भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 5 अक्टूबर को पटना आ रहे हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्य और पार्टी के लिए आजीवन समर्पित रहे कैलाशपति मिश्र जी के जन्मशती समारोह के मौके पर बापू सभागार में आयोजित सभा को संबोधित करेंगे। स्व. मिश्र कर्पूरी ठाकुर सरकार में वित्त मंत्री रह चुके थे और बिहार में पार्टी की रीढ़ माने जाते थे। पार्टी की ओर से जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन किया जा रहा है।
कैलाशपति मिश्र जाति के भूमिहार थे, लेकिन हम बात यादवों की कर रहे हैं। राज्य सरकार की ओर से जारी जातीय आंकड़ों के अनुसार, बिहार में यादवों की आबादी भूमिहारों से पांच गुनी है। लेकिन भाजपा की राजनीतिक प्रक्रिया और सांगठनिक हिस्सेदारी में यादवों का प्रतिनिधित्व काफी कम है। भाजपा मुसलमानों की तरह ही वोट के हिसाब से यादवों को अप्रासंगिक मानती है। इसलिए भाजपा की राजनीति में यादव हाशिए पर रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा की ओर कई प्रयास के बाद भी यादव भाजपा को स्वीकार नहीं कर पाते हैं।
अभी भाजपा के पास तीन सांसद और 8 विधायक हैं। तीन से 2 सांसद रामकृपाल यादव और अशोक यादव की राजनीतिक पृष्ठभूमि गैरभाजपाई रही है और एक सांसद नित्यांनद राय ही भाजपा मूल के हैं। भाजपा के आठ विधायकों में नंदकिशोर यादव और प्रणव यादव ही भाजपा मूल के हैं, शेष 6 विधायकों की राजनीतिक पृष्ठभूमि गैरभाजपाई रही है। पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने 21 यादवों को टिकट दिया था, जिसमें से 7 निर्वाचित हुए थे। एक विधायक बाद में भाजपा में शामिल हुए थे। मतलब यह है कि भाजपा के टिकट पर निर्वाचित सांसद या विधायक उधार के खिलाड़ी हैं। भाजपा के टिकट पर उतरे अधिकतर उम्मीदवार भी उधार के खिलाड़ी रहे थे। यही कारण है कि उधार के खिलाड़ी भाजपा के साथ यादव वोटरों को स्थायी रूप से नहीं जोड़ पाते हैं। चुनाव में जरूर यादव वोटर भाजपा के यादव उम्मीदवार को वोट डाल आते हैं, लेकिन वे जुड़ नहीं पाते हैं। भाजपा के एक सांसद हैं, जो भूमिहारों के इलाके में जाने के दौरान यादव कार्यकर्ताओं को अपनी गाड़ी से उतार देते हैं। भाजपा के दो एमएलसी भी यादव हैं, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि भी गैरभाजपाई है।
भाजपा के लिए यादव हर मौके पर हासिए का विषय रहा है। जदयू के साथ भाजपा ने कई वर्षों तक बिहार में राज किया, लेकिन पार्टी की अनुकंपा वाले किसी एक पद पर भी यादवों को मौका नहीं दिया। भाजपा ने अपने स्थापना काल से आज तक सिर्फ एक यादव को राज्य सभा में भेजा है। लेकिन एक भी यादव को एमएलसी बनने मौका नहीं दिया। जदयू-भाजपा की संयुक्त सरकार में कई बार विभिन्न आयोगों का गठन किया गया, लेकिन भाजपा कोटे से एक भी यादव को जगह नहीं दी गयी। बिहार प्रभारी रहते हुए भूपेंद्र यादव ने विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में भले यादव उम्मीदवारों को तरजीह दी हो, लेकिन अनुकंपा के पदों पर कभी मौका नहीं दिलवा पाये। केंद्रीय आयोग और बोर्डों में भी यादव हाशिये पर रहे हैं। जिन यादवों को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया, वह भी यादवों के लिए झुनझुना ही साबित हुए।
लोकसभा या विधानसभा में भाजपा यादवों को टिकट देती है तो यह पार्टी की मजबूरी है। 2.86 प्रतिशत वाली भूमिहार जाति को भाजपा विधानसभा चुनाव में 20 टिकट देती है और 14.26 प्रतिशत वाली जाति यादव को 21 टिकट देती है। इसे यादवों के साथ भाजपा का अन्याय नहीं कहा जा सकता है? क्योंकि जब यादव वोट ही नहीं देते हैं तो भाजपा टिकट क्यों देगी?
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जब पटना में आ रहे हैं, तो बिहार की राजनीतिक वस्तुस्थिति से उन्हें अवगत कराया जाना चाहिए। हम यह भी उम्मीद करेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते बिहार से उठे एक सवाल का जवाब उन्हें देना चाहिए। आखिर बिहार का यादव भाजपा को ‘अफीम’ क्यों समझता है, उससे क्यों नहीं जुड़ता है। पिछले दिनों में भाजपा के सांसद और विधायकों की एक गोपनीय बैठक हुई। इसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी और संगठन महामंत्री भिखूभाई दलसानिया भी शामिल थे। आखिर भाजपा को यादवों के साथ गोपनीय बैठक क्यों करनी पड़ती है। खुली चर्चा से भाजपा क्यों भागती है?