हो गयी है। भाजपा के सवर्ण नेता इसे विभाजनकारी मानते हैं, जबकि पिछड़ी जाति के नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जातिगणना के मुद्दे पर भाजपा भी सरकार के साथ है। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या गैरसवर्ण और गैरबनिया जातियों का भरोसा महागठबंधन के साथ कायम है। सवर्ण और बनिया तिलक, तराजू और तलवार लेकर भाजपा के साथ हैं। पिछड़ी जातियों को जोड़ने के लिए भाजपा लगातार प्रयास कर रही है। इस प्रयास को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता है।
भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव को पिछड़ा बनाम पिछड़ा का बनाने में कामयाब रही है। अतिपिछड़ी जाति सबके निशाने पर हैं। उनके नाम की राजनीति हर पार्टी कर रही है, लेकिन हिस्सेदारी देने को कोई तैयार नहीं है। वजह है कि अतिपिछड़ी जातियां गिनाऊ हैं, पर जिताऊ नहीं। इस बदले हुए समीकरण में जाति आधारित गणना की सर्वे रिपोर्ट का पिटारा महागठबंधन को कितनी ताकत देता है। यह समय बताएगा।